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एक अकेली भिखमतिया की जमीन पर रसूखदारों का गिद्ध झपट्टा, कहानी लंबी है...

खास खबर, वामा            Nov 02, 2019


ममता यादव, मल्हार मीडिया।
भिखमतिया, ये एक नाम है उस आदवासी महिला का जिसने अपनी जमीन वापस पाने के लिए गांधीवादी रास्ता अपनाया इस उम्मीद में कि शायद जिम्मेदार उस पर ध्यान दें और उसे न्याय मिले। पर ऐसा हुआ नहीं।

भिखमतिया ने गांधी जयंति यानि कि 2 अक्टूबर से मध्यप्रदेश के अनुपपुर जिले के इंदिरा चौक पर सत्याग्रह शुरू किया। स्थानीय मीडिया ने उसे पूरी तवज्जो दी पर भिखमतिया का संघर्ष राज्य और देश की मीडिया का ध्यान अपनी ओर नहीं खींच सका।

खैर 2 अक्टूबर से 1 नवंबर तक अनुपपुर में सत्याग्रह कर रही 70 वर्षीय विधवा भिखमतिया ने आखिर को राजधानी भोपाल आकर मुख्यमंत्री कमलनाथ से गुहार लगाने का फैसला किया और वह पूर्व भाजपा विधायक रामलाल रौतेल के साथ अमरकंटक एक्सप्रेस से सुबह साढ़े 10 बजे जैसे ही हबीबगंज स्टेशन पर उतरी तो भोपाल एसडीओपी, दो एसडीएम और डिप्टी कलेक्टर 10—15 पुलिस वालों की फौज लेकर उसे घेरने पहुंच गए।

भिखमतिया के परिवार को स्टेशन पर ही करीब दो ढाई घ्ंटे वहां रोककर रखा गया। बाद में पूर्व विधायक श्री रौतेल ने उन्हें समझाया कि ऐसी कोई बात नहीं है कि जिससे राजधानी में किसी तरह की अशांति हो इसके बाद करीब 2 घंटे बाद उन्हें छोड़ा गया।

गरीब भिखमतिया की जमीन पर रसूखदारों के गिद्ध झपट्टे की कह कहानी 1998 से शुरू होकर आज तक चली आ रही है और बारी—बारी से किसी न किसी रसूखदार द्वारा उसकी जमीन को टुकड़ों में झपटने का खेल जारी है।

पहली नजर में भिखमतिया को देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि ये महिला करीब 9 एकड़ जमीन की मालकिन रही होगी। जो कि उससे पटवारी ने धोखाधड़ी करके पहले खुद के नाम और फिर वर्तमान सत्तापक्ष से जुड़े एक रसूखदार के नाम करवा दी।

इसक पता भिखमतिया को तब चला जब उसकी जमीन पर निर्माण शुरू हो गया। अनपढ़ भिखमतिया को पटवारी ने कभी कुटीर के नाम पर तो कभी किसी और योजना के नाम पर बरगलाकर उससे कागजों पर अंगूठा लगवा लिया।

ये भिखमतिया की पुश्तैनी जमीन थी और उन्हीं के परिवार के पास थी। विधवा भिखमतिया का एक विकलांग बेटा है जो कुछ सालों से लकवा का शिकार है। दो बेटियां हैं जिनकी शादी हो चुकी है।

आमतौर पर आदिवासी की जमीन आदीवासी द्वारा खरीदने बेचने पर किसी शासकी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती इसी का फायदा पटवारी रमेश सिंह ने उठाया। चूंकि वह खुद भी आदिवासी गौंड़ है तो उसने अपने अधिकारों का दुरूपयोग कर धोखे से पहले खुद के नाम पर 20 डिस्मिल जमीन अपने नाम कर ली। यह सिलसिला कोई 2007 से नहीं बल्कि 1998 से चला आ रहा है जब, तत्कालीन जनपद अध्यक्ष सूर्यदीन गौड़ ने भिखमतिया के पति से फरजी तरीके से कम जमीन के पैसे देकर ज्यादा जमीन हड़प ली।


