क्या और कौन है आज की ​स्त्री ?

वामा            Jan 30, 2017


ज्योति तिवारी।
आज की स्त्रियाँ...आज सुबह से यह वाक्य गूंज रहा कानों में...मैं समझ नहीं पा रही कि आज की स्त्री से क्या मतलब है? क्या वह चंद मुट्ठी भर शहरी औरतें जो किसी पर निर्भर नहीं हैं या वह औरतें जिन्हें कम्प्यूटर चलाना आता है, जो सड़कों पर मोटरें दौडा सकती है जो अपना सारा काम खुद कर लेती हैं,जो एक बार के बाद दुबारा प्रेम नहीं करतीं या जो एक ब्रेक अप के बाद फूंक—फूंककर बेहद शातिर तरीके से अपने कदम रखती हैं। या जो सुख सुविधा संपन्न हैं और जिन्होंने अपने बच्चों के ऊपर अपने विचार नहीं थोपे हैं। या वह औरतें जिन्होंने तलाक के बाद अपनी जिन्दगी बेहद जल्दी पटरी पर लौटा ली या जिन्होंने अपने पति को खुद ही छोड दिया या जिन्हें शादी करने की जरुरत महसूस नहीं होती?

अगर यह मुट्ठी भर सशक्त औरतें ही आज की औरतें है..तब मुझे इस परिभाषा से दिक्कत है। मेरे लिए वह नयी नवेली दुल्हन भी आज की औरत है जिसके अपर लिप्स के रोये थोड़े घने हैं..! मेरे लिए तीन चार ब्रेकअप करने वाली लड़की और जार—जार रोने के बाद भी शादी में भरोसा रखने वाली लडकी आज की स्त्री है...! मैं उस नयी मां को भी आज की ही स्त्री समझती हूँ जिसने बिटिया पैदा होते ही उसमें अपने अधूरे सपनों को पूरा करने की क्षमता खोजनी शुरू कर दी है..। तो उस गोबर पाथने वाली,गाय दुहने वाली और खेत जोत लेने वाली औरत को भी आज की औरत समझती हूँ जिसका पति कुछ नहीं करता फिर भी वह अपने पति को छोडने को तैयार नहीं...। मुझे तो वह भी आज की ही स्त्री लगती है जो महीने भर खटने के बाद चुपचाप अपनी सैलरी अपने पति के हाथ पर रख जाती है।

भारतीय परिदृश्य में मेरे लिए आज की औरतों से मतलब शहर से लेकर गांव और आदिवासी औरत से भी है।कृपया आज की औरतों की परिभाषा का फलक इतना भी संकुचित ना किया जाये कि बस सशक्त औरतें ही इसका हिस्सा रहें।हर वह औरत आज की औरत है जो संघर्ष कर रही है,परिस्थितियों से सामंजस्य बिठा रही है और रिश्तों के धोखे को दरकिनार कर फिर से भरोसा कर रही,जो जीना चाह रही है जो अधेड होकर भी सुन्दर दिखना चाह रही,जिसने जीवन के प्रति अपनी उत्कट लालसा बरकरार रखी है।

फेसबुक वॉल से।

 



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