यशवंत सिंह।
बिकाऊ मीडिया के मालिक और संपादक सारे ज्यादातर बड़े उद्योगपतियों से पैसे खाकर बैठे हैं। तभी तो कभी ललित मोदी मीडया के दलालों को धमका जाता है तो कभी भगोड़ा विजय माल्या अपने पालतू संपादकों को डांट जाता है। ध्यान से देखिएगा, किस चैनल और किस अखबार का टोन डाउन होता है विजय माल्या को लेकर। वैसे तो ये चैनल व अखबार पहले ही विजय माल्या जी को महामहिम की तरह पेश कर रहे हैं, जैसे देश से भागकर उन्होंने कोई एहसान कर दिया हो हम लोगों पर।
चैनलों पर माल्या की आकर्षक कहानियां परोसी जा रही हैं। यह कम बताया जा रहा है कि उसने कितनी बड़ी लूट और कितना बड़ा झटका दिया है। विजय माल्या के भागने से मोदी का वह डायलाग भी जुमला साबित हुआ है, ना खाउंगा, ना खाने दूंगा। खुद को देश का चौकीदार बताने वाले मोदी ने वही किया जो करप्ट चौकीदार करता है।

अपने खास लोगों के आने जाने से आंख मूंद लेता है। कुल मिलाकर माल्या जी के पैसे हड़पने और देश से भागने ने भारतीय लोकतंत्र के चारों स्तंभों के अगिया पिछिया सब खोल दिया है, सब दांत चियारे दिख रहे हैं। हर वक्त कितना प्रासंगिक लगता है श्रीलाल शुक्ल लिखा 'राग दरबारी'।
जाने कब तक चलता बजता रहेगा राग रागदरबारी। क्या कहते हैं आप? आप कुछ कहें या न कहें, ये फर्ज धर्म तो बनता ही है कि इन हरामखोर संपादकों की असलियत सामने लाई जाए क्योंकि ये तय मानिए कि टुकड़खोर चैनल वाले माल्या द्वारा मीडिया को दी गई धमकी पर प्राइम टाइम नहीं दिखाएंगे।
इसे मीडिया पर हमला नहीं बताएंगे। इसे अपनी इज्जत, प्रतिष्ठा और स्वाभिमान से नहीं जोड़ेंगे। पक्का कह रहा हूं कि चुप्पी साध जाएंगे। इसलिए हमको, आपको, मीडिया और संपादकों की हकीकत को दुनिया के सामने ले जाना है, फैलाना है। राडिया टेप से लेकर कई मामलों में बुरी तरह नंगे हो चुके मीडिया के संपादक लोग न जाने किस मुंह से नैतिकता और लोकतंत्र की बात करते हैं। इन्हें तो सबसे पहले चौराहे पर टांग देना चाहिए।
भड़ास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से
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