डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
फिल्म द बंगाल फाइल्स देखेने गया, तब सेंसर सर्टिफिकेट में उसकी अवधि 204 मिनट से ज्यादा देखकर चौंका। इत्ती लम्बी, करीब साढ़े तीन घंटे की फिल्म। मैंने पॉकेट डायरी और पेन निकाला और कुछ उसके कुछ डायलॉग्स नोट किये :
- हालात के मामलों में बंगाल, नया कश्मीर है। (आशय 1990 वाला)।
- मिनी पाकिस्तान इन इंडिया।
- ये इंडिया नहीं, बंगाल है।
- इस्लाम कबूल करो, भागो या मरो।
- बटेंगे तो कटेंगे। मरना नहीं, मारना है।
- बंगाल कोई जमीन का टुकड़ा नहीं है, बंगाल भारत की आत्मा है।
- जंग में दुश्मन को मारना होता है, बचाना नहीं होता।
- अगर मुसलमान 10 प्रतिशत होंगे तो वे वोट का हक़ मांगेंगे, 20 प्रतिशत हुए तो अपना उम्मीदवार मांगेंगे और अगर 30 प्रतिशत हुए तो हुकूमत मांगेंगे।
- मैं 2050 में इण्डिया का पीएम बनना चाहता हूं, देश का पहला मुसलमान पीएम (एमएलए का दस साल का बच्चा)।
- मुसलमान अपने आप में एक मुल्क हैं।
- काफिरों को जीने का कोई हक़ नहीं।
- क्या कोई भी काफिर किसी मुसलमान के बराबर हो सकता है?
- भारत का विभाजन आठ लोगों ने एक टेबल पर किया था
- कुछ लोग राजनीति का खेल खेलते हैं, उनके लिए दंगा करवाना ही राजनीति है, वे राजनीति को खेल समझते हैं।
- वे राक्षस हैं, ऐसे राक्षस जो कभी देवता का रूप धार लेते हैं और कभी राक्षस का। काम उनका एक ही होता है।
- तुम हिंदुस्तान को मां मानते हो, हम नहीं मानते।
- रावण को मारे बिना रामराज्य नहीं आ सकता।
- आपने मुसलमानों का ब्रेनवाश कर रखा है । (गांधी जी जिन्ना से कहते हैं।)
- आपने हिन्दुओं को हिप्नोटाइज़ कर रखा है। (जिन्ना जवाब में कहते हैं।)
- गांधी की अहिंसा हिन्दुओं का नशा है।
- अपने आंसू खुद पोंछ लो, कोई और पोंछेगा तो सौदा करेगा। (यह बात जावेद अख्तर इंटरव्यू में कहते रहते हैं।)
- मुसलमानों के खिलाफ ब्राह्मण, राजपूत, गुर्जर, जैन और सिख इकठ्ठा हैं लेकिन यादव उसमें शरीक नहीं, क्योंकि वे कहते हैं कि यह बंगाल का मामला है।
- भीड़ से बचना चाहिए, भीड़ कुछ भी कर सकती है।
- कांग्रेस हिन्दुओं की पार्टी है, जिसका अध्यक्ष मौलाना है।
- टोपी पहनो मत, पहनाओ।
- कठपुतली को पता नहीं होता कि वह किसके इशारे पर नाच रही है !
