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पुस्तक समीक्षा: नेहरूजी के जेल जीवन पर केंद्रित जवाहरलाल हाजिर हो

वीथिका            Apr 20, 2025


डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।

नेहरू जी!

मुझे भ्रम था कि मैं नेहरू को समझता हूँ, क्योंकि  मैं उनकी 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया', एमजे अकबर की 'नेहरू : द मेकिंग ऑफ इंडिया', नेहरू जी आत्मकथा और दिनकर जी की 'संस्कृति के चार के चार अध्याय' में नेहरू जी की जबरदस्त भूमिका पढ़ चुका था। अभी पंकज चतुर्वेदी की पेंगुइन हिंदी  स्वदेश से उनकी किताब पढ़ी जो उन पर अलग प्रकाश डाल रही है।

पंकज चतुर्वेदी की किताब 'जवाहरलाल हाजिर हो : जेल की सलाखों के पीछे पंडित नेहरू के 3259 दिन' नेहरूजी के जेल जीवन पर केंद्रित है। यह आज़ादी की लड़ाई के दौरान नेहरू जी  की नौ जेल यात्राओं (1922 से 1945) और उनके कुल 3259 दिनों के कारावास के अनुभवों के बारे में है।

किताब में नेहरू जी की पहली गिरफ्तारी (1922) से लेकर अंतिम रिहाई (1945) तक की घटनाएँ शामिल हैं। Pankaj Chaturvedi  ने यह नेहरू जी की इन जेल 'यात्राओं' के साथ ही  उस दौर की ऐतिहासिक घटनाओं और स्वतंत्रता संग्राम के गमनाम नायकों की कहानियों को भी समेटा है।

जेल के कठिन हालात, नेहरू के मनोबल, उनके वैचारिक विकास को  चित्रित किया है। नेहरू जी ने जेल में रहते हुए अपनी प्रसिद्ध पुस्तकें जो उनके चिंतन की परिपक्वता को दर्शाती हैं। किताब में उनके व्यक्तिगत बलिदान को भी रेखांकित किया गया है—एक संपन्न परिवार के वारिस और लंदन-शिक्षित वकील होने के बावजूद, उन्होंने गांधीजी के प्रभाव में आकर ऐशो-आराम त्याग दिया और स्वतंत्रता को जीवन का लक्ष्य बनाया।

एक दौर ऐसा भी आया जब उनके घर में केवल बच्चे ही जेल में नहीं थे, वे खुद, उनकी मां स्वरूप रानी, दोनों बहनें विजय लक्ष्मी और कृष्णा भी जेल में थे। उनकी पत्नी बीमार थीं और स्वराज भवन में चल रहे कांग्रेस के खैराती अस्पताल का सामान  अंग्रेज हुकूमत ने ज़ब्त कर लिया था। आनंद भवन के बहाने आयकर छापे की तैयारी कर रहा था। (अब फिर इतिहास दोहराया जा रहा है?)

यह किताब केवल नेहरू की जीवनी का हिस्सा नहीं है, बल्कि भारत की आजादी की लड़ाई का दस्तावेज है। नेहरू जी ने दासता के दौर में  कैसे जेल और अदालत को अपनी अभिव्यक्ति का मंच बना दिया, उसका सबूत! यह किताब आज़ादी की लड़ाई में जुटे उन अनगिनत अज्ञात सैनानियों को श्रद्धांजलि देती है, जिनके योगदान को अक्सर भुला दिया जाता है।

किताब  जेल जीवन की कठिनाइयों और सेनानियों के मनोबल को बताने के साथ ही

उस दौर के सामाजिक और राजनीतिक माहौल को समझने में मदद करती है। किताब में जेल के, नेहरू जी के और जेलों में नेहरू जी के यादगार फोटो भी हैं।

पठनीय, संग्रहणीय और 'गिफ्टनीय'!

 


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