हेमंत पाल।
मध्यप्रदेश कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा का सोनिया गाँधी को लिखा पत्र मध्यप्रदेश की राजनीति में बम बनकर फट पड़ा। पार्टी को सही रास्ते पर लाने की उनकी कोशिश उनके ही गले पड़ गई। पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू के बाद देवास के पूर्व महापौर जयसिंह ठाकुर ने भी सज्जन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। दोनों नेताओं ने पत्र लिखने का दोषी मानते हुए सज्जन के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर दी। ये पूरा मसला पार्टी के प्रति उनकी सज्जन भावनाओं पर विरोधी गुट के नेताओं की 'ठसक' भरी प्रतिक्रिया से ज्यादा तूल पकड़ रहा है। जबकि, इंदौर से कांग्रेस के पूर्व विधायक अश्विन जोशी ने भी पार्टी हाईकमान से चापलूसों को बाहर करने की मांग जरूर की।
भावावेश में सज्जन सिंह वर्मा ने जो पत्र लिखा उसमें इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी का उल्लेख किया। पर उनकी सज्जन भावनाओं को 'ठसक' वाली प्रतिक्रियाएं ही ज्यादा मिली। पार्टी के जिन नेताओं ने इस पत्र पर अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की है उन्होंने अपने खूंटे से बंधे होने की कीमत ही अदा की। अपना भक्तिभाव दर्शाने के लिए ही उन्होंने कहा कि सज्जन वर्मा का बयान पार्टी विरोधी है। जबकि, प्रतिक्रिया देने वाले नेताओं ने पार्टी को आगे बढ़ाने की या आत्ममंथन जैसी कोई बात नहीं की। क्योंकि, इन नेताओं का डेढ़ दशक पुराना 'ठसका' अब भी वैसा ही कायम है। जबकि, ये भूल चुके हैं कि इन पर हरेल्ले का ठप्पा लग चुका है और प्रदेश की राजनीति में भी इनकी पकड़ भी अब ढीली पड़ चुकी।
प्रदेश की राजनीति में सज्जन सिंह वर्मा अच्छा ख़ासा दखल रखते हैं। वे चार बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं। वे पार्टी की केंद्रीय समिति में हैं और गुजरात के प्रभारी हैं। उन्हें कमलनाथ का सबसे नजदीकी नेता भी माना जाता है। लेकिन, उनकी दिग्विजय सिंह खेमे से कभी नहीं पटी! यही कारण है कि पार्टी हाईकमान को लिखे उनके इस पत्र को दिग्विजय सिंह के खिलाफ हथियार मान लिया गया! यही कही कारण है कि दिग्विजय खेमे के नेता उनके विरोध में एकजुट होने लगे। जबकि, उस पत्र में गोआ विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी होते हुए भी कांग्रेस के सरकार न बना पाने की नाकामयाबी पर उन्होंने अपनी पीड़ा दर्शाई है। दबी जुबान से ये बात पार्टी का हर छोटा-बड़ा नेता कर रहा है, पर सज्जन वर्मा ने उस पीड़ा को शब्दों में ढालकर हाईकमान तक पहुँचाया।
भाजपा से मुकाबला करने में कांग्रेस के पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण यही है कि उसके अपने गृहयुद्ध ही खत्म नहीं हो रहे। पार्टी के क्षत्रपों को इतना सर्वशक्तिमान मान लिया गया है कि कोई उनके खिलाफ मुँह खोलने का साहस नहीं कर पाता। कांग्रेस भले ही पार्टी में लोकतांत्रिक परंपरा के दावे करे, पर पार्टी की कार्यप्रणाली में पूरी तरह सामंती अंदाज हावी है। सज्जन वर्मा के पत्र का मजमून मध्यप्रदेश के संदर्भ में कतई नहीं था। लेकिन, दिग्विजय सिंह गोआ के प्रभारी थे, इसलिए सज्जन का पत्र बम बनकर फट पड़ा। ध्यान देने वाली बात ये भी है कि सज्जन के इस पत्र को लेकर पार्टी के किसी बड़े नेता प्रतिक्रिया सामने नहीं आई।
पत्र के बारे में सज्जन सिंह वर्मा ने बताया कि मेरी बात को पार्टी के कुछ लोगों ने गलत नजरिए से लिया है। मैं पार्टी का सिपाही हूँ और जो पार्टी के हित में होगा वो बोलने से चुकूँगा भी नहीं। गोआ में कांग्रेस के सरकार बनाने से चूकने की बात कहने वाला अकेला मैं नहीं हूँ। ये बात देशभर में हो रही है और मीडिया की सुर्ख़ियों में भी है। गोआ के कई कांग्रेसी विधायकों ने सरकार न बना पाने की विफलता पर खुलकर नाराजी व्यक्त की है। इन विधायकों ने पार्टी के 'बड़े' नेताओं के 'कुप्रबंधन' को जिम्मेदार ठहराते हुए पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को इस बारे में बताने के लिए उनसे मिलने का समय भी मांगा है। सज्जन ने कहा कि कांग्रेस के विधायक विश्वजीत राणे ने तो साफ़ कहा था कि ऐसा लगता है दिल्ली से भेजे गए नेता कभी चाहते ही नहीं थे कि कांग्रेस गोआ में सरकार बनाए।
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