मप्र में 15 साल बाद दमदार टाइप विपक्ष और तलवार की धार पर कमलनाथ सरकार

राजनीति            Jun 14, 2019


प्रकाश भटनागर।
पन्द्रह साल लगातार सत्ता में रहने के बाद बाहर होना तकलीफदायक तो होता है। यह तकलीफ और ज्यादा होती होगी जब सत्ता चौथी बार किनारे आकर छिन जाए। यह सब इस समय मध्यप्रदेश भाजपा और शिवराज सिंह चौहान दोनों के साथ हो रहा है। विरोध करने और सड़क पर आकर विरोध करने के तेवर भाजपाईयों को जन्मघूटी में मिले हैं।

इसलिए मध्यप्रदेश के लोगों को कह सकते हैं कि दमदार टाइप विपक्ष के दर्शन पन्द्रह साल बाद हो रहे हैं। कांग्रेसियों की आदत सत्ता की रही है, इसलिए वे विपक्ष के खांचे में कभी खुद को सुविधाजनक महसूस नहीं कर पाए।

शायद इसलिए भी भाजपा को लगातार तीन बार सत्ता की चाबी हाथ लगी। चौथी बार लगते-लगते रह गई। इसलिए भारी शोरगुल के बीच एक अजीब-सा सन्नाटा पसरा है। तमाम निश्चित दिख रहे कार्यक्रमों को चीरकर देखें तो अनिश्चितता की धुंध ही हाथ लगेगी।

नेतागिरी की चहल-पहल चरम पर है, किंतु गौर से देखिये तो नेता दिख नहीं रहा है। यह हाल उस भारतीय जनता पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई का है जिसमें 13 साल तक शिवराज का निर्विघ्न नेतृत्व कायम रहा। लेकिन अब, और नहीं बस और नहीं, वाला मामला नजर आ रहा है।

तो भाजपा में आने वाला समय निर्णायक होगा और इस तथ्य से वाकिफ होते हुए भी बहुत कुछ होते रहने के बावजूद मामला शून्य से घिरा दिख रहा है।

अब बात करें कमलनाथ सरकार की। जिस तरह तलवार की धार पर कमलनाथ सरकार चल रही है उसमें साफ दिख रहा है कि सरकार की स्थिरता को लेकर मुख्यमंत्री को भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है।

सहयोगी ही नहीं कांग्रेस के विधायक भी मुख्यमंत्री पर दबाव बनाने में कामयाब हो रहे हैं। इसलिए कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों को लगता भी है कि कमलनाथ पांच साल सरकार चला ले जाएंगे।

मुख्यमंत्री कमलनाथ का ज्यादा समय राज्य मंत्रालय में बीत रहा है या फिर छिंदवाड़ा में। दिल्ली में तो अभी राहुल गांधी रूठे से हैं। वैसे भी नाथ जबसे मुख्यमंत्री बने हैं, भोपाल उन्हें ज्यादा रहना पड़ रहा है।

वल्लभ भवन के अपने कक्ष के भीतर बैठकर सबको खुश करने का जतन उनकी निरन्तर कोशिशों का हिस्सा है। विधायकों के काम को हाथों-हाथ वाली तवज्जो दी जा रही है। यह मुख्यमंत्री की सदाश्यता नहीं, मजबूरी है।

राज्य में मॉनसून के बादल छायें या न छायें, किंतु सरकार पर मुसीबत के बादल समय-समय पर छा रहे दिखते हैं। नाथ ‘प्री-मॉनसून मेंटेनेंस’ में जुटे हुए हैं। अंदरखाने की खबर यह कि अपने दल के विधायकों को बराबरी का महत्व देकर वह यह सुनिश्चित करना चाह रहे हैं कि सरकार मजबूती से कायम रहे।

जहां तक जनता के काम की बात है, तो कम से कम वह काम तो हो ही जा रहे हैं, जो विधायक के मार्फत मुख्यमंत्री तक पहुंचते हैं। यूं भी जनता के बीच जाने के मामले में नाथ का हाथ जरा तंग है। उनका ज्यादातर समय वल्लभ भवन में ही गुजर रहा है।

सरकारी तंत्र के सभी पहियें इस इमारत की पांचवीं मंजिल पर ही इधर से उधर चलकर प्रदेश की परिक्रमा का उपक्रम पूरा कर ले रहे हैं।

ऊपर बताये गये दो हालात के बीच गजब का साम्य है। भाजपा इस समय अति-आत्मविश्वास से भरी हुई है कि वह जब चाहे कमलनाथ सरकार को गिरा देगी। यह यकीन उसके नेताओं को अकड़ से भर रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद किसी भी समय कांग्रेस की सरकार जाती रहेगी।

शिवराज सिंह चौहान, गोपाल भार्गव, कैलाश विजयवर्गीय जैसे तमाम नेता कमलनाथ सरकार की जिन्दगी को लेकर कई बार बयान दे चुके हैं। कांग्रेस भी बराबर भाजपा पर विधायकों की खरीद फरोख्त की कोशिशों का आरोप लगाती रही है।