- जो शादी में नाचने आ जाते हैं, वे शादी नहीं कर सकते।
- बंगाल जो आज सोचता है, कल पूरा भारत वैसा सोचेगा।
- फिल्म के जिन्ना पाकिस्तान जाते-जाते कहते हैं कि जो 45 प्रतिशत मुसलमान यहाँ रुक रहे हैं, वे सेक्युलर इण्डिया में अच्छे नागरिक साबित होंगे।
ये सब डायलॉग फिल्म में हैं, जिन्हें सेंसर यानी फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने पास किया है। (मेरे शब्दों में कुछ टूट-फूट हो सकती है।) बंगाल में फिल्म रिलीज नहीं हुई है और किसी होटल में भी फिल्म का ट्रेलर लांच नहीं होने दिया गया है। फिल्म के निर्माताओं पर कई केस लगे हैं।
फिल्म 1946-1947 की पृष्ठभूमि की है। उसकी तुलना आज के बंगाल से है। फिल्म में इतिहास के तमाम किरदार मौजूद हैं। जिन्ना भी है, गांधीजी भी। अनुपम खेर गांधी जी बने हैं। फिल्म में गांधी जी को जब बोलना होता है, तब वे मौन रहते हैं। जब उनसे बंगाल पर चर्चा के लिए कहा जाता है, तब वे अपनी बकरी का दूध निकालने की बात करते हैं। गांधी जी को एक लाचार, हारा हुआ बूढ़ा दिखाया गया है। जो लेटे रहते हैं या अपना माथा कूटते रहते हैं। ''जिन्ना, मेरे भाई ! तुम जानते ही हो कि मैं मुसलमानों का सच्चा दोस्त हूं।'' नोआखाली में दस हजार हिन्दू मारे गए और गांधी जी वहां गांधी जी वैष्णव जन तो तेने कहिये गा रहे होते हैं।
फिल्म में सीबीआई के नाम पर दो अधिकारी दिखाए गए हैं। एक सीबीआई चीफ और दूसरा बंगाल में एक दलित युवती के अपहरण का केस सुलझाने गया आईपीएस जांच अधिकारी, जो कश्मीर का पीड़ित पंडित है। चीफ एकदम डरपोक, फट्टू किस्म का अफसर है जो अपने मातहत को गुंडों से माफ़ी मंगवाता है। बंगाल की पुलिस गुंडों के साथ है। मिथुन चक्रवर्ती ऐसे पुलिस वाले थे, जिनका जननांग गुंडों ने काट दिया था और जुबान जला दी थी। तुतलाकर वे अपने संवाद और मोनोलॉग बोलते हैं।
फिल्म को A प्रमाणपत्र मिला है। हिंसा का अतिरेक है। आधी फिल्म वीभत्स है। अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी, दर्शन कुमार, और नमाशी चक्रवर्ती प्रमुख कलाकार हैं। पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार के लम्बे-लम्बे मोनोलॉग हैं। पल्लवी जोशी करीब सौ साल की वृद्धा के रोल में है।
फिल्म की टैगलाइन है : If Kashmir Hurt You, Bengal Will Haunt You(अगर कश्मीर ने तुम्हें चोट पहुंचाई, तो बंगाल तुम्हें बेचैन करेगा। ) विवेक रंजन अग्निहोत्री की यह उनकी "फाइल्स" त्रयी की तीसरी और अंतिम कड़ी है, जिसमें पहले द ताशकंद फाइल्स (2019) और द कश्मीर फाइल्स (2022) आ चुकी हैं। यह फिल्म 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे और नोआखली दंगों पर आधारित है, जो अविभाजित बंगाल में हुए सांप्रदायिक हिंसा के भयावह दौर को दर्शाती है।
कथानक एक कश्मीरी अफसर, शिवा पंडित, के इर्द-गिर्द घूमता है, जो एक किडनैप हुई लड़की, गीता मंडल की तलाश में बंगाल के मिशन पर आता है। कहानी में ट्विस्ट और टर्न्स हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स दर्शकों को भावनात्मक, वैचारिक और सांप्रदायिक रूप से झकझोरने की कोशिश करता है। फिल्म की लंबाई इसे धीमा और फैला हुआ बनाती है। कुछ दृश्य अनावश्यक रूप से लंबे हैं और तारतम्यता की कमी महसूस होती है। जिससे कहानी का प्रवाह प्रभावित होता है। हिंसा के कई सीन इतने वीभत्स हैं कि वे दर्शकों को असहज करते हैं। कहानी में भावनात्मक जुड़ाव की कमी है।
फिल्म का पहला गाना 'किचुदिन मोने मोने', पार्वती बाउल द्वारा गाया और कंपोज किया गया, पारंपरिक बंगाली माहौल को खूबसूरती से पेश करता है और डायरेक्ट एक्शन डे के दर्द को संगीतमय रूप से व्यक्त करता है। हिंसा और भय के दृश्यों को रॉ और ब्रूटल तरीके से फिल्माया गया है, जो दर्शकों को उस दौर की भयावहता का अहसास कराता है। कुछ दृश्यों में छायांकन जरूरत से ज्यादा ड्रामेटिक है।
ये फिल्म आपको विचलित कर सकती है। हर कोई इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। कारण कई हैं।
अ-बर्दाश्त-नीय !
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