डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
सन 2013 से राजेश जैन भारतीय जनता पार्टी के इन्फर्मेशन टेक्नोलॉजी रणनीतिज्ञ हैं। उन्होंने ही सबसे पहले फेसबुक और वाट्सएप का उपयोग भाजपा के प्रचार में करना शुरू किया। यह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का काम रहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर पार्टी की छवि बनाने के लिए लंबा-चौड़ा काम किया।
फेसबुक इंडिया के अधिकारियों की मदद भाजपा ने ली और भाजपा के आईटी सेल के अनेक कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी गई। भाजपा की छवि चमकाने के लिए विज्ञापन जगत के कई विशेषज्ञों की राय ली गई, जिनमें प्रहलाद कक्कड़, सजन राजगुरू और अनुपम खेर प्रमुख हैं। इन्हीं लोगों ने सलाह दी थी कि सोशल मीडिया पर नरेन्द्र मोदी की छवि ऐसी बनाई जाए, जिसे लार्जर देन लाइफ कहा जाता है।
2014 आते-आते नरेन्द्र मोदी की छवि बनकर तैयार हो गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के खासमखास डॉ. हिरेन जोशी ने मोदी की छवि चमकाने का कामकाज संभाल लिया। आजकल यह काम प्रधानमंत्री कार्यालय के ओएसडी कर रहे हैं। उनके साथ तकनीकी क्षेत्र के दो विशेषज्ञ भी हैं। नीरव शाह और यश राजीव गांधी।
डॉ. हिरेन जोशी का फेसबुक से पुराना संपर्क रहा है। माय जीओवी इंडिया वेबसाइट के डायरेक्टर अखिलेश मिश्रा भी नरेन्द्र मोदी की छवि बनाने में लगे है। बीजेपी आईटी सेल के पूर्व प्रमुख अरविन्द गुप्ता को पिछले दिनों माय जीओवी इंडिया का प्रमुख बनाया गया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर नमो टेलीविजन और अनेक वीडियो फिल्मों की श्रृंखला बनाने वाले अखिलेश मिश्रा ही हैं। अखिलेश मिश्रा ब्लू क्रॉफ्ट डिजिटल फाउंडेशन नामक कंपनी के सीईओ हैं। नरेन्द्र मोदी की लिखी किताब के प्रकाशक भी वे ही हैं।
यह बात सभी जानते है कि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी का प्रचार अभियान दो साल पहले 2012 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से प्रेरित था। 2012 में बराक ओबामा को विश्व का पहला ‘फेसबुक राष्ट्रपति’ घोषित किया गया।
ऐसा बताया जाता है कि नरेन्द्र मोदी का चुनाव अभियान चलाने वाले लोग एक किताब से बहुत प्रभावित थे और वह किताब थी शशा इसेनबर्ग की लिखी ‘द विक्ट्री लेब : द सेक्रेट साइंस ऑफ विनिंग कैम्पेन्स’ 2014 के चुनाव में भाजपा ने सोशल मीडिया के यूजर तक पहुंचने के लिए माइक्रो टारगेट तय किए। उन्होंने नरेन्द्र मोदी के बारे में कहानियां गढ़ी, उन्हें महान नेता निरूपित किया और देश के सामने यह सपना रखा कि अच्छे दिन आने वाले है।
2014 के चुनाव में भाजपा ने 4 अलग-अलग प्रचार अभियान बनाए। उन सब की टीम के नेता भी अलग-अलग थे। पहली टीम मुंबई की थी, जिसे मुंबई के एक विज्ञापन एजेंसी के प्रमुख को सौंपा गया। उस टीम का काम था मतदाताओं के डेटा का एनालिसिस करना। उनकी मदद के लिए शशि शेखर वेम्पति को लगाया गया, जिन्हें मिशन 272+ का अभियान सौंपा गया।
शशि शेखर पहले इंफोसिस में काम कर चुके है, फिर प्रसार भारती कार्पोरेशन के दूरदर्शन और आकाशवाणी में सेवाएं दे रहे हैं। एक टीम बनाई गई थी हिरेन जोशी के नेतृत्व में। उस टीम का काम यह था कि वह नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत छवि बनाए।
तब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। नरेन्द्र मोदी की छवि चमकाने के लिए पूरी टीम फेसबुक इंडिया के स्टाॅफ के साथ मिल-जुलकर काम कर रही थी। फेसबुक के एक अधिकारी शिवनाथ ठुकराल भी इस टीम में थे। एक टीम अरविन्द गुप्ता के नेतृत्व में बनाई गई थी, जो माय जीओवी.इन में काम करते थे।
