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दुनिया की पहली महिला कव्‍वाल शकीला बानो भोपाली की जिंदगी संगीत

वीथिका            Dec 17, 2022


सुधांशु टाक!

बात पुरानी है. मने आजादी के भी बहुत पहले की.  मध्यप्रदेश के भोपाल के एक परंपरागत मुस्लिम परिवार की ग्‍यारह साल की एक लड़की की तारीफ उसके घर वालों के पास पहुंची तो वो खुश होने के बजाए चिंतित हो गए.

तारीफ ही ऐसी थी. तारीफ थी लड़की के शौक की. लड़की की धर्मभीरू मां ने तत्‍काल अपनी लड़की के उस शौक को रोकने का फरमान जारी कर दिया, जो उस लड़की की तारीफों का बायस बना था.

हुआ कुछ यूं था, भोपाल की तंग गलियों में संगीत की सजती महफिलों में उस लड़की ने वाहवाही लूटना शुरू की. बात घर तक पहुंची उसकी मां के कान खड़े हुए. उस ज़माने में तो गीत संगीत से इतना परहेज किया जाता था कि घर के लड़कों को भी इससे दूर रखा जाता था. फिर ये तो लड़की थी, उपर से तुर्रा ये कि लड़की एक परंपरागत मुसलिम समाज से ताल्‍लुक रखती थी. उस दौर के मां बाप कैसे सहन कर सकते थे कि उनकी 11 साल क लड़की संगीत की म‍हफिलों की शान बने.

इसलिए घर्मभीरू मां जमीला ने हुक्‍म सुना दिया कि गीत संगीत बिलकुल नहीं चलेगा. फिर वह लड़की बीमार हो गयी. बीमार भी ऐसी कि वैद्यो ने कहा दिया कि अब यह लड़की कुछ दिनों की मेहमान है. उसकी अंतिम इच्छा जान उसके घरवालों ने उसे गाने की अनुमति दे दी .

आप यकीन करेंगे ? सिर्फ 12 दिनों में, जी हां, कहते हैं जो लड़की मौत की दहलीज़ पर खड़ी हुई थी वो महज़ 12 दिनों में न सिर्फ भली चंगी हो गई बल्कि संगीत की महफिलों में फिर से अपना जादू जगाने लगी. अब आप इसे संगीत का जादू कहें या लड़की की जीवटता, करिश्‍मा होना था, कमाल होना था, हो गया.

यही लड़की आगे जाकर कव्‍वाल बनी, दुनिया की पहली महिला कव्‍वाल. जिसे शकीला बानो भोपाली के नाम से जाना-पहचाना और सराहा गया. उस दौर में मुसलिम महिलाओं का घर से बाहर निकलना ही मुशकिल होता था मंच पर जाकर कव्‍वाली तो दूर की बात थी लेकिन शकीला ने यह जंग भी जीती. ऐसे हालात में जीती जब कव्‍वाली में महिलाओं की आमद कतई संभव नहीं थी. इस असंभव काम को अपनी जीवटता और जि़द से संभव बनाने वाली इस महिला कव्‍वाल को अगर दुनिया की पहली महिला कव्‍वाल का दर्जा दिया गया तो, उस पर किसी ने कोई मेहरबानी नहीं की, कोई एहसान नहीं किया. वो बिना शक इस हैसियत की हकदार थी, वास्‍तविक हकदार

शकिला ने हिंदी फिल्मी गायन में भी अपना अहम मुकाम बनाया चरित्र अभिनेत्री के तौर पर भी वह खूब सफल रही। लेकिन शकीला की जि़ंदगी पूरा फिल्‍मी ड्रामा साबित हुई. उनकी लाइफ में भरपूर अप-एन-डाउन्‍स और नाटकीय मोड़ आये . अपार खुशियां आयी तो बेशुमार ग़म भी.

अब इसे आप क्‍या कहेंगे, जिसकी पहचान ही गले से हो, जिसकी जिंदगी में सबकुछ उसकी आवाज़ की बदौलत हो. उसकी आवाज ही चली जाए और वो बेज़ुबान हो जाए, तो. फिज़ाओं में तैरती अफवाहों ने कुछ ऐसा ही एलान किया कि शकीला की आवाज चली गई है. कहा गया कि भोपाल में हुई गैस त्रासदी ने शकीला से उनसे उनकी आवाज छीन ली है.

लेकिन उनके परिवार के लोगों ने इसे महज़ अफवाह बताया, साथ ही ये भी कहा कि बेशक त्रासदी ने उनकी आवाज नहीं छीनी लेकिन दमा, डायबिटीज़ और हाई ब्‍लड प्रेशर की पहले से ही शिकार रही शकीला को गैस त्रासदी ने काफी क्षति पहुंचायी.

उनके अंतिम दिनों का ठौर मुंबई के सेंट जार्ज हास्‍पिटल का एक कमरा था जहां हाइटिस हार्निया से पीडि़त शकीला अपनी बीमारी से ज्‍यादा अपनी उपेक्षा से परेशान थीं. पेट के अंदर फोड़े की तकलीफ तो वो शायद सहन भी कर पा रही थीं, लेकिन अकेलापन और उपेक्षा उनकी बड़ी पीड़ा थी. जैकी श्राफ जैसे कुछ कद्रदां दोस्‍तों ने उनकी मदद जरूर की लेकिन वो शायद नाकाफी थी. इसी के चलते उन्‍होंने 16 दिसम्‍बर 2002 को इस फानी दुनिया से विदा ले ली.

अंतिम सांस लेने से पहले उनके अंदर 'हमराही' फिल्‍म के लिए उनका ही लिखा एक मशहूर गीत कुलबुलाकर बाहर आने को बेताब हो रहा था – 'अब ये छोड़ दिया है तुझ पे, चाहे ज़हर दे या जाम दें।

 

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