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हर दौर की कमियां,हर दौर की उम्मीद:दिल्ली नगर निगम चुनाव 2017

राष्ट्रीय            Mar 16, 2017


दिल्ली से जगदीप सिंह सिन्धु।
मौसम के बदलाव के साथ ही दिल्ली में भी नगर निगम चुनाव की गर्मी बढ़ने लगी है। अप्रैल 2017 के आखिरी हफ्ते में नगर निगम के चुनाव संभावित हैं।

देश में गवर्नेंस की बदलती परिभाषाओं के बीच दिल्ली फिर एक बार अपने भाग्य की ओर टकटकी लगाये है। निरंतर बढ़ती आबादी और उससे जुड़ी जरूरतों के लिए व्यवस्थाएं बार—बार चरमराती हैं और अंधेरों में दिल्ली सिसकियाँ लेती हैं।

1958 में स्थापित दिल्ली नगर निगम दिल्ली में नागरिकों की मूल सुविधाओं के लिए सक्रिय रही है। दिल्ली नगर निगम 12 जोन में बंटा हुआ है लेकिन 2012 में दिल्ली नगर निगम को 3 अलग—अलग निगमो में बाँट दिया गया था उत्तर,दक्षिण व पूर्वी दिल्ली नगर निगम। वर्तमान में दिल्ली में नगर निगम में 272 वार्ड हैं उत्तर दिल्ली नगर निगम 104, दक्षिण दिल्ली नगर निगम 104, व पूर्वी दिल्ली नगर निगम 64।

दिल्ली में मतदाताओं में एक बड़ा वर्ग पूर्वांचल से आये लोगों का है, जिसके चलते भाजपा ने गायक मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी थी। मुस्लिम आबादी का दिल्ली में 10 विधान क्षत्रों अर्थात लगभग 40 -50 वार्डस में बाहुल्य है। असदुदीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की दस्तक हालाँकि माहाराष्ट्र व् मुम्बई के नगर निगम चुनावो में हो गयी है और दिल्ली में भी इसकी आहट सुनाई देने लगी है। सिख कांग्रेस सेअभी तक नाराज ही चल रहे हैं। हालाँकि अजय माकन को कांग्रेस ने चुनावो के लिए जिम्मेदारी दी है। आम आदमी पार्टी की ओर से दिल्ली को एक तरह से अनुपस्थित रहने वाला मुख्यमंत्री’ मिला है जिसकी शहर के प्रशासन में कोई दिलचस्पी नहीं है और सीधे सीधे लेफ़ गवर्नर से टकराव की स्थिति अक्सर बनाती रहती है।

2012 के नगर निगम चुनावो में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर और पूर्वी दिल्ली निगम में साफ बहुमत मिला था लेकिन दक्षिण दिल्ली नगर निगम में वो कुछ ही सीटों से पूर्ण बहुतमत से चूक गई थी।

दिल्ली की आबादी में ज्यादातर बहार से आये हुए लोग हैं, जो यहाँ स्थायी और अस्थायी तौर पर बस गए हैं। अनधिकृत कॉलोनियों और झुगी झोंपड़ी की बड़ी तदाद दिल्ली में हर क्षेत्र में है। दिल्ली में बुनियादी सुविधाओं में सफाई, सीवेरज, स्वास्थ्य, बिजली पानी की समस्या अभी तक गंभीर बनी हुए है। वाहनों की आबादी से यातायात व्यवस्था, जाम की तकलीफ का कोई स्थायी समाधन न हो पाने के कारण भी बहुत सी जगहों में हर रोज परेशानियों का सामना आम दिल्ली वासी को करना पड़ता ही है।

दिल्ली नगर निगम चनावों को सभी राजनैतिक पार्टियों ने में एक बार फिर स्थानीय मुद्दों को एक दूसरे की नाकामियों का अखाड़ा बना लिया है और अपनी जीत के लिए हर तरह से जोड़ तोड़ में लगी हैं!

भाजपा जो पिछले 10 सालों से नगर निगम पे काबिज है के लिए एक बड़ी चुनौती इन चुनावों में जीत हासिल करना है क्योंकिविधानसभा चुनाव 2015 में आम आदमी पार्टी की बड़ी जीत ने दिल्ली में भाजपा व कांग्रेस के वोट बैंक में एक जबरदस्त सेंध पहले ही लगा रखी है।

लांछन और नाकामियों के इस दौर में सभी पार्टियों को अपनी साख बचने के लिए हर और से चुनातियों का सामना है ! गंभीरता से कोई काम आम नागरिकों की जरूरतों के लिए हुआ कहीं दीखता नहीं ! समयबद्ध योजनओं की घोषणाओ से लेकर किर्यान्वन तक हर पहलु पर जाने कब से लकवाग्रस्त सी दिल्ली बैसाखियों पे चल रही है !

कांग्रेस के दौर में शीला दीक्षित के कार्यकाल में जो काम दिल्ली में ढांचागत सुविधाएं को ले कर हुए वो भरष्टाचार की दलदल में गर्त हो गए। हालाँकि 15 साल के शीला दीक्षित के कार्यकाल में बहुत से नए रोड का निर्माण, पुलों का निर्माण, पीने के पानी की पाईप लाइन्स और अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करना, मेट्रो सेवा की शुरआत का काम हुआ लेकिन उनका कोई सार्थक लाभ कांग्रेस को मिला नहीं।

आम आदमी पार्टी के उत्थान के बाद अब दिल्ली में राजनीती के समीकरण भी बहुत बदल गए हैं। जहाँ एक ओर आम आदमी पार्टी दिल्ली को लन्दन बनाने के सपने दिखने में लगी है वहीं भाजपा और कांग्रेस के पास कोई ठोस कार्य योजनाएं दिल्ली की जनता के लिए है नहीं, फिर भी दावे तो हैं ही। देखना होगा कि किन नीतियों और वायदों का असर मतदातओं पे किस तरह होता है और किस के भाग्य का फैसला मतदाता करता है।



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