माय जीओवी.इन में काम कर रही टीम नई दिल्ली में बीजेपी के चुनाव अभियानों का ब्लू प्रिंट तैयार कर रही थी। आधिकारिक रूप से अरविन्द गुप्ता शासकीय अधिकारी हैं और वे भाजपा के चुनाव अभियानों में अपने योगदान के बारे में कोई बात नहीं करते। भाजपा ने अपना एक आईटी सेल बनाया हुआ है, जिसमें अमित मालवीय प्रमुख हैं। भाजपा हमेशा यही कहती रही है कि अमित मालवीय ही प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
चौथी टीम चुनावी कूटनीति विशेषज्ञ प्रशांत किशोर के नेतृत्व में बनी थी, जिसमें उनकी इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी के सभी लोग थे। इस टीम ने 3 महत्वपूर्ण कोणों पर काम किया। इन सभी का उद्देश्य था, नरेन्द्र मोदी की छवि चमकाना। पिछले चुनाव में नरेन्द्र मोदी को चायवाला के रूप में प्रचारित-प्रसारित किया गया था, लक्ष्य था चाय बेचने वाले लाखों लोगों को भाजपा से जोड़ना।
साथ ही उन्होंने चाय पे चर्चा कार्यक्रम करके लाखों मतदाताओं को भाजपा से जोड़ने की कोशिश की। युवा वर्ग को जोड़ने के लिए रन फॉर यूनिटी यानि एकता दौड़ आयोजित की गई। तीसरा पहलू मंथन नाम से शुरू हुआ, जिसमें मैनेजमेंट की डिग्री लेने वाले लोगों को मोदी के सहयोग में इकट्ठा करने का अभियान चलाया गया। कहने की जरूरत नहीं कि प्रशांत किशोर ने अपना काम सफलतापूर्वक किया।
भाजपा और नरेन्द्र मोदी के पक्ष में काम करने वाली यह सभी टीमें अलग-अलग कार्य कर रही थी। बीजेपी आईटी सेल के तत्कालीन प्रवक्ता विनीत गोयनका के अनुसार इन सभी टीमों में विशेषज्ञ लोग थे। एक-दूसरे की गतिविधियों का उन्हें बहुत भान नहीं था। वे सभी जानते थे कि उन्हें कितना काम करना है और आगे का काम कौन कर रहा है?
यह एक तरह से रिले रेस जैसा था। राजेश जैन मुंबई के अपने दफ्तर में बैठकर इन सभी टीमों के साथ समन्वय का काम करते रहे। जून 2011 में ही उन्होंने प्रोजेक्ट 275 फॉर 2014 नामक ब्लॉग लिखा था। इसका मतलब चुनाव के 3 साल पहले उन्होंने लक्ष्य तय किया था कि भाजपा को 2014 में क्या लक्ष्य हासिल करना है? घोषित रूप से उस वक्त तक नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट भी नहीं किया गया था। 2014 के चुनाव में भाजपा ने 282 सीटें जीती और उसे पूरे देश में करीब 31 प्रतिशत वोट मिले।
2014 के चुनाव की तैयारी करने वाली इस टीम के पास पुराना अनुभव है। भाजपा और सरकार द्वारा दिया गया प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन भी है। राजेश जैन पिछले साढ़े चार साल से धन वापसी नामक अभियान से जुड़े है और वे इस बारे में शोध कर रहे है कि भारत के सुरक्षा संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और सरकारों के पास कितनी अतिरिक्त जमीन अथवा संपत्ति है, जिसका उपयोग करके हर भारतीय को संपन्न बनाया जा सकता है, वह भी बिना किसी नया टैक्स लगाए बिना। राजेश जैन ने इस कार्यक्रम को धन वापसी नाम दिया है।
राजेश जैन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मैंने 2014 के चुनाव में अपने खुद के 3 साल लगाए है। इसमें मैंने काफी धन भी खर्च किया और करीब 100 लोगों को मोदी के प्रचार अभियान के लिए जुटाया। मुझे भरोसा था कि नरेन्द्र मोदी हमारी योजनाओं को नई दिशा देंगे और फिर भारत विकास के नए पथ पर चलेगा।
दुर्भाग्य से नरेन्द्र मोदी उस तरह का कोई काम नहीं कर पाए। राजेश जैन को नरेन्द्र मोदी की छवि चमकाने और भाजपा के पक्ष में काम करने का इनाम भी मिला। अक्टूबर 2017 तक वे नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन के डायरेक्टर रहे, जबकि उन्हें पॉवर सेक्टर में काम करने का कोई अनुभव नहीं था। इसके अलावा वे यूनिक आयडेंटीफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया के बोर्ड में भी रहे, जो आधार कार्यक्रम चलाती है। जैन को मिलने वाले पद वैसे ही है, जैसे संविद पात्रा को ओएनजीसी का डायरेक्टर बना दिया गया, जबकि वे पेशे से चिकित्सक हैं।
