श्रीकांत सक्सेना।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत का सत्तारूढ़ दल दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है।
डॉक्टर, इंजीनियर,बेरोजगार,भिखारी,बीमार, गरीब,ठग,बैंक लुटेरे, मुफ्तखोर,सबसे ऊंचे पुतले,सबसे बड़े झूठे,सबसे लंबी फेंकने वाले फेंकू, सब भारत में ही हैं।
दुनिया में सबसे ज्यादा और सबसे अधिक वक्त तक चलने वाले मुकदमे हमारे यहां ही हैं। मिथाइल एल्कोहल से बनने वाली नकली शराब के सबसे बड़े उत्पादक हम ही हैं और इस शराब का आचमन करके आत्माहुति देने वाले वीरों की सबसे बड़ी संख्या भी यहीं है।
यहाँ और भी है जो शेष दुनिया से अधिक, बड़ा और अलग है।
अब भारत में लड़कियाँ 21 वर्ष की उम्र के बाद ही शादी कर सकती हैं।
इस लिहाज़ से शादी के वक़्त भारत की लड़कियाँ चीन,अमरीका,फ़्रांस,जर्मनी,जापान ,रूस, ईरान आदि किसी भी देश की लड़कियों से ज़्यादा उम्र की होंगी।
जहां यूरोप और अमरीका में 18 साल बाद लड़कियाँ अपनी शादी का फ़ैसला कर सकती हैं वहीं रूस में 16 साल और ईरान में तो 13 साल की लड़की भी शादी का फ़ैसला ले सकती है।
हालाँकि पड़ोसी चीन में 20 साल की लड़की को ही शादी की इजाज़त है।
मतलब हमारे देश की बहू दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा बूढ़ी होगी जाहिर है समझदार भी होगी।
हमारे यहाँ वोट देने के लिए 18 साल का होना काफ़ी है।
वैसे तार्किक दृष्टि से भी शादी के लिए अगर लड़कों का 21 साल का होना ज़रूरी है तो लड़कियों के लिए यह 18 साल क्यों हो?
हमारा समाज बदल रहा है, मान्यताएँ बदल रही हैं, लड़कियाँ ज़्यादा शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वावलंबी मतलब लंबी हो रही हैं।
आबादी स्थिर है बाल विवाह और सती प्रथा गए जमाने की बातें हैं।
जब विवाह की नई उम्र तय की गई तो इस कानून का ज़्यादातर लड़कियों ने खुलेआम पुरज़ोर समर्थन किया है, विशेषकर मुस्लिम समाज की लड़कियों ने।
जिस रफ़्तार से नई पीढ़ी ज़िंदगी जी रही है वह अतीत का सातत्य नहीं है।
लड़कियाँ पिताओं को कन्यादान करने से रोक रही हैं, माने अब वे स्वयं को दान में देने या देने की चीज़ मानने को तैयार नहीं हैं।
स्त्री ,पुरूष के लिए पहले की तरह रहस्यमयी नहीं है, स्त्री-पुरुष संबंध अधिक सहज और स्वाभाविक हो रहे हैं।
नवयुवक और नवयुवतियाँ पहले की तरह एक-दूसरे के जिस्म से अनजान नहीं हैं।
यौन अपराधों के पीछे यह भी एक कारण रहा है कि बचपन से ही नर बच्चों के लिए मादा शरीर रहस्यमय और अप्राप्य रहा है। अब वैसी उत्सुकता शनैः शनै: क्षीण हो रही है।
तीन तलाक़ को लेकर देश में कुछ संस्तरों से विरोध के स्वर उठे थे, हालाँकि वह विरोध भी अनावश्यक था।
बल्कि दानिशवरों को खुलकर इसके समर्थन में आना चाहिए था।
कोई चाहे तो इन दोनों कोशिशों को अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं को फुसलाने वाले क़दम के रूप में देख सकते हैं।
लेकिन सच यही है कि इन कोशिशों का मुस्लिम महिला समाज ने भी स्वागत ही किया। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए यदि कुछ गंभीर क़दम उठाए जा रहे हैं और इन्हें खुद महिलाओं के द्वारा सराहा भी जा रहा है।
वैसे तो शादी नाम की संस्था ही दुनियाभर में तिथिबाह्य हो रही है।
इस सदी के लोगों ने अपने लिए नये नियम बनाने शुरू कर दिए हैं।
फिर भी सरकार की ओर से यह कहा जा रहा है कि ये क़ानून महिला स्वास्थ्य ,उनकी शिक्षा और उनकी परिपक्वता के लिहाज़ से देशहित ही में है।
अपना देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। करप्शन, भाई-भतीजावाद, न्यायालयों के फैसले नेताओं के दिखावे हर दृष्टि से हम दुनिया में सबसे ऊपर हैं फिर ये तो इतना बड़ा मसअला भी नहीं है।
बीवी अगर शौहर के बराबर उम्र की हो तो इसमें बुरा क्या है बल्कि, दो चार साल बड़ी भी हो तो बेहतर ही होगा।
अपने यहां बुजुर्ग पहले ही कह चुके हैं " बड़ी बहू,बड़े भाग्य"।
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