संजय स्वतंत्र।
प्रकृति अपने आप में तब तक संपूर्ण नहीं, जब तक कि उसे पुरुष का साथ न मिले। मगर इन दोनों के बीच माया भी आती है। वही माया जो पुरुष की ताक़त है।
वही माया जो किरण के रूप में सूर्य की भी शक्ति है। जो इसे नकारात्मक रूप में लेते हैं, वे कभी सकारात्मक हो ही नहीं सकते। ईश्वर की भी योग माया है, तो मनुष्य भी जीव माया से बंधा है।
वही चाह पैदा करती है। यही वो चाहना है जो पुरुष को सब कुछ करने को प्रेरित करती है।
चर्चित लेखक मुकेश भारद्वाज Mukesh Bhardwaj के हालिया बेस्ट सेलर उपन्यास 'मेरे बाद...' में भी एक माया आती है। वह अभिमन्यु की शक्ति है।
इस युवा जासूस की आंखें बहुतों से उलझती हैं। मगर एक माया ही है जो उसे तन- मन का सुख-सुकून देती है।
रात गुजर जाती है, मगर असीम सुख की चाह कभी खत्म नहीं होती। तो यह माया ही है जिसकी आसक्ति पुरुष को आजीवन बांधे रहती है। पुरुष उसका हर जन्म में प्रेम पुजारी बना रहा है।
उपन्यास 'मेरे बाद...' वस्तुत: जासूसी उपन्यास है। कुछ पाठकों ने माया को लेकर नैतिकता और अनैतिकता के सवाल उठाए हैं।
मगर हम में से ज्यादातर लोग जानते हैं कि जासूसी लेखन एक खास विधा है। जासूस की दुनिया रहस्य और रोमांच के साथ भरपूर रोमांस से भी भरी हो सकती है। यही लेखक ने बताया।
आप चंद्रकांता संतति पढ़िए और फिर गोदान पढ़िए। दोनों का एक अलग प्लेटफार्म है, मगर साहित्य दोनों ही है।
अय्यारी लेखन पुरानी विधा है। हिंदी साहित्य में उसे हाशिए पर नहीं रखा गया है। अब समय इस लेखन को आगे बढ़ाने का है और इस दौर में अभिमन्यु जैसे युवा जासूस जब अपराधियों के रहस्य को भेदने आएंगे तो उसके साथ माया भी आएगी।
क्योंकि माया के बिना वह अधूरा है। वह अपना काम करेगा। मगर उसकी शोखियों में भी डूबेगा। उसे डूबने दीजिए। उसे अश्लीलता और नैतिकता के दायरे में मत बांधिए।
माया अभिमन्यु की प्रेम पुजारिन है। हम कौन होते हैं बीच में आने वाले। उसे अपनी शोखियों में शराब और शबाब घोलने दीजिए। उसे गुनगुनाने दीजिए।
4 फरवरी 22, मेट्रो के लास्ट कोच से
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