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जनता के प्रति प्रतिबद्ध पत्रकारिता का अनोखा उदाहरण पनामा पेपर्स और हमारी पत्रकारिय शिक्षा

मीडिया            May 16, 2016


डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी। हमारे अधिकांश विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता की पढ़ाई बाबा आदम के जमाने की शैली में हो रही है। पत्रकारिता के विद्यार्थियों को मीडिया के ग्लैमर का झांसा देकर फंसाया जा रहा है। पत्रकारिता की डिग्री लेने के बाद जब वे विद्यार्थी पेशे में जाते है, तब उन्हें निराशा हाथ लगती है। बेहतर वेतन और आत्मसंतुष्टि वाली नौकरियां तो शायद ही कहीं बची हो। वर्षों तक पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम सैद्धांतिक ज्यादा होता है और व्यावहारिक कम। विद्यार्थियोें को तकनीकी ज्ञान के नाम पर अधिकांश जगह केवल खानापूर्ति हो रही है। तकनीक के सही ज्ञान के बिना भारत के अधिकांश पत्रकार पनामा लीक्स या विकिलीक्स जैसा कोई खुलासा नहीं कर सकते। Panama-Papers-3 पत्रकारिता की दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा खुलासा पनामा पेपर्स को कहा जा सकता है। इस खुलासे ने साबित किया कि अब तकनीक को जाने बिना और उसका सही उपयोग किए बिना इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म हो ही नहीं सकता। यह बात पनामा लीक्स से साफ हो गई है। पनामा लीक्स की खोजी खबरों ने दुनियाभर में चल रहे कालेधन के नेटवर्क का खुलासा किया है। गत 40 वर्षों से काला धन कमाने वाले और टैक्स की चोरी करने वाले सैकड़ों राजनेताओं के नाम इस खोजी खबर में उजागर हुए हैं। कई देशों के राष्ट्र प्रमुख पनामा कांड में जनता के गुस्से का शिकार हो रहे हैं। कई को इस्तीफा देना पड़ा है और कई जांच के दायरे में आ गए हैं। व्हिसल ब्लोअर पत्रकारों द्वारा पत्रकारिता के इतिहास में किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा खुलासा है। यह आधुनिक खोजी पत्रकारिता का भी बिरला उदाहरण है। जहां डिजिटल पत्रकारिता का एक नया और प्रभावशाली रूप देखने को मिला है। Panama-Papers-1 पनामा लीक्स से जुड़े तथ्य उजागर करने के लिए खोजी पत्रकारों ने 50 लाख ई-मेल, 30 लाख डाटा बैस फाइलें और 20 लाख से अधिक पीडीएफ फाइलों में से काम की बातें चुनीं। इस पूरे घोटाले की जांच कर रहे पत्रकारों का समूह वाशिंगटन में बैठकर फाइलों का अध्ययन करता रहा। इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) ने इसे संयोजित किया था। लगभग दो साल की सतत कोशिशों के बाद वे जिस नतीजे पर पहुंचे, वह पनामा पेपर्स के रूप में उजागर हुए। कई देशों के पत्रकार इसमें शामिल थे। शुरूआत की जर्मनी के पत्रकार बेस्टियन ओबेरमेयर ने। मोसाक फोन्सेका पर एक खबर बनाते समय उनकी किसी अज्ञात व्यक्ति से चैटिंग हुई, जिसने पनामा लीक्स में उजागर हुए घोटालों के संबंध में प्राथमिक सूचना दी थी। उस व्यक्ति का इरादा था कि वह ऐसे आर्थिक अपराधों को सार्वजनिक करे। पत्रकार ने जब उससे पूछा कि इसके लिए मुझे कितनों तथ्यों की पड़ताल करनी पड़ेगी, तब उसका जवाब था- उतने तथ्यों की, जितने आपने अपनी जिंदगी में भी नहीं देखे होंगे। उस अज्ञात शख्स से मिली जानकारी