मल्हार मीडिया ब्यूरो।
न्यूज मीडिया इंडस्ट्री की तरह 36 पत्रिकाओं की प्रकाशक कंपनी ‘दिल्ली प्रेस’ (Delhi Press) भी नोटबंदी (demonetisation) के संकट से जूझ रही है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, इस वित्तीय वर्ष में देश की इकनॉमी 7.1 तक बढ़ने की संभावना है। CSO का अनुमान है कि अक्टूबर से दिसंबर 2016 तक तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सात फीसदी तक की वृद्धि हुई है। यह वो दौर था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच सौ व एक हजार रुपये के पुराने नोट बंद करने की घोषणा की थी।
इस बारे में दिल्ली प्रेस के पब्लिशर परेश नाथ का कहना है, ‘हालांकि सरकारी आंकड़े भले ही कह रहे हों कि नोटबंदी का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है लेकिन हमारा मानना है कि गैर आवश्यक वस्तुओं (non-essential items) पर इसका काफी प्रभाव पड़ेगा और यह काफी अफसोसजनक है कि आज के समय में पत्रिकाएं भी गैर आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में आ चुकी है।’ नोटबंदी के कारण हो रही परेशानियों का जिक्र करते हुए परेश नाथ का कहना था कि नवंबर और दिसंबर के महीनों में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है।
परेश नाथ का कहना था कि यह वह दौर रहा जब लोगों के पास नकदी संकट के कारण मैगजींस खरीदने के लिए पर्याप्त रुपए नहीं थे। इसके अलावा विज्ञापनदाता भी अपने विज्ञापन वापस ले रहे थे। इस दौरान फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि किराना की दुकानों पर ग्राहकों की कमी के कारण एफएमसीजी कंपनियों (FMCG companies) ने अपने विज्ञापन खर्चों पर भी काफी हद तक रोक लगा दी थी।
फरवरी 2017 में जारी ‘पिच मैडिसन ऐडवर्टाजिंग रिपोर्ट’ (PMAR) के अनुसार, नवंबर और दिसंबर में एफएमसीजी कंपनियों ने अपने विज्ञापन खर्च में 25 प्रतिशत तक की कटौती कर दी थी। ऐसे में इन कंपनियों से मिलने वाले ऐडवर्टाइजमेंट में करीब 500 करोड़ रुपये की कमी आ गई। यदि इस रिपोर्ट के आंकड़ों पर गौर करें तो नवंबर-दिसंबर 2015 के 1924 करोड़ रुपये के विज्ञापनों की तुलना में नवंबर-दिसंबर 2016 यह राशि घटकर 1435 करोड़ रुपये रह गई।
ऐसे में नोटबंदी से निबटने के लिए न्यूज मीडिया संस्थानों को अपने खर्च में कटौती करनी पड़ी और दिल्ली प्रेस में भी यही हालात रहे। परेश नाथ का कहना है, ‘किसी भी धंधे में इस तरह की चीजें अपने आप होती हैं। जब आपके पास कैश नहीं आ रहा होता है तो आप खर्च भी नहीं कर सकते हैं।’ उनका कहना है कि सरकार ने नोट निकासी की सीमा बढ़ाने और पुराने नोट बदलने के लिए भी कई बार नियमों में बदलाव किए, इससे भी परेशानी हुई। ऐसे में प्रिंट मीडिया जैसे ‘एबीपी’ (ABP) और ‘एचटी मीडिया’ (HT Media) को अपने कर्मचारियों में भी कटौती करनी पड़ी।
नोटबंदी को सख्त कदम बताते हुए परेश नाथ का कहना था, ‘लोगों को इस दौरान पढ़ने-लिखने के बजाय बैंकों व एटीएम के बाहर लाइन में घंटों गुजारने पड़े, जिससे उनकी पढ़ने की आदत पर भी काफी प्रभावित हुई।’ उन्होंने कहा कि अभी भी देश में ऐसे लोगों की काफी बड़ी संख्या है, जिनके पास बैंक खाते नहीं हैं। ऐसे में उनके पास डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड भी नहीं है। उन्होंने माना कि नोटबंदी का प्रभाव वार्षिक वित्तीय नतीजों पर भी पड़ेगा। ऐसे में लोगों में मैगजीन पढ़ने की दोबारा से आदत डालने में भी थोड़ा समय लगेगा।
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