मल्हार मीडिया ब्यूरो।
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक आदमी को व्यभिचार के मामले में बड़ी राहत दी है। यह मामला एक महिला के पति ने दर्ज कराया था। आरोप था कि उस आदमी का उसकी पत्नी के साथ अफेयर है। कोर्ट ने कहा कि औरत को आदमी की संपत्ति समझना गलत है।
यह सोच महाभारत के समय से चली आ रही है। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने 17 अप्रैल को यह फैसला सुनाया है। इसके लिए उन्होंने महाभारत का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि कैसे पुराने व्यभिचार कानून, IPC की धारा 497 पितृसत्तात्मक सोच पर आधारित थी।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने अपने फैसले में कहा, 'औरत को पति की संपत्ति समझना और इसके भयानक नतीजे महाभारत में अच्छी तरह से दिखाए गए हैं। द्रौपदी को जुए में युधिष्ठिर ने दांव पर लगा दिया था। उनके बाकी चार भाई चुपचाप देखते रहे और द्रौपदी के पास अपनी गरिमा के लिए विरोध करने की कोई आवाज नहीं थी।'
दिल्ली हाई कोर्ट की जज ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले का भी जिक्र किया। उस फैसले में व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 497 को असंवैधानिक बताया था। कोर्ट ने कहा था कि यह धारा औरत को सिर्फ एक शिकार मानती है, जिसकी अपनी कोई मर्जी नहीं है। जस्टिस कृष्णा ने कहा कि कानून में व्यभिचार करने वाली औरत को सजा नहीं दी जाती थी। उसे 'पीड़ित माना जाता था जिसे बहकाया गया।' यह 'पुरुषवादी सोच' जाहिर करता है।
अदालत ने आगे कहा, 'जैसा कि हुआ, वह (द्रौपदी) जुए के खेल में हार गई और उसके बाद महाभारत का महान युद्ध हुआ, जिसमें भारी जान-माल का नुकसान हुआ और कई परिवार मिट गए। औरत को संपत्ति मानने की बेतुकी बात के नतीजे को दिखाने वाले ऐसे उदाहरण होने के बावजूद, हमारे समाज की पुरुषवादी मानसिकता को यह तभी समझ में आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित कर दिया।'
इस केस में, पति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी और उस आदमी का अफेयर है। उन्होंने कहा कि वे दोनों एक शहर गए, एक होटल में रुके और बिना उसकी सहमति के यौन संबंध बनाए। पहले एक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उस आदमी को बरी कर दिया था। लेकिन, सेशन कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया और समन जारी कर दिया। हालांकि, हाई कोर्ट ने शिकायत को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 497 के तहत भी कोई मामला नहीं बनता है, क्योंकि अब यह धारा रद्द हो चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए बेंच ने कहा, 'जब एक वैवाहिक रिश्ते में कोई पक्ष नैतिक प्रतिबद्धता खो देता है, तो यह पूरी तरह से गोपनीयता का मामला है। व्यभिचार को अपराध की दृष्टि से सोचना एक प्रतिगामी कदम होगा।' इसका मतलब है कि अगर पति-पत्नी के रिश्ते में कोई धोखा होता है, तो यह उनका निजी मामला है। इसे अपराध मानना सही नहीं है।
कोर्ट ने औरतों पर मालिकाना हक जताने की पुरानी सोच की आलोचना की। जज ने कहा कि यह कानून शादी की पवित्रता बनाए रखने के बारे में नहीं था, बल्कि पति के नियंत्रण को बनाए रखने के बारे में था। कोर्ट ने कहा, 'इसलिए, यह स्पष्ट है कि यह पुराना कानून अब अपना उद्देश्य खो चुका है। यह आज की संवैधानिक नैतिकता के अनुरूप नहीं है। जिस उद्देश्य से इसे बनाया गया था, वह अब मनमाना हो गया है। आज के समय में यह पूरी तरह से तर्कहीन है।' कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया है।
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