के आधार पर पत्रकार ने आईसीआईजे से मदद मांगी। Panama-Papers-4 आईसीआईजे 65 देशों के 190 से अधिक खोजी पत्रकारों का संगठन हैं। इसकी स्थापना 1997 में अमेरिकी पत्रकार चुक लुईस ने की थी। इसका पहला प्रोजेक्ट था अमेरिका के ही मुद्दों पर, लेकिन जल्दी ही उन्होंने यह महसूस किया कि उन्हें अपने कार्य का दायरा अंतरराष्ट्रीय करना चाहिए। जहां अपराध, भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरूपयोग के मामले बहुत आम है। डबलिन में आइरिश टाइम्स के विधि संवाददाता केम कीना और उनके साथ ही सैकड़ों पत्रकारों ने पनामा पेपर्स को उसके अंजाम तक पहुंचाने के लिए मदद की। Panama-Papers-7 बातें जितनी आसान लगती है, उतनी आसान नहीं है। कीना ने अपने तकनीकी ज्ञान का भरपूर उपयोग किया और एक ऐसा सर्च इंजन बनाया, जिसकी सुरक्षा अभेद्य थी। आईसीआईजे के सॉफ्टवेयर डेवलपर्स ने इसमें मदद की। यह सर्च इंजन खासतौर पर लीक हुए दस्तावेजों की पड़ताल करने का काम करता है। इस सर्च इंजन का यूआरएल इन्स्क्रीप्टेट ई-मेल के जरिये दुनियाभर के कई प्रमुख संस्थानों में शेयर किया गया, जिनमें बीबीसी, गार्जियन और लॉ मोंडे प्रमुख है। इस साइट पर विभिन्न देशों के पत्रकारों के लिए एक रियल टाइम चैट सिस्टम भी था, ताकि विभिन्न देशों के पत्रकार आपस में चर्चा कर सके। इसके साथ ही इसमें अनुवाद की व्यवस्था भी की गई थी। पत्रकारों ने इस वेबसाइट के माध्यम से दुनिया के कई देशों के पत्रकारों के साथ समाचार कथाएं आपस में शेयर की। इसमें वे लिंक्स भी शेयर किए गए, जिनके जरिये भारत और पनामा में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स में रिश्वतों का लेन-देन किया गया था। आइरिश टाइम्स को वे दस्तावेज भी मिले, जिसके जरिये एक विशाल विमानन कंपनी ने लंदन में मकान खरीदने के लिए ढाई लाख पाउंड जमा किए थे। उनका इरादा पनामा पेपर्स से जुड़े सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का इरादा नहीं था, क्योंकि वे लोग चाहते थे कि उनकी खबर की गिरफ्त में मासूम लोग भी फंसें। हम विकिलीक्स जैसा काम नहीं करना चाहते थे। हम चाहते थे कि पत्रकारिता जिम्मेदारी के साथ करें। हममें अपने काम के प्रति दीवानगी थी, लेकिन जनहित और अपने-अपने देश का हित ही सर्वोच्च प्राथमिकता थी। Panama-Papers-9 पत्रकारों ने सारे काम पूरी ऐहतियात के साथ किए। इंटरनेट के गुप्त कोड उनके मददगार रहे हैं। व्हिसल ब्लोअर्स की निजी जानकारियां गोपनीय रखी गईं। यह एक ऐसा काम था, जो देशों की सीमाओं से परे जाकर किया गया। परिदृश्य में अंतरराष्ट्रीय तस्वीरें ही थी। सबसे पहले शुरू हुआ दस्तावेजीकरण। इस महती परियोजना में 80 देशों के 370 रिपोर्टर दस्तावेजीकरण के कार्य में शामिल हुए। तथ्यों की पड़ताल बार-बार की गई। यह ध्यान रखा या कि जो भी रिपोर्ट अंतिम रूप में तैयार हो, वह इक्कीसवीं सदी की पत्रकारिता के अनुरूप हो। जब यह रिपोर्ट लोगों के सामने आई, तब तहलका मच गया। दुनिया के सभी प्रमुख मीडिया संस्थानों में इन समाचारों को प्रकाशित किया, जिसकी शुरुआत गार्जियन, बीबीसी, लॉ मोंडरे, जर्मन टीवी एनडीआर और डब्ल्यूडीआर, मियामी हेराल्ड और यूनिविजन आदि ने की थी। पत्रकारों ने पिछले 39 सालों के दस्तावेज खंखाले। 