मल्हार मीडिया भोपाल।
शिवराज हो या मोदी राज केंद्र और मध्यप्रदेश की भाजपा सरकारें किसानों के लिये अभिशाप साबित हुईं। फसलों के दाम मांगने पर शिवराज सरकार किसानों के सीने में गोलियां उतार देती है और मोदी सरकार बर्बरतापूर्वक अन्नदाता को लहु-लुहान कर देती है। शिवराज सरकार की बर्बरता का आलम तो यह है कि वह किसानों के साथ दुर्दांत आतंकियों जैसा व्यवहार करती है और किसानों के मासूम बच्चों और किसानों को गोलियां मारकर मौत के घाट उतार देती है। इतना ही नहीं गोली मारने वालों को गले लगाती है और हत्यारों का साथ देती है।
यह बात आज कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आज भोपाल में एक पत्रकार वार्ता में कही।
उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश का किसान अपनी फसलों के दामों के लिये दर-दर की ठोंकरें खाता है और प्रदेश का मुखिया अपने खेतों में करोड़ाों के अनार और फूल उगाता है। न उसे समर्थन मूल्य की दरकार है, न मंडियों में अपनी फसल के बिकने का इंतजार। प्रदेश में एक भी किसान ऐसा नहीं, जिसका दूध साठ रूपये लीटर बिकता हो, लेकिन मुख्यमंत्री, शिवराज चौहान के बेटे कार्तिकेय चौहान का सुधामृत दूध अधिकारियों के दबाव में साठ रूपये प्रति लीटर जबरन बिकवाया जाता है। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में किसानों के नाम की ऐसी कोई योजना नहीं है, जो भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़ी हो।
सुरजेवाला ने कहा कि किसानों से जुड़े हर मुद्दे पर शिवराज सिंह और मोदी सरकारें बुरी तरह किसान विरोधी साबित हुईं। यदि सबकुछ ठीक है, तो मध्यप्रदेश में 2013 से अब तक हर साल किसानों की आत्महत्या के मामले 21 फीसदी की दर से कैसे बढ़ गए। यह आंकड़े हमारे नहीं हैं, बल्कि लोकसभा में केंद्रीय मंत्री, पुरुषोत्तम रूपाला ने 20 मार्च, 2018 को सदन के पटल पर रखे। मध्यप्रदेश किसानों की आत्महत्या के मामले में पूरे देश में तीसरे स्थान पर है। यह शिवराज चौहान के दावों की केवल एक बानगी है।
उन्होंने कहा कि प्याज खरीदी के नाम पर 1100 करोड़ रूपये का घोटाला हुआ। पहले तो किसानों से खरीद कर गोदामों में रखना बताया, फिर उस प्याज को सढ़ा हुआ बताकर सारा पैसा डकार गये। इतना ही नहीं, एक ऐसा उदाहरण भी सामने आया कि 62 करोड़ की प्याज खरीदी पर 44 करोड़ रूपये हम्माली और परिवहन पर खर्च बता दिया गया।
इसी प्रकार प्याज के बाद 250 करोड़ रूपये का दाल घोटाला सामने आता है। हद तो यह होती है कि हरदा जिले में 3.58 लाख टन मूंग दाल की खरीदी बतायी जाती है, जबकि सरकारी दस्तावेजों से पता लगता है कि इतनी बड़ी मात्रा में दाल वहां पैदा ही नहीं होती? 550 रूपये के समर्थन मूल्य पर दाल खरीदी जाती है। किसान सड़कों पर आंदोलन कर रहे होते हैं और किसानों के नाम पर बिचौलिये और जमाखोर अपनी दाल बेंच देते हैं। इतना ही नहीं नरसिंहपुर, हरदा जैसे मध्यप्रदेश में कई जिले हैं, जहां यह घोटाला किया गया है।
मध्यप्रदेश की छोटी-बड़ी मिलाकर करीब 500 मंडियों में किसानों का भोजन भी भ्रष्टाचारी भाजपा सरकार खा गई। किसानों को नाम मात्र शुल्क पर मंडियों में भोजन उपलब्ध कराने की योजना शिवराज सरकार लेकर तो आई, मगर उसका असली उद्देश्य अन्नदाता को भोजन परोसना नहीं, उनके भोजन के अधिकार का डांका डालना था। किसानों के भोजन के लिये बाकायदा कूपन मुद्रित कराकर किसानों को दिये जाने का प्रावधान है। मगर वह कूपन किसानों को देनेे की अपेक्षा भ्रष्टाचारी भाजपा सरकार अपनी जेब में रखती है और किसानों का हक खा जाती है।
हार की कगार पर खड़ी मोदी सरकार ने 3 अक्टूबर, 2018 को ‘समर्थन मूल्य’ की झूठ को ‘एक राजनैतिक लॉलीपॉप’ के जुमले की तरह देश को पेश करने का छल किया। सच तो यह है न समर्थन मूल्य मिला, न मेहनत की कीमत। न खाद/कीटनाशनक दवाई/बिजली/डीजल की कीमतें कम हुईं और न ही हुआ फसल के बाजार भावों का इंतजाम। क्या झूठी वाहवाही लूटने, अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनने, ढ़ोल- नगाड़े बजाने व समाचारों की सुर्खियां बटोरने से आगे बढ़ लागत+50 प्रतिशत मुनाफा किसान को देंगे? रबी सीज़न के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य बनाम लागत+50 प्रतिशत का अंतर देखिए:-
