इन पत्रकारों पर मेनका गांधी को 5 महीने बाद क्यों गुस्सा आया?
मीडिया
Apr 13, 2016
मल्हार मीडिया डेस्क
मेनका गाँधी ने रायटर्स के जिन दो पत्रकारों की PIB मान्यता ख़त्म करने की सिफारिश की थी, क्या उन्हें वास्तव में इनकी लिखी 19 अक्टूबर वाली खबर पर ऐतराज़ था या यह केवल एक पब्लिसिटी स्टंट था? यह सवाल इसलिए क्योंकि ठीक पांच महीने पहले उन्हीं पत्रकारों ने मेनका के दो ख़त लीक किये थे और उनके आधार पर वही बातें लिखीं थीं, लेकिन तब मेनका की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा था। पांच महीने बाद उन्हीं बातों के लिए क्या किसी ने उन्हें भड़काया?
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी रायटर्स इंडिया के दो पत्रकारों की पीआइबी मान्यता रद्द करवाना चाहती थीं, इस आशय की एक खबर मंगलवार को दि इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुई है। खबर है कि रायटर्स ने 19 अक्टूबर, 2015 को एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें मेनका गांधी के हवाले से सरकार की आलोचना की गई थी कि उसने उनके मंत्रालय का बजट कम कर दिया है। इस रिपोर्ट में मेनका गांधी से हुई बातचीत का हवाला है। इसी रिपोर्ट पर मेनका को आपत्ति थी जिस वजह से वे रायटर्स के पत्रकारों आदित्य कालरा और एंड्रयू मैकेस्किल की पीआइबी मान्यता रद्द करवाना चाहती थीं।
दिलचस्प यह है कि 19 अक्टूबर की जिस रिपोर्ट में मेनका के हवाले से जो भी बातें कही गई हैं, वे सभी बातें मेनका द्वारा मार्च और अप्रैल 2015 में वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखे दो पत्रों का हिस्सा थीं, जिस पर आदित्य कालरा की बाइलाइन से रायटर्स पर एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट छपी थी। सवाल यह है कि मेनका को अगर अपने कहे को गलत तरीके से छापे जाने पर आपत्ति है, तो उन्होंने 19 मई, 2015 की रायटर्स की उस रिपोर्ट पर कोई आपत्ति क्यों नहीं जताई जिसमें कंटेंट समान है जबकि उसका आधार बातचीत नहीं, बल्कि लीक हुए उनके दो पत्र हैं जो सबसे ज्यादा विश्वसनीय हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर में जो असली बात नहीं बताई गई है, वो यह है कि अक्टूबर से काफी पहले मई में ही आदित्य कालरा ने रायटर्स पर एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट की थी जिसमें मेनका द्वारा वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखे दो पत्रों का उद्धरण दिया गया है। एक पत्र 27 अप्रैल, 2015 का है ओर दूसरा पत्र 5 मार्च, 2015 यानी बजट के ठीक बाद का है।
अगर पांच महीने के अंतराल पर छपी दो रिपोर्टों (19 मई और 19 अक्टूबर) को मिलाकर पढ़ा जाए, तो दोनों का कंटेंट समान नज़र आता है। मेनका गांधी के जो विचार बजट कटौती पर 19 मई की रिपोर्ट में दो पत्रों के आधार पर शामिल किए गए हैं, तकरीबन वही बातें 19 अक्टूबर की रिपोर्ट में भी हैं अलबत्ता उनका आधार मेनका से संवाददाताओं की हुई बातचीत है।
19 मई की रायटर्स की एक्सक्लूसिव खबर और मेनका की दो चिट्ठियां लीक होने के बाद तो कोई हलचल नहीं हुई, लेकिन 19 अक्टूबर को साक्षात्कार के आधार पर ऐसी ही खबर रायटर्स पर छपने के बाद मेनका के मंत्रालय ने इस बात का जोरदार खंडन किया कि बजट कटौती पर मेनका की टिप्पणी प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की कोई आलोचना है और मंत्रालय ने खबर को ''गलत व खुराफ़ाती' करार दिया। उसी दिन मंत्रालय ने एक सफ़ाई दी जिसे रायटर्स ने 20 अक्टूबर को ही छाप दिया, लेकिन कहा कि वह अपनी खबर के साथ खड़ा है।
मेनका गांधी को इतने से संतोष नहीं हुआ। उसी दिन उनके निजी सचिव मनोज के. अरोड़ा ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव सुनील अरोड़ा को एक पत्र भेजकर कहा कि उन्हें ''आदेश मिले हैं कि आपसे कालरा और मैकेस्किल की पीआइबी मान्यता को रद्द करने का अनुरोध किया जाए।'' आइबी मंत्रालय ने मामला पीआइबी को सौंप दिया। पीआइबी ने कहा कि मान्यता के प्रावधानों के तहत वह दोनों पत्रकारों की मान्यता को रद्द नहीं कर सकता। उसने मंत्री को सलाह दी कि वे इस मामले को चाहें तो प्रेस काउंसिल में उठा सकती हैं।
साभार मीडिया विजिल।
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