डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
2016 की विदाई करीब है। ऑनलाइन मीडिया में कौन-कौन से लोग सबसे लोकप्रिय रहे और कौन-कौन से प्लेटफार्म सबसे ज्यादा पसंद किए गए, इस बात का अध्ययन किया जा रहा है। शोध के अलग-अलग पैमानों पर इसकी पड़ताल की जा रही है और शोधकर्ता अलग-अलग नतीजे निकाल रहे हैं, लेकिन इनमें से कुछ बातें तो अभी से तय है कि अंतिम परिणाम यही होने वाला है।
यह बात लगभग तय है कि 2016 में वे लोग सबसे ज्यादा प्रभावी और चर्चा में रहे है, जिनका संबंध धर्म से है। पोप फ्रांसिस, दलाई लामा और आस्तिक के रूप में मशहूर रिचर्ड डांकिन्स अंग्रेजी भाषा के सोशल मीडिया पर छाए रहे है। इनकी बातों को लोगों ने बड़ी संख्या में लाइक और शेयर किया है। लोगों के रिस्पांस को देखकर कहा जा सकता है कि धर्म के बारे में पूरी दुनिया के लोगों की श्रद्धा अभी भी बची है और लोग धर्म गुरूओं को बहुत ऊंचा स्थान देते है। इसके साथ ही लोग धर्मगुरूओं के निर्देशों का पालन करने में अपनी भलाई समझते है। अरब जगत में भी धर्मगुरुओं के प्रति लोगों की निष्ठा साफ झलकती है और वहां भी अध्ययन के यहीं निष्कर्ष है।
2016 में अंग्रेजी भाषा के मास मीडिया की तुलना में सोशल मीडिया ज्यादा प्रभावी नजर आया। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सोशल मीडिया की भूमिका को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता। अमेरिकी चुनाव के वक्त पूरा मीडिया जगत सोशल मीडिया की सामग्री को अपने तरीके से चुनता और पेश करता रहा है। इस चुनाव में यह बात साफ हो गई कि बड़े अखबार और टीवी चैनल जो कहते है, लोग उसके अनुसार नहीं चलते, बल्कि लोग जिस हिसाब से चलते है, बड़े टीवी चैनल उनसे कदमताल करते हुए रहते है।
एडेलमैन ट्रस्ट द्वारा कराए गए एक अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि 2016 में 85 प्रतिशत आम लोग अधिकारियों के प्रति अपना विश्वास खो चुके हैं। ये लोग सोशल मीडिया पर जो कुछ भी लिखते हैं, वह बड़े अधिकारियों की सलाह से मेल नहीं खाता। इस अध्ययन के अनुसार बड़े सरकारी अधिकारी अपना प्रभाव खोते जा रहे हैं और एक हद तक तो वे खो भी चुके हैं।
वैश्विक स्तर पर किए गए अध्ययन में पता चला है कि अरबी, चीनी और अंग्रेजी भाषा की तुलना में स्पेनिश और जर्मन भाषाओं में सोशल मीडिया का महत्व कम है। जर्मनी के अखबारों और उन अखबारों की वेबसाइट का प्रभाव ट्विटर, फेसबुक और यू-ट्यूब की तुलना में ज्यादा है। जर्मनी में लोगों का भरोसा सोशल मीडिया पर धीरे-धीरे बढ़ रहा है, लेकिन यह इतना नहीं है, जितना अंग्रेजी या चीनी भाषा में है। अंग्रेजी बोलने वाले समाज में फेसबुक और ट्विटर का प्रभाव आज भी उतना ही है, जितना बीबीसी, अल जजीरा या न्यूयॉर्क टाइम्स का है।
इंटरनेट और सोशल मीडिया की दुनिया में चीन अपनी अलग भूमिका में है। इंटरनेट पर चीनी भाषा की अपनी दुनिया है। चीन की सरकार चाहती है कि चीन के लोग पूरी दुनिया को चीनी चश्मे से देखें। चीन के अपने गैरवैश्विक नेटवर्क है। जैसे बाइडू, बाइके और सिना वाइबो। हांग कांग और ताइवान में रह रहे चीनी भले ही चीनी भाषा का उपयोग करते हो, लेकिन उनका नजरिया कुछ अलग है। चीन ने इंटरनेट की अपनी दुनिया बना ली है, जहां उसकी अपनी वेबसाइट्स है। उसके अपने सर्च इंजन और सोशल मीडिया के प्लेटफार्म है। चीन दुनिया से जुड़ा तो रहना चाहता है, लेकिन अपनी शर्तों पर। यही बात चीन को इंटरनेट की दुनिया में एक अलग पहचान दिलाती है।
प्रकाश हिंदुस्तानी डॉटकाम से
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