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सैटेलाईट चैनलों की प्रसारण सामग्री पर सरकारी दबदबा

मीडिया            Nov 16, 2022


राकेश दुबे।

सरकार ने सैटेलाइट चैनलों की कुछ अन्य पूर्व अनुमतियों की आवश्यकता को समाप्त किया है तथा कुछ मंजूरियों के लिए जरूरी अवधि को बढ़ाया है।

परंतु ये तमाम लाभ उस एक अनिवार्यता के समक्ष फीके पड़ रहे हैं जिसमें कहा गया है कि सभी चैनलों को रोज 40  मिनट तक ‘राष्ट्रीय महत्त्व और सामाजिक प्रासंगिकता की थीम’ पर सामग्री प्रसारित करनी होगी।

इन दिशानिर्देशों में आठ ऐसी थीम भी तय की गई हैं जिन पर आधारित कार्यक्रम ये सैटेलाइट चैनल प्रसारित कर सकते हैं।

इन विषयों में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, महिला कल्याण, पर्यावरण, समाज के कमजोर वर्गों का संरक्षण आदि शामिल हैं।

इनमें से अंतिम थीम है: ‘राष्ट्रीय एकीकरण’ जिसे संक्षेप में समझा पाना मुश्किल है। सरकारी नोट में स्पष्ट किया गया है कि यह व्यवस्था इसलिए की जा रही है कि ये तरंगें एवं आवृत्तियां सार्वजनिक संपत्ति हैं और इनका इस्तेमाल समाज के हित में किया जाना चाहिए।

इस संदर्भ में कई प्रश्न उत्पन्न होते हैं।

सरकार ने कहा है कि देश में सैटेलाइट चैनलों की अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग से जुड़े उसके नए दिशानिर्देश जिन्हें 11  वर्ष के बाद संशोधित किया गया है। उनके माध्यम से लाइसेंस धारकों के लिए ‘अनुपालन की सहजता’ और ‘कारोबारी सुगमता’ में इजाफा हुआ है।

उदाहरण के लिए नए दिशानिर्देशों में आयोजनों के सीधे प्रसारण के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता को समाप्त किया गया है हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार का ‘आयोजनों के पूर्व पंजीयन’ से क्या तात्पर्य है?

सबसे पहले तो ‘सार्वजनिक संपत्ति’ की अवधारणा ही अस्पष्ट और कष्टप्रद है।

हालांकि सरकार की दलील इस अर्थ में सही हो सकती है कि ये संसाधन सैद्धांतिक तौर पर देश के लोगों की संपत्ति हैं, लेकिन तथ्य यही है कि इन तक पहुंच नि:शुल्क नहीं है।

प्रसारक सीधे प्रसारण के लिए लाइसेंस शुल्क के साथ प्रोसेसिंग शुल्क चुकाते हैं जो उस अवधि का स्वामित्व उन्हें सौंप देता है और इस प्रकार उन्हें एक हद तक स्वायत्तता मिलती है।

इसके अतिरिक्त अब तक यह भी स्पष्ट नहीं है कि आखिर निजी प्रसारक (केवल खेल प्रसारकों को इससे  छूट है) हर रोज आधे घंटे का राजस्व ‘राष्ट्रीय महत्त्व की थीम’ को कवर करने में क्यों गंवाएं?

जबकि यह काम करने के लिए सरकार के पास खुद एक बड़ा प्रसारक उपक्रम है।

सरकार के पास दूरदर्शन तो है ही, साथ ही क्षेत्रीय चैनल भी हैं जो लगभग पूरे देश में अपना प्रसारण करते हैं।

ऐसे में अगर सरकार को लगता है कि उसे स्वास्थ्य, शिक्षा आदि जैसे सामाजिक विषयों पर संदेश प्रसारित करने की आवश्यकता है तो उसके पास निजी चैनलों की तुलना में बेहतर नेटवर्क मौजूद हैं।

इस प्रकार से देखें तो इस बात को समझना मुश्किल नहीं है कि सरकार निजी प्रसारकों की प्रसारण सामग्री पर अपना दबदबा और अधिक बढ़ाने का इरादा रखती है।

यह बात इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि सरकार ने कहा है कि वह चैनलों की निगरानी करेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे उक्त सामग्री का प्रसारण कर रहे हैं अथवा नहीं।

यदि अनुपालन नहीं किया जाता है तो चैनलों को स्पष्टीकरण देना होगा और बार-बार अवहेलना करने वालों के खिलाफ कदम उठाए जाएंगे।

एक तथ्य यह भी है कि इस दौरान करीब 800  चैनलों की निगरानी करनी होगी। इससे पता चलता है कि निगरानी के दौरान चुनिंदा ढंग से ही काम करना होगा।

बहरहाल सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि ये दिशानिर्देश अस्पष्ट हैं और इनकी कई तरह से व्याख्या की जा सकती है क्योंकि ‘राष्ट्रीय महत्त्व और सामाजिक दृष्टि से प्रासंगिक’ तथा ‘राष्ट्रीय हित’ को तो सभी अपने-अपने ढंग से परिभाषित कर सकते हैं।

इस दिशा निर्देश में एक प्रावधान यह भी है  कि सरकार समय-समय पर चैनलों को मशविरा दे सकती है कि वे राष्ट्रीय हित की सामग्री प्रसारित करें।

इन अनुशंसाओं के साथ यह भी कहा गया है कि चैनलों को इसका अनुपालन करना चाहिए। इन बातों के बीच लगता नहीं कि चैनलों के लिए परिचालन परिस्थितियां आसान होने वाली हैं।

 



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