Breaking News

वायनाड भीषण आपदा का शिकार, 90 की मौत, सैकड़ों घायल, मलबे में फंसे

राष्ट्रीय            Jul 30, 2024


मल्हार मीडिया डेस्क।

केरल का वायनाड जिला भीषण आपदा का शिकार हो गया। जिले के मेप्पाडी के पास पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की कई घटनाएं हुईं जिनमें 90 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है।

इस प्राकृतिक आपदा के कारण अब तक सैकड़ों लोग घायल हुए हैं और सैकड़ों लोगों के मलबे में फंसे होने की आशंका है। राहत और बचाव दल को बारिश के कारण कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 

भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों से सामने आई तस्वीरें घटना के विकराल होने की गवाही देती हैं। हादसे की जगह ध्वस्त मकान, उफनती नदी, लकड़ियों के विशाल ढेर, कीचड़ और कूड़े दिखाई दे रहे हैं। वायनाड में इतना बड़ा हादसा भूस्खलन की कई घटनाओं के कारण हुआ है।

वायनाड में क्या घटना घटी है? घटना का असर क्या है? भूस्खलन की वजह क्या है? क्या पहले भी इस तरह की घटनाएं घटी हैं?

मंगलवार की सुबह वायनाड जिले के मेप्पाडी के पास पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की तीन बड़ी घटनाएं हुईं। मेप्पाडी, मुंडक्कई टाउन और चूरलमाला में बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ। पहला भूस्खलन भारी बारिश के दौरान रात करीब एक बजे मुंडक्कई टाउन में हुआ। बचाव अभियान अभी चल ही रहा था कि चूरलमाला स्कूल के पास सुबह करीब चार बजे दूसरा भूस्खलन हुआ। इसके चलते स्कूल और आसपास के घरों और दुकानों में पानी और कीचड़ भर गया। आपदा के 13 घंटे बाद एनडीआरएफ और सेना के जवानों की एक टीम नदी पार कर मुंडक्कई पहुंची। मुंडक्कई, चूरलमाला से 3.5 किलोमीटर दूर है। 

घटना का असर 

भूस्खलन की घटना ने करीब सौ लोगों की जान ले ली है। सैकड़ों लोग इस आपदा में घायल हुए हैं और उनका अस्पतालों में इलाज चल रहा है। इस प्राकृतिक आपदा का असर घटना वाली तीनों जगह दिख रहा है। 2018 की बाढ़ के बाद चूरलमाला भूस्खलन केरल की सबसे बड़ी आपदा है। भूस्खलन के चलते चूरलमाला बाजार ही गायब हो गया है। कितने घर नष्ट हुए इसकी कोई सटीक गिनती नहीं है।

मुंडक्कई इलाके में, कई घरों की केवल छत ही बची है। जगह-जगह शव पड़े हुए हैं, इन्हें मेपाडी तक नहीं पहुंचाया जा सका है। मुंडक्कई से सूचना मिली कि गिरी हुई इमारतों के पास शव पड़े हुए हैं। उन तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है। शवों को मुंडक्कई में कुछ वाहनों में ले जाया गया। वायनाड में भूस्खलन में फंसे लोगों के शव कई किलोमीटर दूर पड़ोसी जिले मलप्पुरम में भी बह गए। मलप्पुरम जिले में चलियार नदी के अलग-अलग हिस्सों से अब तक 20 से ज्यादा शव मिल चुके हैं।

इस बीच, मुंडक्कई नदी में अचानक पानी बढ़ने पर बचाव अभियान रोकना पड़ा। वहां के लोग फोन पर गुहार लगा रहे हैं कि कम से कम हमारे बच्चों को मुंडक्कई से बचा लो। घर नष्ट हो जाने से भोजन और पानी की भी कमी हो गई है। 12 घंटे तक बिना बिजली के रहने से कई लोगों के फोन बंद हो गए हैं, जिससे बचाव अभियान प्रभावित हो रहा है।

भूस्खलन का कारण क्या है?

