Breaking News

गाने की एक लाइन में जीवन दर्शन: 'संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे

पेज-थ्री            Oct 04, 2023


 

प्रकाश हिन्दुस्तानी।

''हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं, जो हमें करना पड़ता है।'' यही सन्देश था भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास चित्रलेखा का, जो 1934 में प्रकाशित हुआ था। चन्द्रगुप्त मौर्य काल की ऐतिहासिक घटना के आधार पर यह उपन्यास फ़िल्मकार केदार ( या किदार) शर्मा को वह इतना पसंद आया था कि उन्होंने 1941 में महताब, ऐ. एस. ज्ञानी, नंदरेकर, भारत भूषण, लीला मिश्रा, मोनिका देसाई आदि को लेकर फिल्म बनाई थी। इसमें "तुम जाओ बड़े भगवान बने, इंसान बनो" गाना लोकप्रिय हुआ था, जो केदार शर्मा ने ही लिखा था। इसका संगीत झंडे खान का था।

उस साल की यह दूसरी सुपरहिट फिल्म थी। इसमें हीरोइन थीं सूरत पास की सचिन रियासत के नवाब की बेटी मिस महताब। हीरो भारत भूषण की यह पहली फिल्म थी और महताब ने श्वेत श्याम फिल्म में सनसनीखेज स्नान सीन फिल्माया था।

1941 की फिल्म के कामयाबी के बाद भी केदार शर्मा ने उसी उपन्यास पर 1964 में अशोक कुमार, मीना कुमारी, प्रदीप कुमार और मेहमूद को लेकर दोबारा फिल्म बनाई। तब तक उपन्यास की लाखों प्रतियां बिक चुकी थीं।

देश भी आज़ाद हो चुका था। धर्म के नाम पर ठेकेदारी ने नया रूप ले लिया था। गरीब मज़दूर और किसानों को पाप और पुण्य की बातों में फंसाकर उनका शोषण करने का दौर बदस्तूर जारी था। आज भी कुछ लोग 'नास्तिकता' का जामा ओढ़ कर वास्तविक धर्म यानी सत्य,अहिंसा : मनसा-वाचा-कर्मणा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य को नहीं मानते। कुछ कथित धर्मगुरु और नेता ढोंग, पाखंड, आडंबर और धंधेबाजी को धर्म या सनातन का नाम देते हैं और अपना धंधा चलाते हैं।

संसार से भागे फिरते हो

भगवान को तुम क्या पाओगे

इस लोक को भी अपना ना सके

उस लोक में भी पछताओगे

इस गाने के संवाद नुमा बोल साहिर के थे जिसमें एक गणिका यानी इस्मतफ़रोश अथवा धर्षिता चित्रलेखा (मीना कुमारी) और एक योगी कुमारगिरि (अशोक कुमार ) के संवाद हैं। विधवा तवायफ के प्रेम में राजकुमार (प्रदीप कुमार) कामकाज से भटक गया है और उसके पिता ने योगी को चित्रलेखा के पास 'ज्ञान' देने के लिए भेजा है। योगी तवायफ को ज्ञान देना चाहता है, पाप और पुण्य समझाना चाहता है।

जब योगी कुमारगिरि चित्रलेखा को निर्वाण प्राप्त करने के लिए अपनी 'पापी' जीवन शैली छोड़ने का आदेश देता है और नर्क का हवाला देता है तब गणिका उस योगी को ही ज्ञान की घुट्टी पिला देती है :

ये पाप है क्या ये पुण्य है क्या

रीतों पर धर्म की मोहरे हैं

हर युग में बदलते धर्मों को

कैसे आदर्श बनाओगे

चित्रलेखा योगी को समझाती है कि कर्म छोड़कर भागने से क्या होगा? संसार से भागे फिरते हो, संसार में काम करके बताओ। वह पूछती है क्या है पाप? क्या है पुण्य? क्या है भगवान, कौन है भगवान? आध्यात्मिक पाखंड को छोड़ो मनुष्य के सामने मौजूदा हालात पर बात करो। वह कहती है कि हम सब को ईश्वर ने किसी हेतु या लक्ष्य के लिए बनाया है। उसने मनुष्य को सृजन के लिए पैदा किया है, साधु बनने के लिए नहीं। संसार काम से चल रहा है, सभी योगी होंगे तो? इतना ही नहीं, वह अपनी व्याख्या करती है कि संसार में भगवान ने हमें भोग करने के लिए ही रचा है और यही तपस्या है, ब्रह्मचारी हो जाना तपस्या नहीं।

