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समाज रामू और जुम्मन के बीच उलझकर रह गया, खुद जिम्मेदार क्यों नहीं बनते

वामा            May 05, 2022



नरसिंहपुर से समीर खान।
दो दिन पहले की वीरा लॉन वाली दुःखद घटना को लेकर कई नौजवान सोशल मीडिया या मोबाईल पर मार्गदर्शन माँग रहे हैं। कोई कानून व्यवस्था पर ऊँगली उठा रहा है तो कोई यह कह रहा है कि गोली मार दो।

वह व्यथित हैं और परेशान भी हैं कि आखिर यह घटनाएं हमारे जिले में क्यों हो रही हैं?

इस सवाल का जबाव पूर्व की घटनाओं पर चिंतन करके खोजा गया है।

इस चिंतन के बाद यह बात सामने आई है कि बीते सालों में हमारे नरसिंहपुर जिले में बच्चियों के साथ जो जघन्य अपराध घटित हो रहे हैं उसके लिए यहां का प्रत्येक नागरिक जिम्मेदार है।

क्योंकि समाज के नौजवानों को जिस दिशा में प्रयास करने चाहिए वह उससे विमुख हो रहे हैं।

सबके अपने खूंटे गड़े हुए हैं, सामाजिक और स्थानीय समस्याओं पर वह बात करना नहीं चाहते, जबकि छोटी-छोटी संगोष्ठियों के माध्यम से हम सबको जागरूक बना सकते हैं।

घटनाएं होती हैं, कुछ बेहद बुरी पर सोशल मीडिया पर गुस्सा जाहिर करना इसका हल नहीं।

लोगों को समाज के लिए जिम्मेदार बनना होगा, ऐसी घटनाओं को हम सिवाय जागरूकता के किसी और माध्यम से नहीं रोक सकते।

तेंदूखेड़ा की तरह ही यह दूसरी घटना है लेकिन बरमान मिडली टोला, विपतपुरा को हम विस्मृत नहीं कर सकते।

अगर अपराध कारित करने वाला सजा के भय में होता तो यह घटना ही कारित न करता, इसमें कोई शक नहीं कि कानून अपना काम बखूबी कर रहा है।

लेकिन अपराधी के मन में जो पाप चल रहा होता है उसे सिर्फ हम सामाजिक स्तर पर कॉलेज, स्कूल, मुहल्लों में युवाओं महिलाओं, बच्चियों, बुजुर्गो से बातचीत करके मानसिकता को बदलने की कोशिश कर सकते हैं।

हमें आश्चर्य है कि नरसिंहपुर जिले में इस दिशा में कोई संगठन, मातृशक्ति, राजनीतिक दल या सामाजिक लोग, बुद्धिजीवी वर्ग प्रयास नहीं कर रहे हैं।

हम उन मुद्दों के लिए रोज लड़ रहे हैं जिससे समाज का कोई सरोकार नहीं पर जो हमारे मानव समाज से जुड़ी विसंगति हैं उन पर बात नहीं करते।

राजनीतिक लोग विज्ञप्ति, बयान जारी करके अपनी औपचारिकता निभा रहे हैं, संगठन सोशल मीडिया पर रोष व्यक्त कर रहे हैं, हम पत्रकार सिर्फ घटनाएं प्रस्तुत कर रहे हैं।

बाकी लोग गुस्सा जाहिर कर रहे हैं इस तरह औपचारिकताएँ निभाई जा रही हैं, यही समाज हम निर्मित कर रहे हैं।

दरअसल हमें खुद सोचना होगा कि हम कैसा समाज निर्मित कर रहे हैं? या कैसा समाज चाहते हैं?

जब आप अपनी सामाजिक जिम्मेदारी तय करने लगेंगे तो जाहिर है यह समाज वैसा ही होगा जैसा आप चाहते हैं।

आपको बुरा लग सकता है कि आज समाज दो दिशाओं में काम कर रहा है कि आरोपी रामू है या जुम्मन..?

इन दो नामों पर ही समाज का खून उबाल मारता है, न तो रामू के लोग जिम्मेदारी निभा रहे हैं न जुम्मन के लोग जुम्मन को रास्ता दिखा रहे हैं।

इसलिए समाज इन्हीं दो लोगों के बीच उलझकर रह गया।

जुम्मन और रामू से परे भी इंसानियत है जिसके लिए कोई भी आगे आना नहीं चाहता।

जिस दिन आप रामू और जुम्मन को भूलकर सिर्फ मानव समाज के लिए अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने लगेंगे समाज खुद ब खुद बेहतर बन जायेगा।

इस छोटी सी बात को न तो कोई मौलवी जी समझा पा रहे हैं न कोई शास्त्री जी। बाकी सियासत क्या चाहती है वह सब बेहतर जानते हैं।

इसलिए हमें खुद में सुधार की आवश्यकता है, नौजवानों को फिजूल की सियासतबाजी और फितूर को छोड़कर समाज के लिए काम करना होगा, समाज के प्रत्येक वर्ग को जागरूक करना होगा।

वरना हर पान चाय ठेले, विभिन्न जगहों पर बैठकर आप रोज यही तय करते रहिए कि भाजपा या कांग्रेस के लिए कैसे काम करें, भाजपा कांग्रेस को कैसे मजबूत बनाएं।

या फिर यही सोचो कि जुम्मन या रामू में से किसके साथ और खिलाफ खड़े होना है। पहले अपने घरों व आस-पास की जिम्मेदारी सम्भालिए, अपने गांव अपने शहर की आवाम को जागरूक बनाइये।

आप हमसे असहमत हो सकते हैं पर जो अनुभव घटनाओं को नजदीक से देखने के बाद आया उसे ही प्रस्तुत किया है।

बाकी सबकी अपनी सहूलियतें होती हैं जो अच्छा या बुरा दोनों पक्ष तय करती हैं।


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