मल्हार मीडिया ब्यूरो।
उत्तरप्रदेश में पहले चरण के लिए कल 11 फरवरी को 15 जिलों में वोट डाले जाएंगे। इस चुनाव में कुल 840 प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपा, सपा-कांग्रेस और बसपा के अलावा रालोद सहित अन्य के लिये भी यह चरण अहम है। इन दलों का अपने परंपरागत वोटों के साथ दूसरे दल के वोट बैंक में सेंध लगाने पर भी जोर है। एक्सपर्ट कौशल किशोर के मुताबिक बीजेपी को विश्वास है कि वोटों का पोलराइजेशन कर उसे चुनाव में काफी फायदा मिलेगा। इसीलिए हिंदुओं के पलायन, गौकशी और महिलाओं की असुरक्षा को ही पार्टी ने मुद्दा बनाया है।
गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश के पहले चरण में 15 जिलों की 73 सीटों पर वोटिंग होनी है। इसमें ज्यादातर सीटों पर सपा-कांग्रेस अलायंस, बीजेपी और बसपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। वहीं करीब 20 से ज्यादा सीटों पर रालोद की मजबूत दावेदारी है।
प्रथम चरण के चुनाव में शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, आगरा, फिरोजाबाद, एटा और कासगंज जिले शामिल हैं। प्रथम चरण के इस चुनाव में कुल 840 कैंडिडेट्स मैदान में हैं। इनमें सबसे कम 6-6 कैंडिडेट मेरठ की हस्तिनापुर, गाजियाबाद की लोनी और अलीगढ़ की इग्लास सीट पर हैं। सबसे ज्यादा मुजफ्फरनगर सीट पर हैं, जहां से 16 कैंडिडेट चुनाव मैदान में हैं। वहीं, मेरठ में 15 कैंडिडेट हैं।
प्रथम चरण में होने वाली वोटिंग को अगर जातिगत आधार देखें तो यहां जाट, मुस्लिम और पिछड़ी जातियों का बोलबाला है। इसमें यादव सबसे ज्यादा हैं। मथुरा, हाथरस, आगरा और अलीगढ़ जैसे जिलों में जाट निर्णायक स्थिति में है। मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर जैसे जिलों में मुस्लिम, किसी भी कैंडिडेट की किस्मत बदल सकते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था। इन 73 सीटों में सपा को 24, बसपा को 23, बीजेपी को 12, रालोद को 9 और कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं।
भाजपा 2014 लोकसभा चुनाव में मिली जीत को दोहराने के मूड में है। पार्टी को विश्वास है कि वोटों का पोलराइजेशन कर उसे चुनाव में काफी फायदा मिलेगा। इसीलिए हिंदुओं के पलायन, गौकशी और महिलाओं की असुरक्षा को ही पार्टी ने मुद्दा बनाया है। लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद को छोड़कर बाकी सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। जीती हुई विधानसभा सीटों की संख्या 60 थी।
चुनाव में अजीत सिंह के रालोद की कड़ी परीक्षा होने वाली है, क्योंकि 2002 के बाद रालोद बिना किसी अलायंस के अपने दम पर चुनाव मैदान में है। लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से साफ होने के बाद इस बार जाटों की सहानुभूति अजीत सिंह को मिल सकती है। जिन 15 जिलों में चुनाव होने हैं, उसमें से 11 जिलों में जाटों की भूमिका काफी अहम है। 2014 लोकसभा चुनाव में जाटों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ आ गया था। यह स्थिति दोबारा रिपीट हो सकती है।
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