1977 से लेकर 2015 तक के तमाम दस्तावेज देखे-परखे गए। यह देखा गया कि किन अंधेरे कोनों से काले धन का प्रवाह हो रहा है और वह कहां तक जा रहा है। इस रिपोर्ट से जो लोग प्रभावित होने वाले थे, वे दुनिया के बड़े राजनीतिज्ञ, दुनिया के सबसे धनी और शक्तिशाली लोगों में से थे। विश्व के 12 प्रमुख नेताओं की 128 लेन-देन की गतिविधियां उजागर की गई। इनमें वित्तीय,खेल और मनोरंजन जगत की हस्तियां भी थी। सैकड़ों बैंक, उनकी सहायक कंपनी और सैकड़ों शाखाएं इसकी चपेट में थी।15600 कंपनियां भी इस रेकॉर्ड में शामिल थी। पहले यह तर्क दिया गया कि जो भी आर्थिक गतिविधियां हुई थी, उनमें कानून का पूरा ध्यान रखा गया। कोई भी गतिविधि ऐसी नहीं थी, जो गैरकानूनी हो, लेकिन जब दस्तावेजों की गहन पड़ताल की गई, जब पता चला कि किस तरह बैंकों, विधि कंपनियों और अन्य खिलाड़ियों ने कानूनी खानापूर्ति भी नहीं की थी। उन्होंने जो काम किया था, वह कानून के दायरे से बाहर था। कानून के छेदों का भरपूर उपयोग करके टैक्स हेवन व्यवस्था बनाई गई थी। पनामा पेपर्स ने यह बात साबित कर दी कि डिजिटल क्रांति ने खोजी पत्रकारिता को नई ताकत दी है। पत्रकारों ने अपनी वॉचडॉग की भूमिका शानदार तरीके से निभाई और पूरी दुनिया के भ्रष्ट नेताओं को हिलाकर रख दिया। पनामा पेपर्स ने यह बात भी साबित की कि नई तकनीकी दुनिया में खोजी पत्रकारिता के तरीके और पैमाने बदल गए हैं। दस्तावेजों को प्राप्त करना, उन्हें सिलसिलेवार जमाना, उनकी छानबीन करना और सही दस्तावेजों को प्रकाशित करना कोई आसान काम नहीं था। इससे भी कठिन यह था कि इतने पत्रकारों को एक साथ एक लक्ष्य के लिए कार्य करने को प्रेरित करना, जो अलग-अलग देशों में अलग-अलग समय पर कार्य कर रहे हैं। जनता के प्रति प्रतिबद्ध पत्रकारिता का यह अनोखा उदाहरण है। लाखों दस्तावेजों की पड़ताल में उनकी उपयोगिता और उनका संबंध जांचना मामूली बात नहीं। वह भी ऐसे मौके पर जिसमें किसी का भी निजी स्वार्थ नहीं था। परियोजना को जल्दी समाप्त करने के लिए ढाई दर्जन सर्वर समानांतर कार्य करते रहे। सम्पूर्ण तथ्यों की पड़ताल के बाद ही पत्रकारों ने अपने काम को अंतिम रूप देना शुरू किया। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से बहुत सी फाइलों का आदान-प्रदान सोशल नेटवर्क वेबसाइट के माध्यम से किया गया। दस्तावेजों तक पहुंच के लिए जगह-जगह बैरिकेट्स लगाए गए, ताकि कोई अवांचित तत्व यह दस्तावेज हासिल न कर सके। डाटा एनालिसिस के क्षेत्र में यह एक अलग तरह का और बड़ा काम था। इस पूरे खोजी अभियान में जिस तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया गया, दुनिया के इने-गिने मीडिया संस्थानों में ही वह तकनीक सिखाई जाती है। पनामा पेपर्स ने पत्रकारिता की दुनिया में तो नए कीर्तिमान कायम किए ही, व्यवसाय के क्षेत्र में भी नए पैमाने कायम किए और यह साबित किया कि कोई भी कारोबार पारदर्शिता के बिना नहीं किया जा सकता। उसने यह भी बताया कि हमारे विश्वविद्यालयों में जिस तरह पत्रकारिता पढ़ाई जा रही है, वह पुराने जमाने की हो चुकी है। इस आलेख के प्रकाशन से पूर्व मल्हार मीडिया अथवा प्रकाश हिंदुस्तानी डॉटकाम की अनुमति आवश्यक


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