राजेश चंद्र।
कर्नाटक के प्रमुख रंगकर्मी, कवि और नाटककार एस. रघुनन्दन ने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार को ठुकरा दिया है। एक दिन पहले ही उन्हें यह पुरस्कार दिये जाने की घोषणा की गयी थी।
एस.रघुनंदन ने देश में संवैधानिक मूल्यों एवं अधिकारों की हिफ़ाज़त के लिये लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं बुद्धिजीवियों के प्रति नफ़रत की बढ़ती प्रवृत्ति और उनकी आवाज़ दबाने की कोशिशों का हवाला देते हुए यह पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया है।
अपने बयान में रघुनंदन ने लिखा, "आज ईश्वर और धर्म के नाम पर मॉब लिंचिंग की जा रही है और यहां तक कि लोगों के भोजन के तौर-तरीक़ों के लिये भी उन्हें मारा जा रहा है।
हत्या और हिंसा के इन भयावह कृत्यों के लिये प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सत्ताधारी शक्तियां जिम्मेदार हैं। वे उस घृणा अभियान का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन कर रही हैं, जिसमें इंटरनेट सहित सभी साधनों का उपयोग किया जा रहा है।”
बात को आगे बढ़ाते हुए एस. रघुनन्दन ने लिखा है, "आज कन्हैया कुमार जैसे होनहार नौजवानों के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश रची जा रही है, जो हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं।
रघुनंदन ने कहा, “कई बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है। उनमें से अधिकांश को ज़मानत भी नहीं मिल रही है और वे जेल में समय बिता रहे हैं।
ये वे लोग हैं जो हमारे देश और दुनिया के सबसे अधिक शोषित और वंचित लोगों के पक्ष में लड़ाई लड़ रहे हैं। शोषितों-वंचितों के दमन और उत्पीड़न को उजागर करने वाले लेख या किताबें लिखने और उन्हें अपने अधिकारों के लिये शान्तिपूर्ण संघर्ष करने की प्रेरणा देने के कारण इन बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है, जिसे किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता है।"
एस. रघुनन्दन का यह कदम उन कथित रंगकर्मियों के मुंह पर एक करारा तमाचा है जो एक फासिस्ट और हत्यारी सरकार से ग्रांट, पद और पुरस्कार लेने के लिये बेशर्मी के साथ तर्क देते हैं और उनके दरबार में हाज़िरी लगाते रहते हैं।
अपनी महत्वाकांक्षाओं और स्वार्थ की पूर्ति के लिये जनविरोधी फासिस्ट सरकार की साज़िशों के बारे में मुंह न खोलने वाले हमारे कथित बड़े और सम्मानित रंगकर्मियों को एस. रघुनन्दन के साहस और विवेक को देख कर डूब मरना चाहिये।
इतिहास उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा कि जब देश जल रहा था, तब वे चन्द टुच्ची सुविधाओं के लिये खुलेआम अपने ज़मीर का सौदा कर रहे थे।
एस. रघुनन्दन जैसे सच्चे और साहसी रंगकर्मी को मेरा बार-बार सलाम!
व्हाया जितेंद्र नारायण फेसबुक वॉल
Comments