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25 साल बाद आया बाबरी केस में फैसला,आडवाणी,उमा,जोशी सहित 13 पर चलेगा मुकदमा

राजनीति            Apr 19, 2017


मल्हार मीडिया ब्यूरो।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि बाबरी केस के मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी, एमएम जोशी, केंद्रीय मंत्री उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार समेत भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद के 13 नेताओं पर आपराधिक साजिश (धारा 120 बी)के तहत मुकदमा चलेगा। सुप्रीम कोर्ट बुधवार को अपना फैसला देते हुए कहा कि मामले का ट्रायल जल्द पूरा किया जाएव रोजाना सुनवाई हो। हालांकि राजस्थान के राज्यपाल होने के कारण कल्याण सिंह पर यह मुकदमा नहीं चल पाएगा।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पीके घोष व आरएफ नारीमन की पीठ ने फैसले में कहा कि इस मामले में रायबरेली में चल रहे ट्रायल को लखनऊ सेशन कोर्ट में चल रहे ट्रायल के साथ जोड़ा जाए।
इससे पहले 6 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में 2010 में अपील की थी। हाईकोर्ट ने इन मामले में नेताओं को साजिश से बरी कर दिया था।

अप्रैल में हुई सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस तरह केमामले में इंसाफ के लिए हमें दखल देना होगा। यह देखते हुए तकनीकी कारणों से आडवाणी सहित इन नेताओं पर लगे आपराधिक षडयंत्र केआरोप हटाए गए थे, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था हम इसके लिए संविधान के अनुच्छेद- 142 (सुप्रीम कोर्ट को असाधारण अधिकार) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी सवाल किया था कि इस मामले में एक ही षडयंत्र हैं, तो इसके लिए दो अलग-अलग ट्रायल क्यों?।

ज्ञातव्य है कि आडवाणी सहित अन्य नेताओं पर रायबरेली की अदालत में भीड़ को उकसाने का मामला चल रहा है जबकि लखनऊ की विशेष अदालत में कार सेवकों पर षडयंत्र और विवादित ढांचे को ढहाने का मुकदमा चल रहा है। सीबीआई की ओर से दलील दी गई थी कि इन 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र का मुकदमा चलना चाहिए।

वहीं आडवाणी और जोशी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने संयुक्त ट्रायल के विचार का विरोध किया था। उनका कहना था कि सीआरपीसी केतहत ऐसा नहीं किया जा सकता। इस तरह केमामले में सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल भी नहीं कर सकता क्योंकि यह आरोपियों के जीवन जीने और व्यक्तिगत आजादी के मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला है।

इसके साथ ही न्यायालय ने मामले से जुड़े पक्षों को यह अधिकार दिया है कि यदि न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं होता है तो वे उससे संपर्क कर सकते हैं। छह दिसंबर, 1992 को गिराए गए विवादित ढांचे से जुड़े मामलों के दो सेट हैं। पहला सेट बेनाम ‘कारसेवकों’ के खिलाफ है, जिसकी सुनवाई लखनऊ की अदालत में चल रही है। दूसरा सेट नेताओं से जुड़ा है और यह रायबरेली की अदालत में चल रहा है। छह अप्रैल को पीठ ने संकेत दिया था कि वह मामले को रायबरेली की अदालत से लखनऊ की अदालत में स्थानांतरित करके मामलों के दोनों सेटों की संयुक्त सुनवाई का आदेश जारी कर सकती है।

न्यायालय ने यह भी कहा था कि चूंकि इस घटना को 25 साल बीत चुके हैं, ऐसे में न्याय के हित में न्यायालय तय समय सीमा के भीतर दिन-प्रतिदिन की सुनवाई का आदेश देने के मुद्दे पर विचार करेगा, जो दो साल में पूरी हो जाए। आडवाणी और जोशी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील के के वेणुगोपाल ने साझा सुनवाई करवाने और उनके मामले का स्थानांतरण रायबरेली से लखनऊ करवाने के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया।

 



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