मल्हार मीडिया ब्यूरो।
सर्वोच्च न्यायालय ने आधार संख्या को स्थायी खाता संख्या (पैन) से जोड़ना अनिवार्य करने को लेकर आयकर अधिनियम में हाल में जोड़े गए नए प्रावधान को बरकरार रखा, लेकिन इसके क्रियान्वयन पर आंशिक रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति ए.के.सीकरी तथा न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि जिनके पास पहले से ही आधार संख्या है, वे उसे पैन संख्या के साथ जोड़ सकते हैं, लेकिन जिन लोगों के पास आधार नहीं है, उनपर इसके लिए दबाव नहीं डाला जा सकता।
न्यायमूर्ति सीकरी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आयकर अधिनियम का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 19 का उल्लंघन नहीं है। उन्होंने कहा कि नया प्रावधान प्रत्याशित रूप से प्रभावी हो सकता है, पूर्वव्यापी तौर पर नहीं, तथा पहले की गई लेनदेन की फिर से समीक्षा नहीं की जा सकती।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने आयकर अधिनियम के उस प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर व्यवस्था दी जिसमें आयकर रिटर्न दाखिल करने और पैन आवंटन के लिए आधार को अनिवार्य बनाया गया है. इस मसले पर न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने चार मई को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इन याचिकाओं में आयकर अधिनियम की धारा 139 एए को चुनौती दी गई थी, जिसे इस साल के बजट और वित्त अधिनियम, 2017 के जरिए लागू किया गया था. आयकर अधिनियम की धारा 139 एए या आधार आवेदन पत्र की इनरोलमेंट आईडी को बताना आयकर रिटर्न दाखिल करने और पैन के आवंटन के लिए आवेदन करने को इस साल एक जुलाई से अनिवार्य बनाती है।
इससे पहले पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने आधार कार्ड के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारत के नागरिक आधार कार्ड हेतु लिए जाने वाले शारीरिक सैंपल के लिए मना नहीं कर सकते हैं, नागरिक अपने शरीर पर इस मुद्दे पर कोई अधिकार नहीं जता सकते हैं। मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार होना एक भ्रम है, ऐसे कई नियम हैं जो इस पर पाबंदी लगाते हैं।
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