ध्रुव शुक्ला।
सभी राजनीतिक दलों के नेता अक्सर एक-दूसरे पर कटाक्ष करते हुए यह कहते हुए नहीं थकते कि 'आप राजनीति कर रहे हैं'।
यह वाक्य बोलते हुए उनके हाव-भाव और कहने मतलब यही होता है कि आप कोई ऐसा घटिया कर्म कर रहे हैं जो देशहित में नहीं है। वे यह भी बार-बार कहते हैं कि 'राजनीति को बीच में न लायें।'
तब प्रश्न यह उठता है कि अगर आप राजनीतिक दल के रूप में ऐसी राजनीति नहीं कर पा रहे जो देशहित में होनी चाहिए तो आप एक संदिग्ध राजनीतिक दल ही कहलायेंगे।
जब चुनाव आयोग में सूचीबद्ध लगभग दो हजार राजनीतिक दलों की यही हालत है कि वे एक-दूसरे के राजनीतिक कर्म को घटिया कर्म मानते हैं तो फिर वह राजनीति कौन करेगा जो घटिया न हो और देशहित में हो?
अपने वैराग्य को त्यागकर राजनीति के क्षेत्र में कुछ साधुवेशधारी नेता भी दिखायी देने लगे हैं, तब भी राजनीति घटिया कर्म होने से बच नहीं पा रही है।
संसद में कलाकार, लेखक, समाजसेवी, खिलाड़ी, सेवानिवृत्त न्यायाधीश और प्रशासक भी मनोनीत किये जाते हैं, तब भी राजनीतिक कर्म घटिया होने के आरोप से अपने आपको बचा नहीं पा रहा है।
संस्कृत के शब्दकोष में राज का अर्थ तो जीवन की उज्ज्वल प्रतीति में जगमग होने जैसा है और नीति को बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार कुशलता कहा गया है।
तब राजनीति करना घटिया कर्म नहीं माना जाना चाहिए। लगता है कि हमारे नेता राजनीति के इस गहरे अर्थ को भूलकर अपने स्वभाव के अनुरूप राजनीति को स्वार्थ साधने की कला के रूप में परिभाषित कर रहे हैं।
वे ही तो अच्छी तरह जानते हैं कि उनके आचरण के कारण राजनीति घटिया कर्म में बदल गयी है और वे इस कड़वे सच का सामना करने में ख़ुद असमर्थ होते जा रहे हैं।
शायद इसीलिए एक-दूसरे से कहते हैं कि 'आप राजनीति न करें' और जब सत्ता में अवसर पाते हैं तो वही राजनीति करने लगते हैं जिसे वे दूसरे दलों को करने से व्यंगपूर्वक रोकते हैं।
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