क्यों पीछे हटे विनय कटियाार
एक जमाने में राम मंदिर का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के लिये जीवन-मरण का प्रश्न था, लेकिन शनै:शनै: उसने इस मुद्दे को नजरअंदाज किया। यहां तक कि मंदिर वहीं बनायेंगे का नारा देने वाले विनय कटियार भी काफी समय से बैकफुट पर दिखाई देने लगे। क्या था इसका कारण। क्या कोरिया सरकार द्वारा दिया गया दो सौ करोड़ का वह प्रस्ताव जो उन्होंने अयोध्या में अपनी रानी के स्मारक स्थल को बनाने के लिये दिया था या कुछ और? क्या कोरिया की रानी हो वाकई कभी अयोध्या की राजकुमारी रहीं थीं। इतिहास और वर्तमान के तथ्यों की पड़ताल करती और परतें उघेड़ती समीर साहनी की खबर...
अयोध्या के सरयू तट पर कोरिया गणराज्य की महारानी 'हो' का जन्म स्थान स्मारक बना हुआ है। भाजपा ने देश के हिन्दुओं को 'सौगन्ध राम की खाते है- हम मंदिर वहा बनायेंगे' का नारा दिया। कौन जानता था कि यह नारा सत्ता पाने की कुंजी भर है। यर्थाथ में मंदिर निर्माण से भाजपा का कोई नाता नही है। इसका आभास उसी दिन मिल गया था, जब मंदिर निर्माण के मुद्दे पर भाजपा ने सत्ता हासिल करने के बाद कोरिया गणराज्य की महारानी 'हो' का जन्म स्थान स्मारक बनाने पर सहमति प्रदान की । कोरिया गणराज्य ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में आसीन भारत सरकार के सामने अयोध्या के सम्पूर्ण विकास एवं उधोग धन्धों की स्थापना के लिए दो सौ करोड़ रूपये की सहायता देने का प्रस्ताव रखा। इतना सुन्दर प्रस्ताव पाकर भाजपा सरकार गदगद हो गई। इससे कुछ समय पहले ही भाजपा सरकार ने भाजपा सरकार ने 21 करोण रूपये मंजूर किये। भाजपा ने बहुत ज्यादा सोच-विचार किये बिना ही कोरिया गणराज्य का प्रस्ताव मान लिया। कोरिया गणराज्य ने भाजपा सरकार की सहमति हासिल होने के बाद अपने देश की महारानी का जन्म स्थान अयोध्या हो गया और वहां पर रानी हो-जन्म स्थान स्मारक बनाने की शर्त रखी। इस शर्त के आगे भाजपा मंदिर निर्माण का संकल्प भूल गर्इ। वो कोरिया गणराज्य से मिलने वाले दो सौ करोड़ रूपये हाथ से जाने नही देना चाहती थी। रानी हो के स्मारक के बदले दो सौ करोड़ रूपये के समझौते में भाजपा के फायर ब्राण्ड नेता विनय कटियार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ।
'अयोध्या-कोरिया सम्मेलन'
विनय कटियार तक यह योजना काग्रेंस के प्रभावशाली स्थानी नेता पूर्व सांसद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री ने स्वंय को परदे के पीछे रख कर राजा अयोध्या बिमलेन्द्र प्रताप सिंह के माध्यम से पहुंचार्इ थी। योजना में महारानी हो की याद में अयोध्या को सिस्टर सिटी बनाने का फार्मूला शामिल था। योजना और फार्मूला का भाजपा के मुख्यमंत्री तक पहुंचाया गया। उन्होंने सहमति देने में विलम्ब करना उचित नही समझा। सत्ता में थोड़ी बहुत खींचतान के बाद योजना को अंतिम मंजूरी दे दी गर्इ। भाजपा मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने तयशुदा कार्यक्रम तैयार कर दिया गया। तारिख निशिचत कर