इस बीच पटवारी की करतूत का पता एक स्थानीय आदिवासी रसूखदार नेता को पता चला तो उन्होंने भी पहले तो पटवारी को बुलाकर उसकी क्लास ली जिस भी तरीके से ली जा सकती थी। फिर उस पर दबाव डालकर जमीन अपनी पत्नि के नाम करवा ली। ये रसूखार आदिवासी नेता पूर्व मंत्री रहे हैं और वर्तमान में सत्तापक्ष की तरफ से विधायक हैं।

सन् 1957—58 से भिखमतिया के सास—ससुर बैठोल कोल पति स्वर्गीय लटी कोल पट्टेदार हैं। उनके पुत्र टुकू कौल और बेसाहन कोल इस जमीन के उत्तराधिकारी थे।

भिखमतिया ने अपने ज्ञापन में बताया है कि 1998 में सबसे पहले तत्कालीन जनपद अध्यक्ष सूर्यदीन गौंड़ ने 5 डिस्मिल जमीन का सौदा करके मेरे अनपढ़ पति से 62 डिस्मिल का पट्टा बनवा लिया। भिखमतिया का पति न्याय की मांग करते—करते दुनियां को अलविदा कह गया।

इसी तरह पटवारी रमेश सिंह ने मार्च 2007 में 20 डिस्मिल का सौदा करके अंगूठा लगवा लिया लेकिन उसका पैसा पूरा नहीं दिया।

 

जब पटवारी ने बाकी भूमि पर कब्जा करना शुरू किया तो पता चला कि उसने अपने ससुर झल्लू सिंह गोंड के नाम अलग—अलग बटांक से 0.269 हेक्टेयर का नामांतरण ककर लिया और पंजीयक की मिली भगत से रजिस्ट्री की मूल कॉपी में कांटछांट कर ली। इस रजिस्ट्री में विक्रेता, अधिवक्ता, गवाह तथा रजिस्ट्रीकरण के हस्ताक्षर नहीं हैं। केवल पटवारी रमेश सिंह के ससुर झल्लू सिंह के हस्ताक्षर हैं।

इस भूमि पर अतिक्रमण के संबंध में विधानसभा में भी सवाल उठाया जा चुका है जिसे तत्कालीन राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने सही बताया था।

भिखमतिया के अनुसार उन्होंने कलेक्टर, एसडीएम, पुलिस अधीक्षक एवं कोतवाली अनूपपुर में कई बार शिकायत की है। लेकिन न्याय नही मिल पाया।

भिखमतिया का कहना है कि पटवारी रमेश सिंह ने मुझसे कई साल पहले कागजों पर अुगूठे लगवाए थे बाद में पता चला कि पूव्र मंत्री बिसाहूलाल सिंह ने अपनी पत्नि श्रीमति जगोतिया बाई के नाम खसरा क्रमांक 1080/1क रकबा 0.450 हेक्टेयर एवं खसरा क्रमांक 1078/1 ख 0.235 कुल रकवा 0.685 हेक्टेयर का हस्तांतरण करा लिया है। जिसके एवज में भिखमतिया को एक रूपया भी नहीं दिया गया।


भिखमतिया द्वारा मुख्यमंत्री कमलनाथ को दिए गए ज्ञापन के अनुसार खसरा नंबर-1080/1क/1/2 की भूमि सबसे पहले सूरजदीन सिंह ने खरीदी, उसके बाद फरवरी 2007 में झल्लू सिंह गोड उम्र 58 वर्ष निवासी बरतराई थाना बिजुरी के द्वारा क्रय किया गया और फरवरी 2007 में ही श्रीमती जोगतिया बाई आयु 46 वर्ष पत्नी बी.एल. सिंह निवासी ग्राम परासी थाना भालूमाडा ने खरीदा।

जिला स्तर पर लड़ाई लड़ते- लड़ते न्याय न मिलने पर तंग आकर बेवा भिखमतिया अपने विकलांग पुत्र संतोष सहित पूरे परिवार के साथ राजधानी भोपाल में आमरण अनशन करने का फैसला किया है।

पुश्तैनी जमीन को पटवारी द्वारा अपने ससुर झल्लू सिंह आत्मज घासी सिंह निवासी ग्राम बरतराई थाना बिजुरी तहसील कोतमा जिला अनूपपुर के नाम जमीन को नियम बिरुद्ध हेराफेरी के तरीके से बिकवाने का मामला बेशक 12 साल पुराना है मल्हार मीडिया को भिखमतिया द्वारा दिए गए दस्तावेज इस पूरे खेल की कहानी साफ—साफ बयां कर रहे हैं।

