विक्रम उपाध्याय।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का वास्तविक विकास उन लोगों के योगदान से ही हुआ है जो स्वयं गैर हिन्दी भाषी प्रदेश से आते थे। इसमें सबसे बड़ा नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का है जिन्होंने न केवल स्वयं हिन्दी का प्रयोग किया बल्कि पूरे देश के लोगों से हिन्दी को संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार करने के लिए प्रेरित भी किया।
लेकिन 2014 के बाद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का जैसा विस्तार प्रधानंमंत्री मोदी के समय में हुआ वैसा पहले की किसी भी सरकार में नहीं हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी स्वयं हिन्दी के प्रख्यात विद्वान और कवि थे लेकिन उनके प्रशासन में भी हिन्दी का उस तरह विकास नहीं हुआ जैसा मोदी सरकार में हुआ है।
एक ओर जहां राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी ने हिन्दी को स्थापित किया है वहीं 2019 में गृहमंत्री बनने के बाद अमित शाह ने राजभाषा हिन्दी की स्वीकार्यता और कामकाज में प्रयोग पर बल दिया है। गृहमंत्रालय का राजभाषा विभाग ही सरकार के काम काज में हिन्दी के प्रयोग की देखरेख करता है। इसलिए गृहमंत्री होने के नाते अमित शाह ने एक सूत्र खोजा कि सरकारी काम काज में हिन्दी की स्वीकार्यता बढाने के लिए इसे अनुवाद की जटिलताओं से बाहर निकालकर सामान्य बोलचाल की भाषा जैसा सरल बनाया जाए।
अपने स्वभाव के अनुकूल यहां भी उन्होंने आक्रामक रुख अपनाया। 2019 में गृहमंत्री बनते ही उन्होंने उसी साल हिन्दी दिवस के ही अवसर पर 'एक देश एक भाषा' की बात शुरु कर दिया था। उन्होंने कहा था कि 'सभी भारतीय भाषाओं को मजबूत करने की जरूरत है लेकिन विदेशी भाषाओं को भारत में जगह न मिले इसलिए हमें एक देश एक भाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार करना होगा।'
ऐसा बोलकर वो भारतीय भाषाओं के बीच हिन्दी को एक संपर्क भाषा के रूप में स्थापित करने की वकालत कर रहे थे। लेकिन हमेशा की तरह विरोध दक्षिण के डीएमके की ओर आया जो तमिलनाडु में दशकों से हिन्दी विरोधी राजनीति कर रहे हैं। उसके बाद पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और कुछ दक्षिण के फिल्मी कलाकारों ने भी यह कहते हुए विरोध करना शुरु कर दिया कि गृहमंत्री हम पर हिन्दी थोप रहे हैं।
इस आरोप पर सफाई देते हुए उस समय कहा था कि वो स्वयं गैर हिन्दी भाषी राज्य से आते हैं। लेकिन वो भारत की जमीनी सच्चाई को वैसे ही जानते हैं जैसे गांधी जी जानते थे कि हिन्दी के सिवाय कोई और भाषा नहीं है जिसे देश में संपर्क भाषा के रूप में प्रयोग किया जा सके। जो दल, नेता, कलाकार या साहित्यकार राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का विरोध करते हैं असल में परोक्ष रूप से वो अंग्रेजी को बढावा देते हैं।
अगर इस देश में कोई भाषा थोपी गयी है तो वह हिन्दी नहीं बल्कि अंग्रेजी है। भारत के सभी भाषाओं के बीच संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी तो वैसे भी अपना दायरा बढाती जा रही है। आज अरुणाचल प्रदेश से लेकर गुजरात तक और कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी की स्वीकार्यता बढी है। हिन्दी न केवल जनसंपर्क की भाषा बनी है बल्कि मन संपर्क का माध्यम भी बन रही है।
लेकिन हिन्दी के राह में एक बड़ी बाधा सरकारी स्तर पर प्रयोग की जानेवाली हिन्दी है जो मूलत: अंग्रेजी का अनुवाद होती है। इस अनुवाद की प्रक्रिया में हिन्दी एक ऐसी जटिल भाषा बन जाती है जिसके कारण लोग हिन्दी से अधिक अंग्रेजी पढने में अपने आपको सहज पाते हैं। इस बात को संभवत: गृहमंत्री अमित शाह भी समझते हैं इसीलिए पिछले साल हिन्दी दिवस के मौके पर उन्होंने कहा था कि "भाषा परिवर्तन का सिद्धांत कहता है कि भाषा जटिलता से सरलता की ओर जाती है।"
इसलिए स्वयं गृहमंत्री सरकारी काम काज की भाषा में सरल और सामान्य शब्दावली के प्रयोग के पक्षधर हैं। इसके लिए गृहमंत्री बनने के बाद से ही वो लगातार प्रयास कर रहे हैं। उनके प्रयास का ही परिणाम है कि राजभाषा विभाग ने मंत्रालयी काम काज के लिए हिन्दी शब्द सिन्धु नाम से एक नयी शब्दावली तैयार की है। इस शब्दकोश की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अंग्रेजी के अनुवाद में नये शब्द गढने की बजाय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भारतीय भाषाओं से जुड़े शब्दों को हिन्दी में शामिल किया गया है।
यह एक ऐसी ऐतिहासिक पहल है जो न सिर्फ सरकारी काम काज में हिन्दी की स्वीकार्यता बढायेगी बल्कि भारतीय भाषाओं के बीच अंतरसंबंध को मजबूत करेगी। पहले फारसी और उर्दू तथा अब अंग्रेजी के प्रयोग के कारण भारतीय भाषाओं के बीच दूरी बढी है। अब गृहमंत्री की इस पहल से भारतीय भाषाओं की दूरी ही नहीं घटेगी बल्कि विभिन्न भाषा भाषी लोग भी एक दूसरे के करीब आयेंगे।
इसी तरह गृहमंत्री अमित शाह ने प्रत्येक वर्ष राजभाषा सम्मेलन के आयोजन की शुरुआत भी किया है। यह भी एक स्वागतयोग्य पहल है। इसके कारण न केवल सरकारी काम काज में सरल हिन्दी को बढावा मिलेगा बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं से मन संपर्क भी स्थापित होगा। यही वह काम था जिसका सरकार के स्तर पर होना जरूरी था। आज नहीं तो कल इसका अच्छा परिणाम अवश्य सामने आयेगा और भारतीय भाषाओं के बीच जो राजनीतिक कटुता पैदा की जाती है, उसका अंत होगा। हिन्दी वास्तविक अर्थों में पूरे देश की संपर्क भाषा के रूप में अपना जगह बनायेगी जैसा यूरोप में कभी अंग्रेजी ने बना लिया था।(शब्द संख्या 875 )
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