ये भोग भी एक तपस्या है

तुम त्याग के मारे क्या जानो

"यदि आप सृजन के कार्य को अस्वीकार करते हैं तो यह स्वयं संसार के रचयिता का अपमान होगा", अत: त्याग की बात करो साधु! यह तो भगवान् का अपमान है :

रचना को अगर ठुकराओगे

संसार से भागे फिरते हो

चित्रलेखा योगी को इतना ही नहीं समझाती, बल्कि यह भी कहती है कि तुम अपना ज्ञान अपने पास ही रखो गुरुवर ! हम संसार में अपना जनम बिताकर ही बाइज्जत जाएंगे, जनम गंवाएंगे नहीं :

''हम कहते हैं जग अपना है

तुम कहते हो झूठा सपना है

हम जनम बिता कर जाएंगे

तुम जनम गँवा कर जाओगे''

कर्म का सिद्धांत क्या है? कई धर्म कहते हैं कि मनुष्य को अपने किए हुए शुभ या अशुभ कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है।

रामचरित मानस के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल भुगतना पड़ता है। श्रीकृष्ण ने गीता में कर्म को प्रधानता देते हुए यहां तक स्पष्ट किया है कि व्यक्ति की यात्रा जहां से छूटती है, अगले जन्म में वह वहीं से प्रारंभ होती है। जो प्रकृति के नियमों का पालन करता है। वह परमात्मा के करीब है, लेकिन ध्यान रहे यदि परमात्मा भी मनुष्य के रूप में अवतरित होता है तो वह उन सारे नियमों का पालन करता है जो सामान्य मनुष्यों के लिए हैं। इसलिए कर्मों के द्वारा परमात्मा का पूजन तो करना चाहिए, पर उन किए हुए कर्मों और संसाधनों के प्रति अपनी आसक्ति न बढ़ाएं।नहीं बढ़ानी चाहिए। गीता के अनुसार जो कर्म निष्काम भाव से ईश्वर के लिए जाते हैं वे बंधन नहीं उत्पन्न करते। कर्मफल तथा आसक्ति से रहित कर्म करना वास्तविक कर्म है।

कबीर ने कर्म को ही बड़ा बताया, कर्मकांड को नहीं। वे तो ईद, रोजा आदि को भी महत्त्व नहीं देते थे, इंसान और कर्म पर उनका जोर था। उन्होंने कहा था -

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर |

कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर ||

ओशो ने कहा था : दबाने से सिर्फ इंद्रियां परवर्ट होती हैं, विकृत होती हैं और सीधी मांगें तिरछी बन जाती हैं; और हम सीधे न चलकर पीछे के दरवाजों से पहुंचने लगते हैं; और पाखंड फलित होता है। साहिर ने इसे अलग शब्द दिए हैं।

साहिर का लिखा पूरा गाना :

संसार से भागे फिरते हो

भगवान को तुम क्या पाओगे

इस लोक को भी अपना ना सके

उस लोक में भी पछताओगे।।

ये पाप है क्या ये पुण्य है क्या

रीतों पर धर्म की मोहरें हैं

हर युग में बदलते धर्मों को

कैसे आदर्श बनाओगे।।

ये भोग भी एक तपस्या है

तुम त्याग के मारे क्या जानो

अपमान रचेता का होगा

रचना को अगर ठुकराओगे।।

हम कहते है ये जग अपना है

तुम कहते हो झूठा सपना है

तुम कहते हो झूठा सपना है

हम जनम बिता कर जायेंगे

तुम जनम गँवा कर जाओगे।।

संसार से भागे फिरते हो

भगवान को तुम क्या पाओगे

संसार से भागे फिरते हो....

फिल्म : चित्रलेखा

गीतकार : अब्दुल हयी फजल मोहम्मद चौधरी उर्फ़ 'साहिर लुधियानवी'

गायिका : लता दीनानाथ मंगेशकर

संगीतकार : रोशन लाल नागरथ 'रोशन'

 



इस खबर को शेयर करें


Comments