डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
दशकों पहले मैं कभी सुनील दत्त साहब से मिला था, तब एक पार्षद उनके साथ था, वह बाबा सिद्दीकी था। मुझे वह दत्त साब का मामूली छर्रा लगा था पर, वह था दत्त साहब का प्रिय!
दशहरे के दिन दस मुख वाले दशानन के दहन के बाद अनेक चेहरेवाला बाबा सिद्दीकी दफ्तर के सामने अपने बेटे के साथ पटाखे फोड़ रहा था कि उस पर 3 गोलियां चली। दस मिनट में पूरा खेल खत्म!
वो बिहारी था, मुम्बई में आकर नेता बना। पहले एनएसयूआई, फिर यूथ कांग्रेस, फिर नगर सेवक (पार्षद) और दुबारा नगरसेवक और 1999 में एमएलए। दो बार और एमएलए बना। मंत्री रहा। म्हाडा का चेयरमैन रहा। ज़मीन से जुड़ा था। ज़मीन के धंधे में रहा। खूब कमाया। नेता, अभिनेता, बिल्डर, दलाल, उद्योगपति, बिल्डर, डॉन, गैंगस्टर आदि का फेवरेट बन गया।
सुनील दत्त साम्प्रदायिक तनाव के दौर में भी रमजान में इफ्तार पार्टियां देते थे। उनके निधन के बाद यह परंपरा बाबा ने जारी रखी। बांद्रा पश्चिम का विधायक होने के नाते उसने इलाके के रहनेवाले फिल्मी लोगों से मेलजोल बढ़ाया। उनके लिए और उनकी प्रॉपर्टी की डील करने लगा। फिर उन्हें इफ्तार पार्टी में बुलाने लगा। उसकी इफ्तार पार्टी फेमस हो गई। मीडिया कवरेज होने लगा। बाबा खुद सेलेब्रिटी बन गया।
विधायक, बिल्डर, धनपशु, प्रॉपर्टी डीलर, होटेलियर, दादा, पेलवान, भिया आदि ऑल इन वन होने के कारण सभी लोग उसकी इफ्तार पार्टी में दौड़े आने लगे। सलीम खान और सलमान का परिवार, शाहरुख खान, शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा, सैफ अली खान, करीना कपूर खान, संजय दत्त, वरुण धवन, रणवीर कपूर, आलिया भट्ट, सिद्धार्थ मल्होत्र, शत्रुघ्न सिन्हा, सोनाक्षी सिन्हा, जावेद अख्तर, शबाना आज़मी, जावेद हबीब, करण जौहर,आदि आदि इत्यादि इफ्तार पार्टी की रौनक बढ़ाते। अफसर भी आते, अंडरवर्ल्ड के लोग भी।
उस इफ्तार में आना धार्मिक कम, स्टेटस सिंबल ज्यादा हो गया था। जिसने मन्नत बंगले का सौदा कराया हो, उसके यहां शाहरुख क्यों न जाए? जो शख़्स संजय दत्त की गर्दिश के दिनों में साथ हो, उसे संजय कैसे मना करे? जो राज कुंद्रा की मदद करे उसके यहां शिल्पा और शमिता क्यों न जाये? वह इफ्तार पार्टी वास्तव में पीआर और ग्लैमर का इवेंट बन चुकी थी। फ़िल्म और टीवी के नए कलाकार उसमें जाने के लिए मरते थे।
महाराष्ट्र में कांग्रेस की सत्ता चली गई तो बिना सत्ता के दाल कैसे गलती? बंदा एनसीपी में चला गया, और जब उसमें दो फाड़ हुए तो अजित पवार के साथ। जहां पे दम, वहां पे हम! जहाँ पे सत्ता,, वहां पे पट्ठा !
अडानी तो धारावी का विकास अब कर रहे हैं, बाबा तो बांद्रा की एक मलिन बस्ती विकसित कर गरीबों को खोली दे चुका हैं।
एक बार कटरीना कैफ की बर्थ डे पार्टी में शाहरुख और सलमान भिड़ गए। करण-अर्जुन में कोल्ड वार शुरू हो गया। कई लोगों का धंधा प्रभावित हुआ, वे बाबा के पास गए, कुछ करो बाबा, प्लीज़।
बाबा पिघल गए। दोनों को बुलाया। उर्दू में समझाया, एक साथ रहो वरना भारी घाटा होगा। दोनों व्यापारी ठहरे। घाटा अफोर्ड ही नहीं कर सकते थे। ब्रांड पिघल जाएगा। विज्ञापन वाले नहीं पूछेंगे। कच्छे बनियान वाले, गुटके वाले भूल जाएंगे। शादी में लोग नाचने के पैसे नहीं देंगे। मन्नत के कैम्पस में बनी छह मंजिला ऑफिस बिल्डिंग की नपती शुरू ही जाएगी। (मन्नत की गली में वैनिटी वैन के लिए बनाया गया अवैध प्लेटफार्म बीएमसी तोड़ चुका था।)
तो फिर सरेंडर करना फायदे का सौदा था। धन्धे का फंडा है कि लड़ाई में नफा हो तो वो करो, गले मिलने में प्रॉफिट हो तो गले मिल जाओ।
उधर ईडी वाले भी बाबा के पीछे थे। चार सौ करोड़ के लेनदेन का मामला था। प्रॉपर्टी अटैच कर ली गई थी। सीएम साब ने मदद की। ईडी ने टेंटुआ ढीला कर दिया।
लेकिन कुछ लोग थे, जो साथ में नहीं थे। कई एक्टर्स, बीजेपी, शिवसेना और राज ठाकरे की पार्टी के नेता। कई ऐसे थे जो धंधे में मुकाबले में थे। सरकार से वाई सिक्योरिटी मिली थी, बड़े लोगों को जान का खतरा तो रहता ही है।
सुरक्षा को सबसे कमजोर कड़ी से ही खतरा रहता है। मौका मिला तो दुश्मन ने सेंध मार दी।
बाबा के आसपास सलमान-शाहरुख की यह तस्वीर प्रतीकात्मक है। जरा देखिए कि आपके शहर में, संसदीय और विधानसभा क्षेत्र में ऎसे कितने बाबा सिद्दीकी हैं जो फर्श से अर्श की तरफ जा रहे हैं। उनके काम क्या हैं और वे कैसे प्रस्तुत किये जा रहे हैं? कोई यूथ आइकॉन हैं, कोई एक्सवायजेड के ह्रदय सम्राट! कोई न्याय के देवता के रूप में है कोई पर्यावरण के परम साधक। ईश्वर सभी का भला करे, लोकल बाबा सिद्दिकियों का भी। किसी का अंत ऐसा न हो!
*भूल-चूक लेनी-देनी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और डंडिया डायलॉग के संपादक हैं। यह टिप्पणी उनके फेसबुक वॉल से ली गई है।
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