संजय जिंदल।
जब राजनीति प्रिय खेल नहीं था, यह उस समय की बात है
यह दृश्य टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों की हाई जम्प फाइनल का है। फाइनल में इटली के जियानमारको ताम्बरी का सामना क़तर के मुताज़ इसा बर्शिम से हुआ। दोनों ने 2.37 मीटर की छलांग लगाई और बराबरी पर रहे !
उसके बाद ओलंपिक अधिकारियों ने उनमें से प्रत्येक को तीन और प्रयास दिए, लेकिन वे 2.37 मीटर से अधिक तक नहीं पहुंच पाए।
उन दोनों को एक और प्रयास दिया गया,
लेकिन बर्शिम के दिमाग में कुछ घूम रहा था औऱ फ़िर कुछ सोचकर उसने एक अधिकारी से पूछा, "अगर मैं अंतिम प्रयास से पीछे हट जाऊं तो क्या हम दोनों के बीच गोल्ड मैडल साझा किया जा सकता है?"
कुछ देर बाद एक आधिकारी जाँच कर पुष्टि करता है और कहता है "हाँ बेशक गोल्ड आप दोनों के बीच साझा किया जाएगा"।
बर्शिम के पास और ज्यादा सोचने के लिए कुछ नहीं था । उसने आखिरी प्रयास से हटने की घोषणा की।
यह देख इटली का प्रतिद्वन्दी ताम्बरी दौड़ा और मुताज़ बरसीम को गले लगा कर चिल्लाया ! दोनों भावुक होकर रोने लगे ।
लोगों ने जो देखा वह खेलों में प्यार का एक बड़ा हिस्सा था जो दिलों को छूता है। यह अवर्णनीय खेल भावना को प्रकट करता है जो धर्मों, रंगों और सीमाओं को अप्रासंगिक बना देता है !!!
इंसान का किरदार किसी भी मैडल से बड़ा होता है ।
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