पंकज शुक्ला।
मप्र विधानसभा का पावस सत्र आज 8 जुलाई से आरंभ हो गया। सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के विधायकों की संख्या के मान से लगभग बराबर विभाजित सदन में प्रतिपक्ष ने सत्ता पक्ष को घेरने की पूरी तैयारी की है।
दूसरी तरफ, सरकार को बजट सहित कई महत्वपूर्ण विधेयक इस सत्र में पास करवाना है। दोनों की अपनी तैयारियां खास हैं और हंगामे में सदन की कार्यवाही को ‘गुम’ होने से बचाने का कार्य यदि कोई कर सकता है तो वह हैं अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति।
दिग्विजय सिंह के शासनकाल में ‘त्रिफला’ नाम से मशहूर मंत्री तिकड़ी के एक सदस्य प्रजापति ‘परिणाम’ देने वाले नेता माने जाते हैं। मंत्री रहते हुए उन्होंने रिजल्ट देने वाले मंत्री की छवि बनाई थी। अब उनसे सत्र के संचालन की भी ऐसी ही उम्मीद है कि सत्ता पक्ष के भी न दिखें और प्रतिपक्ष भी असंतुष्ट न हो।
कृपया, प्लीज, सिट डाउन, आप बैठ जाइए, यह कार्यवाही में दर्ज नहीं होगा… आदि, आदि। अमूमन विधानसभा में हंगामे के दौरान अध्यक्ष ऐसी ही शब्दावली का प्रयोग करते हैं। विपक्ष जब ताकतवर हो तो ऐसी स्थितियां बार-बार बनती हैं और शोरगुल व हंगामे के बीच सदन की कार्यवाही बाधित होती है।
कई महत्वपूर्ण विधेयक बिना चर्चा हुए बहुमत से पास हो जाते हैं। कई अहम् प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं। तनातनी, आरोप-प्रत्यारोप सुर्खियां बनते हैं और जनहित के मुद्दे पीछे छूट जाते हैं।
भाजपा के शासनकाल में भी जब विपक्ष 60 से भी कम की सदस्य संख्या वाला था मप्र विधानसभा ने जबर्दस्त हंगामे देखे हैं। अब तो 230 विधायक संख्या वाले सदन में कांग्रेस के 114 विधायकों की तुलना में भाजपा के 108 विधायक हैं।
यानि सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष का अंतर बहुत अधिक नहीं है। इस संख्याबल के साथ विपक्ष क्या कर सकता है हमने इसी विधानसभा के पहले सत्र में देखा है।
प्रतिपक्ष ने इस बार भी तैयारी की है कि वह किसानों की कर्जमाफी, कथित तबादला उद्योग, बिजली के गहराते संकट को लेकर सरकार पर हमलावर होगा।
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के साथ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा के आक्रामक तेवर दिखलाई देना तय है। प्रतिपक्ष ही नहीं मंत्रियों को सत्ता पक्ष के विधायकों के सवालों के जवाब भी देने हैं।
बीते सत्र में देखा गया है कि संसदीय कार्यमंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने प्रतिपक्ष के हमलों का उतने ही आक्रामक ढंग से उत्तर दिया था। वे अब भी इसी भूमिका में होंगे।
नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और संसदीय कार्यमंत्री डॉ. सिंह की भूमिका अपनी जगह लेकिन सदन की कार्यवाही के सुचारू संचालन के संबंध में सबसे अधिक यदि किसी पर निगाहें होंगी तो वे अध्यक्ष प्रजापति ही हैं।
बीते सत्र में उन्होंने ‘दृढ़ता’ दिखाते हुए सदन की कार्यवाही को पूर्ण करवाया था। इस बार भी सदन की कार्यवाही के संचालन के दौरान अध्यक्ष प्रजापति के अंदाज को देख कर इस आसंदी पर बैठे पूर्व अध्यक्षों गुलशेर अहमद, मुकुंद सखाराम नेवालकर, यज्ञदत्त शर्मा, राजेंद्रप्रसाद शुक्ल, ब्रजमोहन मिश्रा, सफेद शेर के नाम से मशहूर श्रीनिवास तिवारी या ईश्वरदास रोहाणी के कार्यवाही संचालन की याद होना लाजमी होगा।
प्रजापति में पूर्व अध्यक्षों की छवियां देखी जाएंगी। उम्मीद की जा रही है कि प्रजापति इन पूर्व अध्यक्षों की तरह ही बेबाकी से सदन का संचालन कर लोकतंत्र की आत्मा व जनता के हितों का संरक्षण कर पाएंगे।
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