इसलिए शिवराज सिंह चौहान बहुत जल्दबाजी में अगर सड़क पर उतर आएं हैं तो उनकी बैचेनी को समझा जा सकता है। बलात्कार जैसी घटनाएं तो खुद उनकी सरकार के दौरान भी होती रही हैं। लेकिन इस समय भाजपा में अजीब सा माहौल यह है कि शिवराज अपनी सक्रियता अलग दिखा रहे हैं, गोपाल भार्गव अलग तो राकेश सिंह अपना अस्तित्व अलग प्रदर्शित करने पर तुले हैं।

अब ‘कैलाश विजयवर्गीय रिटर्न्स’ का दौर भी आ गया है। उनके द्वारा इंदौर में निकाली गयी किसान रैली ने चौहान और भार्गव की राजनीतिक उठापटक की आभा कुछ मंद कर दी है। इसी एक तथ्य से सवाल उठता है कि मध्यप्रदेश में भाजपा का नेता अब कौन होगा?

निश्चित ही शिवराज की लोकप्रियता काफी हद तक अब भी कायम है। भार्गव के पास नेता प्रतिपक्ष जैसी निर्णायक जिम्मेदारी है। लेकिन लगता नहीं कि भाजपा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भूमिका में आ चुके शिवराज अब आगे और मध्यप्रदेश में पार्टी को नेतृत्व दे सकेंगे। मध्यप्रदेश में उनकी पारी लगभग पूरी हो चुकी है।

हालांकि वे बार-बार घोषित तौर पर एलान करते रहे हैं कि वे मध्यप्रदेश में ही सक्रिय रहना चाहते हैं। पर मुझे नहीं लगता कि वे अब निकट भविष्य में भाजपा का शीर्ष चेहरा होंगे। हां, पार्टी उनकी लोकप्रियता का उपयोग जरूर कर सकती है।

हाल ही में लोकसभा चुनाव के जिस तरह के परिणाम आए हैं, उसमें यह भी संभव नहीं है कि शिवराज दिल्ली में कोई बड़ा रोल प्ले कर सकते हैं। केंद्र में सरकार का काम गति पकड़ चुका है।

राष्ट्रीय नेतृत्व का मामला जल्दी ही सुलझ जाएगा। इसके बाद जो होगा, उसकी एक तयशुदा प्रक्रिया यह हो सकती है कि शिवराज को दिल्ली तक सीमित कर दिया जाए। इससे विजयवर्गीय या फिर जिसे भी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आगे बढ़ाना चाहे उसे अपने भावी कदम तय करने में सुविधा हो।

इसके अलावा अब राकेश सिंह और सुहास भगत के लिए भी शिवराज की छाया से मुक्त होकर खुलकर काम करने का अवसर प्रकट हो जाना तय है। कैलाश विजयवर्गीय पश्चिम बंगाल में अपनी मार्कशीट में फर्स्ट डिवीजन पास हैं तो उनका भी कोई तो प्रतिफल तय होना ही है। हालांकि हो सकता है कि वे 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव तक वहां के दायित्व को संभालते रहें।

शिवराज की अगली भूमिका क्या तय की जाएगी? पहले से भी अधिक ताकत से केंद्र में सरकार बना चुकी भाजपा के संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं रहेगा। लेकिन बहुत कुछ करने का सुअवसर विजयवर्गीय के पास है।

अब वह शोले के कटे हाथ वाले ठाकुर नहीं हैं। बल्कि उस शक्तिशाली पुरुष की तरह दिखने लगे हैं, जिसके पास खुद के सहित मोदी और शाह जैसे हाथ भी हैं।

बहरहाल, लगता ऐसा ही है कि जब तक भाजपा में मध्यप्रदेश के नए नेतृत्व का फैसला नहीं हो जाता, कमलनाथ सरकार को दिक्कत नहीं होगी। लेकिन एक बार अमित शाह या मोदी ने मध्यप्रदेश में निगाह डाल कर यहां का असमंजस खत्म कर दिया, बस उसी दिन से कमलनाथ को सरकार चलाने में दिक्कत आना शुरू होगी।

हो सकता है विजयवर्गीय मध्यप्रदेश में कुछ बड़ा तिकड़म करने की जुगत में दिख रहे हैं। उनका यह बयान गौरतलब है कि कुछ कांग्रेस विधायक उनके पास कमलनाथ की सरकार गिरवाने के लिए आये थे।

जाहिर है कि ऐसा कहकर विजयवर्गीय ने संकेत दे दिया है कि इस सरकार को अस्थिर करने की भाजपा की फिलहाल योजना नहीं है। क्योंकि कुछ करना होता तो विजयवर्गीय इस आशय की बात कहकर नाथ को सतर्क होने का मौका नहीं देते।

इसलिए ऐसा लगता है कि प्रदेश में नेतृत्व की ताकत अपने हाथ में लेने की गरज से विजयवर्गीय ने पहले किसान रैली निकालकर ताकत दिखायी और अब कांग्रेस विधायकों वाली बात कहकर खुद को शक्ति पुंज के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।

 


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