मल्हार मीडिया ब्यूरो।
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों से बातचीत मनढंत है, क्योंकि उनकी कभी बातचीत हुई ही नहीं। जेटली ने कहा कि राहुल ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ उनकी बातचीत की मनगढंत कहानी पेश कर निर्थक चपलता दिखाई।
सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के लोकसभा में गिर जाने के एक दिन बाद जेटली ने कहा, "राहुल गांधी ने राष्ट्रपति मैक्रों के साथ मनगढंत बाचीत का जिक्र करके अपनी विश्वसनीयता घटाई है। उन्होंने दुनिया के सामने भारत के राजनेता की छवि को गंभीर आघात पहुंचाया है।"
राहुल गांधी ने शुक्रवार को लोकसभा में कहा था कि मैक्रों ने उन्हें बताया था कि भारत के साथ राफेल जेट सौदे में कोई गोपनीयता समझौता नहीं हुआ है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण पर इस संबंध में देश से झूठ बोलने का आरोप लगाया।
फ्रांस के यूरोप और विदेशी मामलों के मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान में इस टिप्पणी का खंडन किया है।
जेटली ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, "किसी को सरकार के प्रमुख या देश के प्रमुख से बातचीत को कभी गलत तरीके से नहीं बताना चाहिए। आप एक बार ऐसी बात करेंगे तो गंभीर लोग आप से बात करना नहीं चाहेंगे या आपके सामने कुछ बोलना नहीं चाहेंगे।"
जेटली ने कहा कि बहस में हिस्सा लेने वाले नेता, खासतौर से राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष, जो प्रधानमंत्री पद की आकांक्षा रखते हैं, उनको राजनीतिक संवाद के स्तर में सुधार करना चाहिए। उनको अज्ञानता, झूठ और कलाबाजी दिखाकर कभी बहस को महत्वहीन नहीं बनाना चाहिए।
उन्होंने कहा, "सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का मत गंभीर कार्य है। यह निर्रथक बात करने का अवसर नहीं है।"
जेटली ने कहा कि यह बात स्वीकार करने योग्य नहीं है कि गांधी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा गोपनीयता समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की बात से अवगत नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने बातचीत के चश्मदीद के तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम लेकर उनको लज्जित किया है।
जेटली ने कहा कि राहुल गांधी जब खातों के खुलासे को एनपीए कहते हैं तो लगता है कि वह सार्वजनिक मसलों से भी अवगत नहीं हैं।
उन्होंने कहा, "कोई मंत्री ऐसा नहीं है, जो भारत के संविधान को बदलना चाहता है या बदलने के लिए अधिकृत है। सत्ता के लिए संविधान बदलने वाली आखिरी नेता राहुल की दादी ही थीं और वह भी विफल रहीं।"
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