ममता मल्हार।
पत्रकार वार्ताएं आजकल पब्लिक मीटिंग बन गईं हैं।
आईए, सुनिए, भोजन पाईये
जाईये।
सवाल मत पूछिए।
वो हम पहले ही टिक लगाकर रख लेते हैं किसका सवाल लेना है किसका नहीं।
मतलब सरकार के एक साल पर पत्रकार वार्ता नहीं प्रेसवार्ता हुई और बस पब्लिक मीटिंग वाली फीलिंग देकर खत्म हो गई। उस तरफ बैठे लोग भी जानते हैं कि सामने बैठी पत्रकार कम जनता में से एक बड़ा प्रतिशत उन लोगों का है जो चाहते हैं मुख्यमंत्री उन्हें देख लें या उनके साथ फोटो खिंच जाए। जे कल्चर कैसे डेवलप हो गया इस पर कोई प्रकाश डालता नहीं बस आपस मे बतिया लेते हैं। नैतिकता नहीं बची ये नहीं बचा वो नहीं रहा पत्रकारों में, ये अलग बात है कोई आता दिखा तो हें हैं आपके जैसा तो कोई इस विभाग में तो छोड़ो मध्यप्रदेश में अब तक नहीं आया। फ़ोटो खिंच गई तो चेहरे पर भाव होते हैं कि अहा सात जन्मों की तपस्या सफल हो गई। फ़िर फेसबुक भी तो इंतजार करता रहता है।
खैर नोट किया जाए सवाल किसी सरकार सिस्टम पार्टी को नीचा दिखाने के लिये नहीं पूछे जाते बल्कि अपनी जानकारी को कन्फर्म करने और सरकार को सचेत करने पूछे जाते हैं कि खामियां दूर की जा सकें।
साल 2018 से शुरू हुआ ये ट्रेंड अब सेट ट्रेंड है। गजब माहौल बना दिया गया है चिन्हित करके रख लिए जाएंगे पहले से ही।
ये गजब माहौल बना दिया गया है चिन्हित करके रख लिए जाएंगे पहले से ही।
कोई बात नहीं लिखा तो जा सकता है कि इतनी इनवेस्टर कॉन्क्लेव में अभी तक मध्यप्रदेश में कितने निवेश की कन्फर्मेशन मिल गई है?
दूसरा मोदीजी के डिजिटल इंडिया के सुरों के बीच मध्यप्रदेश में डिजिटल मीडिया को पूरी तरह से कॉर्नर करके क्यों रख दिया गया है?
2018 से शुरू हुआ यह भेदभाव खत्म करने के बजाय इसे बढ़ाया क्यों जा रहा है?
सब शुद्धम-शुद्धि में बुद्धि वालों को जगह नहीं मिलेगी
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव जी को एक साल पूरा होने की बधाई।
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