धार्मिक जगहों पर ही नहीं खेलों को देखने,क्लब हाउस में भी है महिलाओं की नो एंट्री

वामा            Jun 04, 2016


मल्हार मीडिया डेस्क। हाल में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ग्रीस में माउंट एथोस का दौरा किया। पुतिन 335 वर्ग किलोमीटर में फैले इस प्रायद्वीप पर रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च के प्रतिनिधियों की मौजूदगी के एक हज़ार साल पूरे होने के मौक़े पर वहां गए। माउंट एथोस इसलिए एक अनूठी जगह है कि वहां सिर्फ़ महिलाएं ही नहीं बल्कि मादा जानवरों के आने पर भी प्रतिबंध है। पिछले एक हज़ार साल से इस प्रायद्वीप के तट के आसपास 500 मीटर तक भी महिलाओं को आने की अनुमति नहीं है। 'माउंट एथोस: रिन्यूवल इन पैरेडाइज़' के लेखक डॉ. ग्राहम स्पीक का कहना है कि प्राचीन समय में पुरूषों के मठों में महिलाओं को आने की अनुमति नहीं रही है। उनका कहना है कि ऐसा ब्रह्मचर्य को सुनिश्चित करने के लिए किया जाता था। वैसे दुनिया में और भी कई जगहें जहां महिलाओं के आने पर रोक है। एक अनुमान के अनुसार हर साल यहां 10 करोड़ श्रद्धालु आते हैं। केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की उम्र की महिलाओं के आने पर प्रतिबंध है। डर ये होता है कि मंदिर में आने के दौरान उन्हें माहवारी हो सकती है। भारत के अधिकांश हिस्सों में यह धारणा है कि माहवारी के दौरान महिलाएं अशुद्ध हो जाती हैं। हालांकि केरल की महिलाएं मंदिर में पूजा करने के बराबर अधिकार की मांग कर रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के आने पर लगी रोक को हटवाने का प्रयास कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बावजूद वहां महिलाएं को प्रवेश नहीं मिल पाया है। इसी तरह की एक जगह जापान में है माउंट ओमाइन। माउंट ओमाइन को माउंट सांजो के नाम से भी जाना जाता है। इसे जापानी लोक धर्म शुगेंदो के अनुयायी पवित्र मानते हैं। दसवीं शताब्दी में ओमाइन-सान को जापान का सबसे पवित्र पर्वत का दर्जा हासिल हुआ। क़रीब 1,300 वर्षों से महिलाओं को यहां आने की इजाज़त नहीं है। माना जाता है कि महिलाएं भिक्षुओं का ध्यान भंग कर सकती हैं। साल 2004 में माउंट ओमाइन को यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया। मानवाधिकार संगठनों ने ये कहते हुए इस फैसले पर सवाल उठाए कि महिलाओं पर प्रतिबंध मानवाधिकार का उल्लंघन है। प्रतिष्ठित स्कॉटिश गोल्फ़ क्लब मुअरफ़ील्ड इस महीने सुर्खियों में था क्योंकि महिला सदस्यों पर प्रतिबंध को बरक़रार रखने के कारण उसे ओपन चैंपियनशिप की मेज़बानी से हाथ धोना पड़ा था। मूअरफ़ील्ड ने ओपन चैंपियनशिप की 16 बार मेज़बानी की है। यह क्लब हमेशा से ही 'सिर्फ मर्दों के लिए' रहा है, लेकिन इस साल इस लैंगिक मतभेद को ख़त्म करने के लिए मतविभाजन कराया गया था। लेकिन सदस्यों ने महिलाओं पर प्रतिबंध जारी रखने की नीति के समर्थन में वोट किया। जब से मतविभाजन हुआ है तबसे इस क्लब को तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है और लोग इस नीति को 'लैंगिक भेदभाव वाला' और 'पुरातन' बता रहे हैं। हाल में ईरान की एक महिला सोशल मीडिया में छाई रही। तेहरान के एक फ़ुटबॉल स्टेडियम में मैच देखने के लिए उसने मर्दों जैसी पोशाक पहन ली और इसका वीडियो अपलोड कर दिया। हालांकि ईरान में खेल आयोजनों में महिलाओं के जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है लेकिन ऐसा कभी कभार ही होता है कि कोई महिला बॉक्सिंग, तैराकी या फ़ुटबॉल मैच देखने जाए क्योंकि उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया जाता है। अगर वो जाना चाहती हैं और अपने पसंदीदा फ़ुटबॉलर को खेलते देखना चाहती हैं तो वो मर्दों जैसे कपड़े पहनकर ऐसा कर पाती हैं। मुसलमान विद्वानों में इस बात को लेकर मतभेद हैं कि क्या महिलाओं को दरगाह जैसे धार्मिक स्थल पर जाने की इजाज़त दी जाए या नहीं। मुंबई की सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक ये दरगाह मुंबई के एक छोटे से द्वीप पर है। यहां एक ऐतिहासिक मस्जिद है जिसमें 15वीं शताब्दी के सूफ़ी संद हाजी हली की क़ब्र है। इस मकबरे तक जाने पर महिलाओं पर प्रतिबंध है। दरगाह के ट्रस्टियों का कहना है कि इस्लाम में कब्र के पास महिलाओं के जाने की मनाही है। हालांकि महिला अधिकार संगठन और कुछ मुस्लिम विद्वान दोनों ने ही इस नज़रिए को अदालत में चुनौती दी है।


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