मल्हार मीडिया भोपाल।
भोपाल। युवा वह है जिसमें जोश- खरोश और ऊर्जा तो भरपूर हो लेकिन साथ ही उसके मन में जानने-सीखने की ललक भी हो, इसकी मिसाल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कहा जा सकता है।
उन्होंने जीवन भर अपने आपको विद्यार्थी ही माना, यही एक वजह रही कि पोरबंदर के एक सामान्य परिवार में जन्मा बालक विश्व में इतना लोकप्रिय हुआ।
यह कहना है वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और गांधीवाधी विचारक और अध्येता अनुराधा शंकर का। वे आज सप्रे संग्रहालय सभागार में पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए आयोजित ‘उत्कर्ष पाठशाला’ में बोल रही थीं। इस ‘उत्कर्ष पाठशाला’ का आयोजन सप्रे संग्रहालय द्वारा पत्रकारिता की नई पीढ़ी के सर्वांगीण विकास की मंशा से प्रतिमाह के दूसरे शनिवार को किया जाता है।
इस बार पाठशाला में अनुराधा शंकर के अलावा जैव विविधता विशेषज्ञ बाबूलाल दहिया और कैरियर काउंसलर अभिषेक खरे ने बच्चों को मार्गदर्शन दिया। अनुराधा शंकर ने ‘व्यक्तित्व विकास’ से जुड़े पहलुओं पर बच्चों से बातचीत की। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को केंद्र में रखकर कहा कि यदि हम महात्मा गांधी के जीवन को देखें तो लगता है कि वे आर्थिक रूप से संपन्न परिवार से होंगे।
लेकिन वास्तविकता यह है कि उनका परिवार तत्कालीन परिस्थतियों के हिसाब से नौकरीपेशा परिवार ही था। इसलिए उनका परिवार आर्थिक रूप सशक्त तो नहीं लेकिन सामाजिक रूप से सशक्त परिवार जरूर कहा जा सकता है। लेकिन उनके मन में कुछ करने का जज्बा, अन्याय के प्रतिकार की सामथ्र्य और कुछ सीखने की ललक थी।
इन विशेषताओं के चलते उन्होंने अपने व्यक्तित्व को इस तरह से ढाला था कि वे पूरे विश्व में पूजे गये। उन्होंने बताया कि बापू ने अपनी इन खूबियों को तराशा। उन्होंने बापू के जीवन की घटनाओं का उल्लेख करते हुए बच्चों को बताया कि उनमें सीखने की बहुत ललक थी। उम्र के किसी भी पड़ाव पर वे कुछ न कुछ सीखने को तत्पर रहे। उन्होंने काफी बड़ी आयु में संस्कृत और बांग्ला जैसी भाषाएं सीखी ताकि वे अपने उद्येश्यों में आगे बढ़ सकें।
जो भी पढ़ें, गहराई से पढ़ें
बच्चों से बातचीत में अनुराधा शंकर ने कहा कि यह कहना गलत है कि आज के बच्चे अच्छा नहीं पढ़ रहे। अब बच्चे किताबों से नहीं पर स्क्रीन पर पढ़ रहे हैं। इसमें कोई बुराई नहीं, समय के साथ माध्यम बदलते हैं और उन्हें अपनाना चाहिए। लेकिन जरूरी है कि हम जो पढ़ रहे हैं वह कितना पढ़ रहे हैं, इसका भान होना जरूरी है। हम जो भी पढ़ रहे हैं उसे गहराई से पढ़ें। उसके मूल स्त्रोत तक जायें तभी जो पढ़ा है उसकी सार्थकता होगी।
दूसरे वक्ता जैव विविधता विशेषज्ञ बाबूलाल दहिया ने बच्चों को कृषि की पुरानी और नई तकनीक की बारीकियों से परीचित कराया। उनका कहना था कि पारंपरिक खेती में शुद्धता है,पर्यावरण की दृष्टि से भी यह उपयुक्त है। उन्होंने बीज के पौधे बनने की प्रक्रिया को भी सूक्ष्मता से बतलाया।
दहिया ने स्लाइड के माध्यम से भी प्रस्तुतिकरण दिया। वहीं कैरियर काउंसलर अभिषेक खरे ने युवाओं को साक्षात्कार के बारे में जानकारी दी। उन्होंने साक्षात्कार के दौरान हमारी भाव-भंगिमाएंं, बातचीत का लहजा और विशेषज्ञों के सामने अपने आपको किस तरह से प्रस्तुत किया जाये इन बारीकियों से परीचित कराया।
आरंभ में संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने ‘उत्कर्ष पाठशाला’ के उद्येश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके पीछे हमारी मंशा है कि स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के बाद बच्चे सार्वजनिक जीवन में प्रवेश के लिए तैयार करना है।
पढ़ाई के दौरान अर्जित ज्ञान को कौशल में बदलने का प्रयास है। बच्चे विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञों के अनुभवों का लाभ प्राप्त करें इस आयोजन के मूल में यही भाव है। आरंभ में संग्रहालय की ओर से साधना देवांगन और आनंद सिन्हा ने अतिथियों का स्वागत् किया। इस अवसर पर बाबूलाल दहिया के 80 वर्ष पूरे होने पर उनका अभिनंदन भी किया गया। कार्यक्रम में पत्रकारिता तथा अन्य महाविद्यालयों के विद्यार्थियों के अलावा अन्य सुधिजन भी उपस्थित थे।
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