डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी।
ई ससुर 2 नंबर का असुर तो बहुतई जल्लाद है रे ! माइथोलॉजी का मुरब्बा !!
अगले सप्ताह रामायण पर आधारित 500 करोड़ रुपये के बजट वाली बहुचर्चित फिल्म 'आदिपुरुष' रिलीज होने वाली है।
लेकिन उसके पहले ओटीटी के जियोसिनेमा प्लेटफॉर्म पर माइथोलॉजिकल थ्रिलर वेब सीरीज आई है।
इसमें एक-एक घंटे के 8 एपिसोड हैं। माइथोलॉजिकल सीरीज़ या फिल्मों में असत्य पर सत्य की जीत दिखाई जाती है लेकिन इस असुरी पूरी सीरीज़ में बुराई बुराई दिखाई गई है।
असुर यानी खुद को कली का अवतार बताने वाला पात्र अच्छे लोगों की हत्या करता है और बकता है -"बुराई ही धर्म है, लगाव ही पीड़ा है, करुणा ही क्रूरता है और अंत ही आरंभ है!"
लॉकडाउन के दौरान 2020 में असुर आई थी।
उसमें सीरियल किलर को सजा हो जाती है और वह जेल चला जाता है। लेकिन तब वह बच्चा था। अब वह बड़ा हो गया है और अब उसमें नफरत और बदले की आग है।
जेल जाते वक्त उसने तय कर लिया था कि वह आगे जाकर असुर बनेगा यानी राक्षस !
दानव !! अब उसका मकसद है दुनिया में कलयुग को फैलाना ! वह जेल से अपने भागे हुए साथी की हत्या कर देता है और कहता है कि जब इंसान के कर्तव्य और उद्देश्य खत्म हो जाए तो उसके शरीर का कोई महत्व नहीं रहता !
जिस तरीके से हत्या दिखाई जाती है कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह हत्या पर हत्या को अंजाम देता जाता है, और उसे पकड़ने के लिए जुटे हैं सीबीआई से निकाले गए अधिकारी और अन्य! जिनके अपने रांडी-रोने भी होते हैं।
असुर 2 में शुरू के 3 एपिसोड तो बांधे रहते हैं लेकिन उसके बाद कहानी कमजोर होने लगती है क्योंकि डायलॉग के जरिए ही पूरा घटनाक्रम को दिखाने की कोशिश की गई है। यह बात जमती नहीं है। अंत में वही होता है जो बुराई का होना चाहिए।
असुर के पहले सीजन में लोगों को शिकायत थी कि आखिरी के एपिसोड बहुत खींचे गए हैं। अंत थोड़ा बोझिल हो गया था उसी की कहानी को आगे बढ़ा कर यह असुर 2 रचा गया है। पिछले सीजन में कुछ ऐसे किरदार थे जो नैतिक थे लेकिन इस बार नैतिक किरदार भी अनैतिक हो जाते हैं !
अरशद वारसी ने इसमें सीबीआई अधिकारी धनंजय कपूर की भूमिका की है और फॉरेंसिक एक्सपर्ट निखिल नायर की भूमिका बरुन सोबती ने निभाई है, जो कलयुग में पैदा हुए असुर को रोकने की कोशिश में लगे हुए हैं। दोनों अधिकारियों के जीवन में बहुत कुछ घटता ही जाता है और हालात पल पल बदलते जाते हैं।
माइथोलॉजिकल कहानी के बहाने फिल्मों और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बहुत कुछ परोसा जा रहा है इसमें से कुछ ही सार्थक होता है ! हिंसाप्रधान इस सीरीज को देखकर मेरा मन विचलित होने लगा, लेकिन लाखों लोगों को यह सीरीज पसंद आ रही है।
माइथोलॉजी के नाम पर कुछ भी झेला नहीं जा सकता! यह सीरीज़ माइथोलॉजी का मुरब्बा है जो युवा दर्शकों की जुबान पर चढ़ रहा है।
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