डॉ राकेश पाठक।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी की जीत मोदी और मोदीवाद की ही जीत है..। बिना किसी किन्तु परंतु ,अगर मगर के इस जीत का सम्मान किया जाना चाहिए। लोकतंत्र का सौंदर्य ही यही है कि जनता भगवान् है और उसका फैसला सिर माथे लिया जाए।
( बिहार की हार को खाकसार ने मोदी और मोदीवाद की हार ही लिखा था)
देश की राजनीति की आगामी दशा और दिशा तय करने में उत्तर प्रदेश की जीत निर्णायक भूमिका अदा करेगी यह भी तय है।पंजाब सहित तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत फिलहाल लखनऊ,देहरादून के नगाड़ों के शोर में अनसुनी ही रहेगी।
जीत के कारणों की पड़ताल(अभी सिर्फ संक्षेप में) के लिए यह समझना होगा कि आज मोदी और उनकी पार्टी सिर्फ जीत और हर हाल में जीत के लिए लड़ती है। यह कहीं से भी गलत बात नहीं है क्योंकि राजनीति अन्ततः सत्ता के संधान के लिए ही होती है। कांग्रेस और दूसरी पार्टियां अपनी हार के लिए उलजलूल बहाने गढ़ कर खिसियानी बिल्ली की तरह खम्भे को अपने नाखूनों से खरोंच कर कुछ न पाएंगी।
बीजेपी के पास कुशल संचालन, जोखिम लेने का माद्दा , किसी भी स्तर तक कुछ भी कर गुज़रने की ललक, संगठन का जबरदस्त फैलान,अकूत आर्थिक संसाधन और मोदी नाम की मेग्नेट को सब तरफ चुम्बकीय तरीके से लार्जर देन लाइफ पसार देना वाले वे तत्व हैं जो भारत की राजनीति में पासंग भी कैसी दूसरे के पास नहीं हैं।
उ प्र में समाजवादी पार्टी के प्रति खामोश आक्रोश ने बीजेपी की राह और आसान बना दी।
कांग्रेस तो अपने हतभागी और किंकर्तविमूढ़ नेतृत्व के कारण अकेले लड़ने के बजाय साईकिल पर बैठने की महा भूल कर ही चुकी थी।वैसे भी उत्तर प्रदेश में उसके पास खोने को कुछ नहीं था इसलिए अगर अकेले लड़ती तो ऐसी कुगत न होती।
बहुजन समाज पार्टी की मायावती के लिए फिलहाल तो इस हार के बाद करने को कुछ बचा नहीं है।वे ईवीएम का राग लेकर विलाप कर सकतीं हैं जिसका कोई मतलब नहीं है।
( पंजाब,गोवा, मणिपुर पर कल बात करेंगे)
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