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मौजी:मातृत्व का अमर कश्मीरी लोकगीत

वीथिका            Oct 05, 2025


नवनीत धगट।

कश्मीर की वादियों से उठता लोकगीत “वफादार मौजी” केवल सुरों की गूँज नहीं, बल्कि मातृत्व की महिमा का अनन्त उद्घोष है। ऐसे गीत कश्मीर के ग्रामीण समाज में शादी-ब्याह, त्योहारों या पारिवारिक समारोहों में गाए जाते हैं । गीत सुनिए नीचे दी जा रही लिंक से :

https://youtu.be/0cF4fvENDxg?si=n4fqYGXvb_QXzJa8

गीत की संगत करता हुआ लोक वाद्य 'रबाब' है । इसमें "वफ़ादार" का अर्थ है विश्वासपात्र ,भरोसेमंद और "माउ" का अर्थ है ‘माँ’ । गीत में गायक अपनी मौजी— अर्थात् माँ से संवाद करता है ।

चे हुव कह वोचुम नै वफ़ा दर मौजी

तुम जैसी वफ़ादार कोई न मिली,मौजी

मैन निश चाहिन चाइ लवी संसार मौजी

मेरे लिए तुम्हारी छवि ही पूरे संसार के बराबर है, मौजी

वंदै सर पदान तव घोष नादन

मेरा माथा तुम्हारे चरणों में बिछ जाए,

अगर तुम मेरी पुकार सुन लो

चकाई पोश पैथे पैथे हलम दार मौजी

फूलों की बौछार मैं तुम पर करूँ,

ताकि तुम्हारी गोद फूलों से भर जाए, मौजी

मैन न वोच चे हुव कह वफ़ादार मौजी

तुम जैसी वफ़ादार कोई न मिली, मौज

लक्चारुक मचर म्यौने

ओ बचपन की जिद्दें!

हा करते चारे म्यौने

मेरे सहारा बन जाओ!

वक़्ता चे वापस आए

ओ घड़ी! तुमसे विनती है, उल्टी चलो!

बिश्ते बिश्ते बरियोव खोट्कोव वन

क्या तुम जंगल गए थे, नखरेबाज़ बिल्ली?

तोरे क्या वोलुथ बरे पन

क्या वहाँ से तुलसी की पत्तियाँ लाए थे?

सु कमन चौकटो कोत्रान

क्या तुमने उन्हें कबूतरों में बाँट दिया?

कोतर बीथी मर्कन

कबूतर तो खुले में कतार में खड़े हैं!

जून चाहि गेंदा तारकान

चाँद तारों से इश्क़ फरमा रहा है!

अगर ज़ु ति मांगे हम पेश कशी बे तहवाई

अगर तुम मेरी जान भी माँगो,

तो मैं खुशी से तुम्हें सौंप दूँगा।

तथ नै न ज़ह कर बे इंकार मौजी

और उसमें कभी इंकार नहीं होगा, मौजी।

मैन न वोच चे हुव कह वफ़ादार मौजी

तुम जैसी वफ़ादार कोई न मिली, मौजी

मैन निश चाहिन चाइ लवी संसार मौजी

मेरे लिए तुम्हारी छवि ही पूरे संसार के बराबर है, मौजी

डेटुथ सग जहाँतस अन्नद्वंद हयातस

तुमने संसारों को सींचा है,

पूरा अस्तित्व – जीवन!

करीत पाईद औलिया अवतार मौजी

तुमने संतों और पैग़म्बरों को जन्म दिया, मौजी

मैन न वोच चे हुव कह वफ़ादार मौजी

तुम जैसी वफ़ादार कोई न मिली, मौजी

मैन निश चाहिन चाइ लवी संसार मौजी

मेरे लिए तुम्हारी छवि ही पूरे संसार के बराबर है, मौजी

मत गस ज़ायाय, मत गस ज़ायाय

कृपया मुरझा मत जाना,

कृपया मुरझा मत जाना।

चौनि वुज़ु छुम

मेरे भीतर की पवित्रता तुम्हारी है।

गंदिथ हा सुई छुम

यही तो मुझे संभाले हुए है।

शाह रग छे मैनै

तुम ही मेरी जुगुलर नस हो।

गुनाह आफ़ू छुम

तुम ही मेरे गुनाहों की माफ़ी हो।

मत गस ज़ायाय

कृपया मुरझा मत जाना

गीत का भावार्थ है कि माँ अपने बच्चे के लिए हमेशा कठिनाइयाँ सहती है,वह दुःख सहकर भी बच्चे को सुख देती है,उसके प्रेम में स्वार्थ नहीं होता,माँ ही सबसे बड़ी सहारा और रक्षक होती है।

गीत में माँ केवल जननी नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड की धुरी बनकर सामने आती है। गायक उसकी वफ़ादारी को जीवन की नस-नस से जोड़ देता है और उसके चरणों में माथा नवाकर आत्मा का पूर्ण समर्पण कर देता है। माँ की गोद को फूलों से सजाने की अभिलाषा, बचपन की स्मृतियों और प्रेम की नमी से भीगी हुई लगती है।

गीत की प्रतीकात्मकता भी गहन है— जंगल और तुलसी पवित्रता का बोध कराते हैं, चाँद और तारे शाश्वतता के साक्षी बनते हैं, और संतों-पैग़म्बरों का जन्म माँ को दिव्यता की जननी ठहराता है।

गीत की सबसे मार्मिक पुकार है— “कृपया मुरझा मत जाना।” यह केवल माँ से नहीं, बल्कि मातृत्व और जीवन की संवेदना से की गई प्रार्थना है— एक ऐसी विनती, जो हर हृदय की सबसे निर्मल धड़कन बन जाती है।


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