वायनाड में भूस्खलन की घटना कोई नई नहीं है। हां, इस बार घटना का असर व्यापक हुआ है। 8 अगस्त, 2019 को वायनाड के ही पुथुमाला इलाके में त्रासदी हुई थी। उस भूस्खलन की घटना में 17 लोगों की जान चली गई थी। करीब पांच साल बाद इसी तरह की एक घटना पास के मेप्पाडी में हुई है। भारी बारिश के दौरान वायनाड में कई जगहों पर भूस्खलन सक्रिय है, लेकिन ऐसी आपदा किसी ने नहीं सोची थी। एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन, कलपट्टा के वैज्ञानिक जोसेफ जॉन ने स्थानीय अखबार मनोरमा को वायनाड के भूस्खलन क्षेत्रों और स्थलाकृति के बारे में जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि इन घटनाओं के पीछे प्रमुख वजह यहां की मिट्टी है। वायनाड में पिछले दो हफ्ते से लगातार बारिश हो रही है। यहां की मिट्टी को सोखने की क्षमता से अधिक पानी मिलता है। वायनाड, मुंडक्कई और चूरलमाला में भूस्खलन की घटनाएं 'ब्लैक लेटरेट' नामक मिट्टी में होती हैं। यह एक प्रकार की मिट्टी है जो अधिक कठोर नहीं होती और पानी को जल्दी से सोख लेती है और जल्दी से बहा भी देती है। जब लगातार भारी वर्षा होती है, तो मिट्टी सारा पानी जमीन में सोख नहीं पाती है।

सीयूएसएटी रडार रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. एमजी मनोज ने 'मनोरमा ऑनलाइन' को बताया कि मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता सीमित होती है। हर मिट्टी की जल धारण क्षमता अलग-अलग होती है। यदि आप पानी में थोड़ी सी चीनी डालेंगे तो वह घुल जाएगी। लगातार डालने पर यह घुलेगी नहीं। यही हाल मिट्टी का भी है। यदि लगातार बारिश होती रहे तो पानी सोख नहीं पाता। यदि पानी सीमा से अधिक पहुंच गया तो मिट्टी उसे स्वीकार नहीं करेगी। जब ऐसा होगा तो पर्वतीय जल में भूस्खलन हो सकता है।

इतनी अधिक वर्षा सहने के लायक नहीं है यहांं की मिट्टी

भूस्खलन की दूसरी वजह भारी वर्षा और इलाके की प्रकृति को माना जा रहा है। अंग्रेजों के समय से ही इस क्षेत्र को निर्जन और भूस्खलन और भू-धंसाव की आशंका वाला माना जाता रहा है। पुराने समय में यहां कोई नहीं रहता था। हाल के वर्षों में लोग प्रवास के तहत आ रहे हैं।

अधिक वर्षा का कारण जलवायु में परिवर्तन है। सोमवार रात (29 जुलाई) से शुरू हुई बारिश अब तक नहीं रुकी है। वायनाड पुथुमाला में पिछले 24 घंटों में 372 मिमी बारिश हुई है। यहां की स्थलाकृति एक ही दिन में इतनी अधिक वर्षा सहने के लायक नहीं है। जुलाई महीने में जितनी बारिश होनी चाहिए, उससे दोगुनी से ज्यादा बारिश हो चुकी है।

कोच्चि विश्वविद्यालय मौसम विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एस. अभिलाष ने एक अखबार को बताया मुंडक्कई और चूरलमाला कवलपारा और पुथुमाला क्षेत्रों से केवल तीन किलोमीटर दूर हैं जहां 2019 में भूस्खलन हुआ था। यह पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है जहां आमतौर पर भूस्खलन की आशंका रहती है। साथ ही भारी बारिश भी भूस्खलन का कारण है। यह घटना मिनी क्लाउड बर्स्ट जैसी स्थिति है। इसे मेसोस स्केल मिनी क्लाउड बर्स्ट कहा जाता है क्योंकि इसमें दो से तीन घंटों में 15 से 20 सेमी तेज बारिश होती है। उत्तरी केरल में अब यही हो रहा है।

अगली घटना 'स्वायल पाइपिंग' की है। यह घटना जमीन के अंदर बिल खोदने वाले चूहों की तरह होती है। ऊपर पर कोई समस्या नजर नहीं आती लेकिन पहाड़ी के नीचे से मिट्टी, पानी और पत्थर एक सुरंग की तरह बहेंगे। जब ऐसा होता है, तो पहाड़ी का ऊपरी हिस्सा एक ही झटके में बैठ जाता है। डॉ एम जी मनोज ने स्पष्ट किया कि भूस्खलन कैसे हुआ इसका मूल्यांकन प्रत्येक स्थान की स्थलाकृति के अनुसार किया जा सकता है। हालांकि, हर चीज का आधार भारी बारिश है।

 


Tags:

terrible-disaster-in-waynad

इस खबर को शेयर करें


Comments