डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
कॉमेडी भी राजनीति की तरह ही सीरियस बिजनेस है। अजय देवगन ने भी नीतीश कुमार की तरह फिल्म 'दे दे प्यार दे 2' में एक्टिंग में बाजी मार ली है। तेजस्वी की तरह काम तो आर. माधवन ने बढ़िया किया, लेकिन उन्हें फिल्म में हीरोइन तो मिल ही नहीं सकती थी, क्योंकि वे उसके बाप के रोल में थे।
जैसे तेजस्वी अपने पिता का बैगेज ढोते ढोते पिछड़ गए, वैसे ही माधवन का काम भी है, शानदार लेकिन श्रेयहीन।
जावेद जाफरी फिल्म में हीरो के फ्रेंड, फिलासफर और गाइड हैं, जैसे राहुल गाँधी बिहार में तेजस्वी के रहे। बिहार चुनाव के नतीजे आये उसी दिन फिल्म लगी तो चर्चा भी उसी अंदाज में।
ऐसा लगता है कि बिहार चुनाव का प्लाट ही फिल्म की कहानी में कॉपी-पेस्ट हो गया है। फिल्म में बुजुर्ग नीतीश और युवा की तरह ही कॉम्पिटिशन है। जैसे बिहार की जनता ने बुजुर्ग नीतीश को पसंद किया, हीरोइन को अपने पिता की उम्र समान 'अनुभवी' और तलाकशुदा बुजुर्ग से 'प्रेम' हो जाता है।
फंडा स्पष्ट है कि बुजुर्ग मालदार है और केयरिंग है। जैसे बुजुर्ग नीतीश ने बिहार में बहनों के खाते में दस-दस हजार डलवाये थे, वैसे ही बुजुर्ग को पैसे की कोई कमी नहीं है। कभी भी लंदन, कभी भी चंडीगढ़! जैसे बांद्रा और चर्चगेट की यात्रा।
जैसे बिहारियों को 'नीतीश' जैसा स्टेबल लवर पसंद आया, फिल्म में हीरोइन को भी ऐसा ही लगा। लेकिन कोई भी चीज़ आसानी से किसको मिलती है? नाच- गाना भी करना पड़ता है, आंसू भी बहाने पड़ते हैं, लोक गीत भी गाने पड़ते हैं! बिहार चुनाव में लोक गीत थे, फिल्म में यो यो हनी सिंह के गाने !
अजय देवगन फिल्म में 'नीतीश' जैसा स्टेबल लवर है, युवा गर्लफ्रेंड की फैमिली (बिहार की जनता) को कन्विंस करता है। होता वही है। बिहार की जीत जैसा - सब सोच रहे थे विपक्ष (फैमिली) जीतेगा, लेकिन हीरो के 'सुशासन' (सत्ता, धन और संगठन) ने सबको हरा दिया।
सरप्राइज का लेवल? चुनाव के नतीजों जैसा क्लाइमेक्स ! फिल्म में अजय देवगन ने जैसे ऊंटपटांग डांस किया उसकी तुलना बिहार में नेताओं के ऊलजलूल भाषणों से की जा सकती है। फिल्म में माधवन, अजय देवगन, रकुल प्रीत सिंह, तब्बू, जावेद जाफरी, गौतमी कपूर, इशिता दत्त आदि कलाकार हैं।
बिहार और राजनीति की चर्चा से ऊब गए टीवी दर्शक इस फिल्म को देखकर राहत पाएंगे। फिल्म गुदगुदाती कम, झेलाती ज्यादा है। 'चीनी कम' जैसी बात इसमें नहीं है!
टालेबल फिल्म ! टाल सकते हैं !
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