जलो मगर...जलने में क्या रखा है?

वीथिका            Mar 01, 2016


sanjay-joshi संजय जोशी सजग। हमारे देश में ट्रकों पर सुधारवादी वाक्यों की भरमार पायी जाती है जिसे पढ़ते सब हैं पर सब अपने आप को उससे ज्यादा ज्ञानवान मानकर देख कर भी अनदेखा कर देते हैं। ऐसा ही ब्रम्हवाक्य मैंने हमारी गाड़ी के आगे चलने वाले ट्रक पर लिखा देखा , इससे पहले कई बार पढ़ने में आया मैंने भी उसे ऐसे ही समझ कर छोड़ दिया ,पर इस बार तो वह मेरे दिमाग के हेलोजन को वार्मअप कर गया कि लना एक आम बीमारी है हर कोई हर किसी से जलता है पर जल कर भी क्या बिगाड़ लेता है फिर भी जलता है जीवन भर जलता है। उनके लिए लिखा था की जलो मगर प्रकाश दो ,धुऑं देकर जलने में क्या मिलता है। जलना अंतिम सत्य है तो रोज -रोज जलकर क्या उखाड़ लेंगे, सब जानते हुए भी जलना कौन सी मजबूरी है ,और यह एक मानसिक विकार बन चुका है ,पराई थाली में कुछ ज्यादा ही नजर आता है। विज्ञापन भी जलने की भावना में उत्प्रेरक का काम करते हैं और जलने की भावना को प्रबल बनाते है जैसे -तेरी साड़ी की सफेदी ,मेरी साड़ी से ज्यादा क्यों ?कुछ तो डींग हाँक कर जलाने की आदत में निपुण पाये जाते हैं। जलने की आदत हर किसी में स्वत: आ जाती है और जीवन भर साथ निभाती है, इससे कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। हर दो पाये में इसका कोई न कोई स्तर जरूर पाया जाना,इसे ईश्वरीय देंत्रन भी कह सकते हैं। राजनीति , हॉलीवुड से बॉलीवुड ,साहित्य ,समाज सेवा ,सरकारी व निजी आफिस ,कल कारखाने ,खेल व शिक्षा भी इस जलन की बीमारी से अच्छे खासे पीड़ित है और इनके बिगड़ते माहौल के लिए जलन की प्रबल भावना ही मुख्य रोल निभाती है। स्वहित में जलन की भावना ने राजनीति को किस मोड़ पर ला कर छोड़ दिया है जहां सिर्फ धुँआ-धुँआ नजर आ रहा है। जलन की भावना के लिए सिर्फ महिलाओं को बदनाम किया जाता है पर अब तो नेताओं ने इसमें बाजी मार ली है जलन के साइड इफेक्ट हम रोज देख ही रहे हैं ,पक्ष हो विपक्ष दोनों ही इस इफेक्ट से अपनी राजनीति को अंजाम देते रहे हैं इसके कुपरिणाम हम रोज ही भोग रहे है ,स्वहित में देश हित गौण सा लगने लगा है। एक दूसरे के प्रति कड़वे से कड़वे बोल जलन का चरम है। एक दूसरा विचार भी एक ट्रक पर लिखा था की जल मत बराबरी कर ,सही है कि जलने से क्या होगा उस तक पहुँचने का प्रयास करें। बॉलीवुड में आये दिन इस जलन के कारण ही एक दूसरे को नीचा दिखाने के कई हथकंडों को आजमाया जाता है। टीवी न्यूज़ चैनलों ने तो जलन की भावना को भुनाने में कोई कसर नही छोड़ी ,जो वो चाहेंगे उसके लिए किसी भी तक हद चले जाते है आम आदमी अपना सर खुजाने के अलावा कर भी क्या सकता है। ऑफिस और कम्पनियां भी जलन की भावना से ग्रसित हैं, जिससे लाभ कम नुकसान ही नुकसान है जो दिखाई नहीं देता है । मुझे गीता में लिखा याद आया कि - बुद्धि का नाश होने से महापाप जाग उठता है। उसी तरह जलन की भावना बुद्धि का नाश कर देती है। मैं जलन के चिंतन में था और वह ट्रक फिर अचानक सामने आया मैंने उसे रोककर पूछा भाई आपने लिखा जलो मगर प्रकाश दो इसका क्या मतलब है वह गंभीर हो कर कहने लगा कि हमारे पेशे में जलन की भावना अधिक पाई जाती है इस लिए हम कुछ न कुछ ऐसा लिखते है कि लोग पढ़ें और सोचें ,सोचो तो अच्छा सोचो,जलने से क्या खाक मिलता है इस लिए यह वाक्य लिखा । उसकी सकारात्मक सोच का मैं कायल हो गया और मन ही मन सोचने लगा कि काश सब ऐसा सोचने लग जाये तो देश का परिदृश्य ही बदल जायेगा। मैंने उसे धन्यवाद दिया और आगे बढ़ गया।


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