रबी फसल खरीद के लिए मोदी जुमलानाथन बनाम स्वामीनाथन (सी-2)
इसी प्रकार जुलाई 2018 में खरीफ मार्केटिंग सीज़न 2018-19 के लिए मोदी सरकार ने जो समर्थन मूल्य जारी किया था, उसमें भी किसानों को इसी प्रकार धोखा दिया । लागत मूल्य कम करके समर्थन मूल्य घोषित किया ।
समर्थन मूल्य 2018-19 खरीफ फसल खरीद के लिए मोदी जुमलानाथन बनाम स्वामीनाथन (सी-2)
मोदी सरकार ने समर्थन मूल्य देने के लिए ‘लागत मूल्य’ का निर्धारण स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के आधार पर नहीं किया है, जबकि मोदी जी ने अपने घोषणापत्र में भी किसानो से इस बात का वायदा किया था। मोदी सरकार ने ‘लागत मूल्य’ का आंकलन A2+ FL अर्थात बिजली, पानी, खाद, बीज, इत्यादि का खर्च परिवार के श्रम के आधार पर कर समर्थन मूल्य निर्धारित किया, जबकि स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें, किसानों की माँग और मोदी सरकार का वादा C2 (A2 +FL + जमीन का किराया, कर्ज का ब्याज इत्यादि भी शामिल है) के आधार पर करने का था ।
अगर पिछले साढ़े चार वर्षों में ‘लागत + 50 प्रतिशत’ मुनाफा सही मायनों में मोदी सरकार ने किसानों को दिया होता, तो लगभग 200,000 करोड़ रुपये से अधिक किसानों की जेब में उनकी मेहनत की कमाई के तौर पर जाता।
मध्यप्रदेश में सिंचाई के लिए प्रयुक्त में आने वाले लगभग 27 लाख पंप बगैर मीटर के हैं, जिसमें पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के अधीन 9 लाख, मध्य क्षेत्र में 6 लाख और पश्चिम में 12 लाख। शिवराज सरकार ने यह बताया है कि 1400 रु प्रति फ़्लैट रेट से किसानों से पैसा लेते हैं और किसान 30 दिनों तक 10 घंटे रोज़ 8 माह कृषि पंप चलाता है और 1790 यूनिट ख़र्च होती है, और सरकार 4 रु 70 पैसे की दर से 5 HP का बताती है कि 42065 रु. का बिल आता है तथा किसान से 1400 रु प्रति HP के हिसाब से 5 HP के 7000 रु. लिए जाते हैं और बाकी 35065 रु की सब्सिडी बताई जा रही है और इस प्रकार इस वर्ष 9000 करोड़ रु. का कृषि पंप की सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। यह घोटाला बीते लगभग 10 वर्षों से चल रहा है और लगभग 50 हजार करोड़ रूपये की सब्सिडी का घोटाला हुआ है। पूरे प्रदेश ही क्या, पूरे देश मे ऐसी कोई खेती नहीं जिसमें लगातार 10 घंटे 8 माह तक रोज़ पानी दिया जाता हो। इसीलिए इन कृषि पम्पों के मीटर निकाल दिए गए हैं और किसानों के नाम पर यह सब्सिडी की लूट जारी है।
शिवराज-मोदी सरकारों से मध्यप्रदेश के अन्नदाता के 7 सवाल:-
1. हम सरकार से पूछते हैं कि लागत+50 प्रतिशत का वादा ‘जुमला’ क्यों बन गया?
2. क्या कारण है कि मध्यप्रदेश में 2013 से अब तक किसानों की आत्महत्या के मामले हर साल 21 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं? अन्नदाता को आत्महत्या के लिए मजबूर करने में मध्यप्रदेश देश में तीसरे पायदान पर क्यों?
3. हम सरकार से पूछते हैं कि मोदी जी के सत्ता में आते शिवराज सरकार ने किसानों का 150 रूपये प्रति क्विंटल का बोनस क्यों बंद किया?
4. हम सरकार से पूछते हैं कि प्रदेश के बासमती चावल को मान्यता दिलाने के आपके दावे का क्या हुआ, जबकि मध्यप्रदेश और देश, दोनों में भाजपाई सरकारें हैं ?
5. मंदसौर में 6 जून 2017 को शिवराज सरकार की सरपरस्ती में छह किसानों को मौत के घाट उतार दिया, उनके हत्यारे कहाँ हैं ? उनके खिलाफ क्या कार्यवाही हुई?
6. क्या आपकी सरकार ने वर्ष 2012 में रायसेन में किसानों पर ए.के.-47 से गोलियां नहीं चलवायीं और किसानों को मौत के घाट नहीं उतारा?
7. प्याज उत्पादक किसान हो या दाल उत्पादक किसान या फिर गेहूँ-धान उगाने वाला किसान, वो भाजपाई भ्रष्टाचार से ग्रस्त क्यों?
मध्यप्रदेश का किसान पुकार पुकार कर कह रहा है कि अब शिवराज सरकार को उखाड़ फेंकने का समय आ गया है। एक किसान की मार्मिक व्यथा व मांग
अपनी फसलों के दाम, खुद्दारी के साथ चाहता हूँ
तेरा रहमो करम नहीं, अपना हक चाहता हूँ,
समाचारों की सुर्खियों से सिर्फ सरोकार है तुझे
मैं तो बस अपने खेतों की खुशियाँ चाहता हूँ,
अब न छल पाएगी, कंस मामा की किसान विरोधी सरकार मुझे
अब तुझे चलता करने की है, दरकार मुझे
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