अपने घर में उपेक्षित बेगम अख्तर

वीथिका            Jan 18, 2015


फैजाबाद से कुंवर समीर शाही एै मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया..., वो जो हम में तुममें करार था, तुम्हे याद हो, कि न याद हो...। ऐसी कई यादगार गजलों को गाने वाली अख्तर बाई फैजाबादी उर्फ बेगम अख्तर ने आज से 80 साल पहले बिहार में पन्द्रह साल की उम्र में स्टेज पर पहली बार अपनी गायकी का जादू बिखेरा था। यहां की बदनाम गली से निकल कर शोहरत की बुलंदियों को नापने वाली मलिका-ए-गजल बेगम अख्तर को जीते जी यहां वह दर्जा नहीं मिला, जिसकी हकदार थीं। उनकी मौत के 39 साल बाद पुण्य तिथि के मौके पर किसी ने उन्हें याद करने की जहमत तक नहीं की। यह बात अलग है कि वर्ष 2014 को उनका शताब्दी वर्ष के तौर पर मनाया गया। राहत की बात यही है कि इतने वर्षो बाद ही सही उनकी याद को संजोने की कोशिश तो शुरू हुई है, धीरे-धीरे ही सही। फैजाबाद नगर पालिका ने हमदानी कोठी से होकर गुजरती रीडगंज की सड़क को काफी मुश्किलों के बाद उनके नाम किया है। पदमश्री गजल गायिका बेगम अख्तर का घर फैजाबाद के रीडगंज हमदानी में था। उनका यह घर अब बिक चुका है। स्थानीय लोग काफी लंबे समय से उनके घर के बाहर से गुजरने वाली रोड का नाम उनके नाम पर रखे जाने की मांग कर रहे थे। अब हमदानी कोठी को स्मारक बनाने की मांग की जा रही है। इस कोठी को बेगम अख्तर ने खरीदा था। वह नक्खास मुहल्ले से यहां आईं थीं। रियाज के लिए कुछ वर्ष उन्होंने यहां भी गुजारे। यह कोठी अब एक कांग्रेसी नेता की निजी संपत्ति बन चुकी है। भदरसा कस्बा में उनके जन्म स्थान की तलाश भी अब शुरू हुई है। बेगम अख्तर का जन्म सात अक्टूबर 1914 को फैजाबाद के भदरसा कस्बे में हुआ था। उनका नाम अख्तरी बाई रखा गया। यह परिवार नृत्य व संगीत प्रेमी था। अख्तरी बाई को शिक्षा देने के लिए भदरसा से नक्खास के एक मकान लाया गया। नक्खास उन दिनों बदनाम गली मानी जाती थी। उनकी गायन प्रतिभा को देखकर उन्हें पटना के सारंगी वादक उस्ताद इमदाद खान के पास संगीत शिक्षा के लिए भेज दिया गया। यहां से निकल कर पटियाला व लाहौर के संगीत की शिक्षा ली। 15 साल की उम्र में 1934 में उन्होंने पटना में अपनी गायन प्रतिमा का लोहा मनवा दिया। मेगा फोन रिकार्ड कंपनी ने उनकी ठुमरी व गजल के कई संस्करण निकाले। काफी समय तक वह देश व विदेश में कार्यक्रम पेश कर शोहरत की बुलंदियों को छूती चली गईं। 30 अक्टूबर 1974 को अहमदाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने उन्होंने दम तोड़ दिया। घनीभूत संवेदनाओं को गजल की राह देकर स्वरों की शमा जलाने वाली बेगम अख्तर की जन्मभूमि उपेक्षा की शिकार है। जिले के साहित्यकार से लेकर हर तबका पुश्तैनी घर को स्मारक बना उनकी यादों को संजोने की मांग करता आ रहा है, मगर शासन-प्रशासन में आवाज नक्कारखाने में तूती साबित हो रही है। पैदाइशी जगह की आबोहवा में गीत-संगीत की व्यथा-कथा तैर रही है। भदरसा की कलात्मक उर्जा ऐसी कि यहां की माटी में जन्मी बेगम अख्तर जब दर्द से भीगे शब्दों को थरथराते स्वरों से सांधती थीं तो चरिंदों और परिंदों की चहचहाहट भी शांत हो जाती थी। वक्त के थपेड़ों ने कला की इस उर्वर भूमि की ऊर्जा को तो सोख ही लिया उनकी बची-खुची निशानियां भी मिट रही है। जहां से वेदना का सोता फूटा, वहां गीत-संगीत की धारा सूख गई। जो पदमश्री व पदमभूषण से अलंकृत हुआ, उसका घर मिट्टी के थूह में तब्दील होकर अब कूड़ेघर बन गया है।


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