2007 में ही भाजपा अपना आईटी सेल बना चुकी थी, तब फेसबुक और टि्वटर शुरू भी नहीं हुए थे। प्रौद्युत बोरा उस समय भाजपा आईटी सेल के संस्थापक माने जाते थे। बोरा सन 2015 तक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रहे, लेकिन फिर उन्होंने नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की स्टाइल को देखकर खुद ही हट जाना बेहतर समझा।
आईआईएम अहमदाबाद से पढ़े प्रौद्युत बोरा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल हुए थे। तब भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे और उन्होंने ही बोरा को पार्टी के आईटी सेल का प्रमुख बनाया था।
बोरा का कहना है कि जब उन्होंने भाजपा का आईटी सेल संभाला था, तब उन्हें साफ-साफ हिदायत थी कि उन्हें भाजपा का प्रचार करना है, ताकि चुनाव में लाभ ले सकें। किसी दूसरी पार्टी की छवि को बट्टा लगाना या दूसरी पार्टी के नेताओं को बदनाम करना लक्ष्य कभी नहीं रहा। बोरा आजकल अपने गृह राज्य असम में एक दूसरी पार्टी का कार्य देख रहे है।
गुड़गांव में उनकी एक कंपनी है, जो एयर प्यूरिफिकेशन प्रोडक्ट बनाती है। बोरा के अनुसार सन 2009 के बाद ही भारत में सोशल मीडिया का प्रभाव नजर आने लगा। शुरू में यह प्रभाव केवल बड़े शहरों तक सीमित था। धीरे-धीरे उसने मास मीडिया की जगह ले ली।
अब प्रौद्युत बोरा मानते है कि 2019 का आम चुनाव सही तरीके से नहीं लड़ा जा रहा। भाजपा के आईटी सेल का काम करने का तरीका सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मुवमेंट ऑफ इंडिया) की तरह हो गया है।
अब बड़े शहरों में रहने वाले सोशल मीडिया के यूजर्स भी जागरुक हो गए है और वे वाट्सएप पर आए किसी भी संदेश को आंख मूंदकर सच नहीं मानते। नितिन गडकरी जब भाजपा के अध्यक्ष बनें, तब उन्होंने विनीत गोयनका को आगे किया।
विनीत गोयनका भाजपा की आईटी टीम में थे। नितिन गडकरी ने उन्हें परिवहन तथा शिपिंग मंत्रालय में भी आईटी की टॉस्क फोर्स का जिम्मा दे दिया था। पीयूष गोयल ने बाद में उन्हें सेंटर फॉर रेलवे इन्फर्मेशन सिस्टम्स की कार्यकारी परिषद में भी शामिल कर दिया। उनका मानना है कि फेसबुक को भाजपा का लाभ मिला और भाजपा को फेसबुक का।
गोयनका ने सन 2008 में भाजपा की महाराष्ट्र राज्य की आईटी सेल का काम संभाला था। उन्हीं के नेतृत्व में नीतिन गडकरी और भाजपा के कार्यकर्ताओं के आकर्षक वीडियो बनाए और दिखाए जाने लगे थे। आज उनके पास भाजपा के 29 राज्यों और 7 केन्द्र शासित प्रदेशों की इकाइयों के सूत्र है, जो पार्टी के लिए सोशल मीडिया पर संदेशों को वायरल करते है। इन मीडिया प्लेटफार्म में फेसबुक, वाट्सएप और टि्वटर प्रमुख है।
गोयनका ने भाजपा के नेताओं को आईटी उद्योग के महारथियों से भी मिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पार्टी के प्रमुख पदाधिकारियों को इंडो यूएस बिजनेश काउंसिल से भी जोड़ा। उनकी नियमित मुलाकातें भी करवाई।
सन 2012 में ही गोयनका ने सोशल मीडिया के महत्व को भांप लिया था और उन्होंने पार्टी नेताओं से कहा था कि वे अपने चुनाव क्षेत्र से मतदाताओं से सीधे-सीधे जुड़े। 2012 से 2014 तक का सफर कांग्रेस की सरकारों की गतिविधियों के बारे में रहा।
सोशल मीडिया पर लोगों को बताया गया कि देश में भारी भ्रष्टाचार है और सोशल मीडिया ने अब आपको यह आजादी दी है कि आप उसके खिलाफ आवाज उठा सकते है। गोयनका ने ही अमेरिका में एनआरआई लोगों का नेटवर्क तैयार किया और फेसबुक तथा वाट्सएप पर ऑनलाइन ग्रुप बनाए तथा लाइव चैट को प्रमोट किया। (सायरल सेन और परांजय गुहा ठाकुर्ता के इनपुट के आधार पर प्रस्तुत।)
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