दी गर्इ। कोरिया गणराज्य से सौ प्रतिनिधियों का शिष्ट मण्डल फैजाबाद पहुंचा और सामाजवदी पार्टी के जिलाध्यक्ष अशोक सिंह के फैजाबाद रेलवे स्टेशन के नजदीक सिथत कृष्णा होटल में ठहरा। उनकी आगवानी अयोध्या नगर पालिका की तत्कालीन अध्यक्ष श्रीमती चन्द्रकान्ती मिश्र ने की। सैद्धानितक तौर पर सरकार की ओर से उन्होंने ही समझौते पर स्वीकृति प्रदान की। इसे 'अयोध्या-कोरिया सम्मेलन' का नाम दिया गया।
सम्मेलन दोपहर में समाप्त हुआ। सम्मेलन के बाद कोरिया का सौ सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल फैजाबाद प्रशासन लाव लश्कर के साथ सरयू तट के नया घाट पर राम कथा पार्क पहुंचा। वहीं पर महारानी हो के जन्म स्थान स्मारक का शिलान्यास निश्चित हुआ था। स्मारक के इस उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह को स्वंय आना था। किन्तु किसी कारणवश वो नही पहुंच पाये। राजनाथ सिंह अपनी जगह तत्कालीन पर्यटन राज्य मंत्री लल्लू सिंह को भेजा। लल्लू सिंह के साथ उस शिलान्यास कार्यक्रम में कलराज मिश्र रमापति शास्त्री और शिवकान्त ओझा सहित प्रदेश सरकार के 11 मंत्री उपस्थित हुए। शिलान्यास समारोह में भाजपा के फायर ब्राण्ड नेता विनय कटियार ने महारानी हो का अयोध्या से रिश्ता जोड़ते हुए संभवत: एक काल्पनिक कहानी सुनार्इ।
कटियार की काल्पनिक कहानी
करीब दो हजार साल पहले 'हो' का जन्म अयोध्या में हुआ बड़ी होने पर वो रोज सरयू में नहाने जाती थी। नहाने के बाद उसे नौका सवारी का शौक था। नौका सवारी के दौरान एक दिन तेज तूफान आया। तूफान में उसकी नौका भटक गई। कोरिया गणराज्य के महाराजा ने उसे देखा और उस पर मोहित होकर उससे शादी कर ली महाराजा ने उनका नाम 'हो' रखा। महारानी हो ने कोरिया गणराज्य उत्तराधिकारी को जन्म दिया। बाद में वो कोरिया की राजमाता के नाम से सुविख्यात हुर्इ।''
मनोरंजन के लिये इस कहानी में हर तरह का मशाला है, लेकिन यथार्थ के धरातल पर यह कहानी गले से नीचे नही उतरती। कहानी पूरी तरह कपोल-कल्पित नजर आती है। कहानी में न तो अयोध्या में जन्म लेने के बाद कोरिया की इस राजमाता के भारतीय नाम का उल्लेख है और न ही उनके मां-बाप के वंशावली का जिक्र है। सबसे ज्यादा समझ में न आने वाला तथ्य यह है कि वो कौन सा काल था, जब से सरयू नदी अयोध्या से होकर कोरिया गणराज्य तक बहती थी। मेरी नजर में ऐसा समय काल कभी था ही नही फिर भला तूफान में भटककर महारानी हो की नौका कोरिया गणराज्य की सीमा में कैसे पहुंची होगी? क्या इसका जवाब विनय कटियार या भाजपा दे सकती है?
विदेशी महारानी स्मारक निर्माण के बदले प्रदेश भाजपा सरकार को मिले 200 करोड़ रूपये अयोध्या के विकास के लिये थे, वो धनराशि कहां गयी? उस धनराशि से अयोध्या का विकास करवाया गया? अगर करवाया गया तो उस धनराशि से हुआ विकास कहां है? जान पड़ता है कि 200 करोड़ का घोटाला कर लिया गया? मैं अयोध्या की यात्रा करता रहा हूं, वहां मुझे विकास की कोर्इ वानगी नही आयी।
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