मल्हार मीडिया को अपनी व्यथा बताते हुए रूंधे गले से भिखमतिया ने बताया कि पटवारी रमेश सिंह ने हमारे भरोसे को कुचलता हुआ मेरे गरीब व अनपढ़ होने का फायदा उठा कर हमारी जमीन को हड़प लिया।

मुझे तो तब पता चला जब वह हमारी जमीन पर कब्ज़ा कर निर्माण करने लगा। हमने विरोध किया तो कहने लगा हमने इस जमीन को ख़रीदा है।

हमने कहा कि हमने तो बेचा ही नहीं। यह जमीन हमारी है तुमने किससे खरीद लिया तो वह हमें धमकाते हुए गाली -गलौज करने लगा,बोला ज्यादा बोलेंगी तो तुझे और तेरे अपाहिज लड़के को मार कर फेक देंगे।

इसके बाद कई दिनों तक रात, दिन, दोपहर, जब तब गुंडे, बदमाशों को भेज- भेज कर जान से मारने व जेल भिजवाने की धमकी देने दिलाने लगा। भिखमतिया के अनुसार वह इस सारे घटनाक्रम से घबराकर सुरक्षा के लिहाज से विकलांग बेटे के साथ अपनी बेटी के घर रहने लगी।

फ़िर हिम्मत कर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। मैं थाने के चक्कर काटती रही। कई महीनों बाद थाना पुलिस ने जाँच पड़ताल कर उसके हेरा-फेरी का भंडाफोड़ तो किया परंतु कार्रवाई आज तक नहीं हुई और न ही हमारी जमीन हमें मिली।

बहरहाल मल्हार मीडिया को मिले दस्तावेजों में सारी कहानी बयां हो रही है। कहीं रजिस्ट्रार की सील नहीं है तो कहीं किसी एक ही कागज में अलग—अलग तारीखों की सीलें हैं। वहीं रजिस्ट्री में कांटछांट कर उसमें बदलाव किया गया है।

 फिलहाल भिखमतिया पिछले 24 घंटे से मुख्यमंत्री कमलनाथ से मिलने की कोशिश में राजधानी में है मगर उनकी मुलाकात मुख्यमंत्री से हो नहीं पाई है। कल वे अपनी गुहार लेकर राज्यपाल के पास जाएंगी।

उनकी मुख्य मांग सरकार से यह है कि उन्हें उनकी जमीन वापस दिलवाई जाए और पटवारी को सेवा से बखा्रस्त कर उसके खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया जाए।

भूमि से बेजा कब्जाधारियों को हटाया जाए और जिस 5.30 एकड़ भूमि पर कोई विवाद नहीं है उसका मौके पर कब्जा दिलवाया जाए।

इस पूरे प्रकरण के बाद एक सवाल उठता है कि क्या पटवारी या अन्य प्रशासनिक मशीनरी सिस्टम पर इती हावाी है कि साल दर साल दशक दर दशक कोई अपने अधिकार अपनी नाइंसफी के लिए लड़ रहा है पर हर पांच साल में बदलती सरकारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है।

आलम ये कि एक 70 साल की फटेहाल बुजुर्ग महिला एक महीने से सत्याग्रह कर रही है पर किसी राजस्व अधिकारी ने उससे आकर बात तक करने की जहमत नहीं उठाई।

आप अंदाजा लगाईये कि पद पैसा पॉवर से गलेगले तक अघाये रसूखदार भी गिद्धों का अनुसरण करते हुए किस तर दिन रात गरीब भोले अनपढ़ आदिवासियों की जमीनों पर या तो झपट्टा मारने तैयार बैठे हैं या मार चुके हैं। पता नहीं कितने भिखमतिया और लटी इसी तरह न्याय के लिए लड़ते—लड़ते खाक होते रहे हैं होते रहेंगे। जवाबदेह कौन है, सिस्टम या समाज?

खबर लिखे जाने तक भिखमतिया की मुलाकात मुख्यमंत्री से नहीं हो पाई। मगर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने इस प्रकरण में न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करने का आश्वासन भिखमतिया को दिया है। 

 



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