डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
अगर स्वादिष्ट बनी खीर में कोई हींग का छौंक लगा दे तो? ... तो गणपत जैसी फिल्म बन जाती है। फिल्म की टेक्नोलॉजी यानी ढांचा तो मर्सेडीज़ का है लेकिन कहानी रूपी इंजन मारुति 800 का। यह जोड़ी बेमेल हो गई। यह फिल्म केवल और केवल टाइगर श्रॉफ के लिए बनी है। टाइगर के एक्शन, डांस और फाइट के लिए।
इसमें अमिताभ बच्चन और कृति सेनन फ़ोकट खर्च हो गए बेचारे!
इस फिल्म की सबसे बड़ी कमी है कहानी में ! दर्शक उससे कनेक्ट ही नहीं हो पाता। निर्माता इसे स्पोर्ट्स फिल्म कहकर प्रचार कर रहे हैं। 2070 की कहानी बनाई गई है। 'गणपत' डायस्टोपियन एक्शन फिल्म है। काल्पनिक दुनिया की कहानी।
यहां दुनिया दो भागों में बँटी हुई है। अमीर और गरीब। अमीर भोग विलास में लिप्त हैं, ग़रीब रोते रहते हैं। उन्हें उम्मीद रहती है कि उनकी दुनिया में कोई गणपत आएगा और उद्धार कर देगा। अमीर भी बॉक्सिंग रिंग में, गरीब भी बॉक्सिंग रिंग में है। बॉक्सिंग रिंग के कारण ही उनकी दुनिया की बुरी गत हुई थी, बॉक्सिंग के कारण ही उनका उद्धार होता है। गणपत आता है, बॉक्सिंग करता है। गरीब अपना सब कुछ बॉक्सिंग के सट्टे में लगा देते हैं और जीत जाते हैं, उनकी दुनिया बदल जाती है।
साला बॉक्सिंग रिंग नहीं हुआ, रतन खत्री का अड्डा हो गया। आईपीएल के जुआ हो गया!! बिना कुछ किये माल अंदर। गरीबी दूर!
कहानी में टेपेपन की पराकाष्ठा है। फिल्म में 80 प्रतिशत समय टाइगर श्रॉफ ही परदे पर नजर आते हैं। बॉक्सिंग करते हुए, कुंग फू या कराटे करते हुए और बचे समय में डांस करते हुए।
अमिताभ की बात सब मानते हैं लेकिन वे हरामखोर वर्ग को कहते हैं कि एक दिन गणपत नामक मसीहा आएगा और सबके कष्ट दूर हो जायेंगे। लोग कुछ करने के बजाय मसीहा का इन्तजार करते हैं। फिल्म में कृति सेनन का काम दर्शकों को नहीं, टाइगर श्रॉफ को एंटरटेन करना ही रहता है। इसी में लगी रहती हैं बापड़ी!
फिल्म 2070 के दौर की यानी भविष्य की है। फिलिस्तीन और इजराइल के युद्ध को दुनिया देख रही है, लेकिन फिल्म में लड़ाई होती है ढिशुम ढिशुम में। बॉक्सिंग से दुनिया बदल जाती है क्योंकि बेचारे हीरो को और कुछ तो नहीं आता है?
फिल्म में मुझे दो डायलॉग बहुत पसंद आये - जब टाइगर श्रॉफ कहता है कि (1) "उम्मीद बड़ी कुत्ती चीज है।" और (2) "तुम गरीबों को उम्मीद दोगे तो वे तुम्हें अपना सब कुछ दे देंगे।"
अब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उस संदर्भ में ये बात खरी है। फिल्म में संदर्भ अलग थे। ये फिल्म का पहला पार्ट है। गणपत 2 भी आएगी। यह फिल्म पांच भाषाओं में बनी है।
*अगर आप टाइगर श्रॉफ के फैन हैं तो ही यह फिल्म आपके लिए है। डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
नोट : अतिरिक्त ज्ञानचंदी यह है कि काल्पनिक कहानियों को लेकर अक्सर साइंस फिक्शन फ़िल्में बनती रही हैं। जॉर्ज ऑरवेल ने 1984 जैसा उपन्यास करीब 80 साल पहले ही लिख दिया था जो 1949 में प्रकाशित हुआ था। जिस पर कई फ़िल्में और टीवी शोज़ बने हैं।
डायस्टोपियन / डिस्टोपियन शब्द डिस्टोपिया ( Dystopia ) से बना है जो यूटोपिया (Utopia) का विलोम है। डायस्टोपियन को अमानवीय , अत्याचारी, पर्यावरणीय आपदा या समाज में प्रलयकारी गिरावट से जोड़कर देखा जाता है। सरल शब्दों में कहें तो डिस्टोपिया शब्द यूटोपिया शब्द में लैटिन उपसर्ग डिस जोड़ने से आया है, जिसका अर्थ है बुरा। इसका मतलब है कि एक डिस्टोपिया भी एक यूटोपिया है जो गलत हो गया है।
हॉलीवुड में दर्जनों डायस्टोपियन फ़िल्में बन चुकी हैं। स्ट्रेंज डेज़ (1995), डार्क सिटी (1998), ए आई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (2001), एक्स मैन : डेज़ ऑफ़ फ्यूचर पास्ट (2014), स्टीवन स्पीलबर्ग की मायनॉरिटी रिपोर्ट (2002), इक्विलिब्रियम (2002) आदि आदि इत्यादि। उनमें से कई सुपरहिट भी हुई हैं। गणपत को भारतीय दर्शकों का रिस्पांस अच्छा नहीं है।
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