मल्हार मीडिया डेस्क।
वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त ने कल 3 जून को जॉर्ज फर्नांडिस के जन्मदिन पर उनसे जुड़ी स्मृतियों के बारे में अपने विस्तृत लेख में उनके साथ किए गए साक्षात्कारों के महत्वपूर्ण अंश साझा किए:—
गैरकांग्रेसवाद' के विरोधी जार्ज कैसे बन गए भाजपा के पैरोकार
समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस पर उनकी राजनीति को लेकर उनके राजनीतिक विरोधी और उनके करीबी रहे लोग भी दो गंभीर आरोप लगाते हैं. एक तो यह कि 1979 में एक दिन पहले लोकसभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सरकार के पक्ष में ऐतिहासिक और विपक्ष को निरुत्तर कर देनेवाले अपने भाषण से वाहवाही बटोरनेवाले जार्ज अगले दिन उसी सरकार के पतन का कारण कैसे बन गये.
दूसरा, जिस गैर कांग्रेसवाद के विरोध में वह कभी अपने नेता डा. राम मनोहर लोहिया के विरोध में खड़े हो गये थे, उसी गैर कांग्रेसवाद के नाम पर एक समय भाजपा के सबसे बड़े पैरोकार क्यों बन गये. समाजवादी आंदोलन, जनता सरकारों के प्रयोगों की विफलता, भाजपा से सहयोग आदि तमाम सामयिक सवालों पर 1998 में जनवरी के पहले पखवाड़े में जार्ज फर्नांडिस के साथ हमने दैनिक हिन्दुस्तान के लिए लंबी बातचीत की थी. उसी बातचीत के कुछ प्रमुख,
संपादित अंश:
भाजपा के साथ आपके जुड़ाव का कारण मुख्य रूप से आपका घोर लालू विरोध ही रहा है या भाजपा एवं संघ परिवार में आप कुछ बदलाव भी देख रहे हैं.
भाजपा के साथ हमारा तालमेल बिहार के संदर्भ में ही शुरू हुआ था. जब बाकी दल लालू प्रसाद के भ्रष्टाचार को बनाए रखने में योगदान कर रहे थे-भाकपा, माकपा, जनता दल सभी लोग लालू के साथ खड़े थे, तब हम और भाजपा के लोग ही लालू प्रसाद के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे थे. यह एक साथ की लड़ाई हमें आगे इस मुकाम तक ले आई.
आप भाजपा के पैरोकार कब से हो गए? आप तो जनसंघ के जमाने से ही इसके विरोधी रहे हैं. आपने 1963 में गैर कांग्रेसवाद के नाम पर जनसंघ को भी साथ लेने के डा. लोहिया के प्रस्ताव का भी विरोध किया था.
जनसंघ अथवा भाजपा से और उसकी कुछ नीतियों-कार्यक्रमों से हमारा विरोध रहा है, इसमें कोई शक नहीं है. 1963 के सोशलिस्ट पार्टी के कलकत्ता अधिवेशन में मेरे प्रबल विरोध के कारण ही डा. साहब को अपना प्रस्ताव पास कराने के लिए दो बार भाषण करना पड़ा था. लेकिन जब वह प्रस्ताव पास हो गया तब मैं उसके साथ रहा और उसी के आधार पर 1967, 1969 और 1971 के चुनाव लड़े गए. 1977 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सबको एक करके जनता पार्टी बनवाई थी.
लेकिन जनता पार्टी की जिस सरकार का पहले आपने लोकसभा में जोरदार बचाव किया था और फिर एक दिन बाद उसी सरकार को गिराने का जो राजनीतिक धब्बा आप पर लगा, वह आज तक नहीं मिट सका. कुछ बताएंगे!
जिस दिन लोकसभा में मैंने मोरारजी देसाई की सरकार के पक्ष में भाषण दिया था, उससे पहले मुझे पता भी नहीं था कि मधु लिमए, हरकिशन सुरजीत, राजनारायण और कुछ अन्य बड़े नेता उस सरकार को गिराने का फैसला कर चुके थे.
मेरे भाषण के बाद लोग आ आ कर मुझे बधाई दे रहे थे. तभी अहिल्या रांगणेकर ने आकर मुझे बताया कि अगले दिन सरकार गिराने का फैसला हो चुका है. ‘क्या मधु लिमए से तुम्हारी बात नहीं हुई है.’ मैंने जवाब में कहा था, नहीं! उन्होंने ही बताया था कि अगले दिन वे लोग सरकार के विरुद्ध वोट करने जा रहे हैं. अगर सरकार वाकई बचानी है तो सीपीएम की पोलित ब्यूरो की बैठक चल रही है, जाकर बात करो.
मैं सीधे सीपीएम के आफिस गया. लेकिन तब तक उनका फैसला हो चुका था. मैंने उद्योग भवन में अपने आफिस से लंदन ज्योति बसु को फोन किया और पूछा कि सरकार गिराने का फैसला क्यों लिया गया. उनका जवाब था कि जो कुछ हो रहा है, वह गलत है.
तब मैंने उनसे तत्काल नई दिल्ली लौटने को कहा. लेकिन वह समय पर नहीं आ सके. फिर मैंने मंत्री पद से त्यागपत्र देने का फैसला कर चुके बीजू पटनायक और हेमवतीनंदन बहुगुणा से संपर्क किया. लेकिन उनका भी जवाब था कि देर हो चुकी है.
अगले दिन जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक में मोरारजी भाई ने कहा कि उनकी देवराज अर्स से बात हो गई है. उनके लोगों ने सरकार को समर्थन देने की बात कही है. मैंने उन्हें टोक कर जानकारी दी कि अर्स और उनके लोग तो दिल्ली से बाहर जा रहे हैं.
मैंने मोरारजी भाई को सुझाव दिया कि उन्हें त्यागपत्र कर देना चाहिए और जनता पार्टी संसदीय दल के नए नेता का चुनाव गुप्त मतदान से करवाकर इस समस्या का समधान करना चाहिए. उस बैठक में चरण सिंह और मधु लिमए नहीं आए थे.
चंद्रशेखर एवं अटल बिहारी वाजपेयी ने गरदन हिलाकर हामी भरी थी. लेकिन मोरारजी भाई ने कहा कि उन्हें भगवान पर भरोसा है. सदन में उनके विश्वासमत प्रस्ताव पर मतदान के समय भगवान सभी सांसदों को लाल के बदले हरा बटन दबाने की सद्बुद्धि देगा.
मैंने उनसे फिर कहा कि ईश्वर क्या करेगा, नहीं मालूम लेकिन सांसद क्या करेंगे, इसका पूरा एहसास मुझे है. इस पर उन्होंने खीझकर कहा कि ‘मैं अकेला रह जाऊं तो भी त्यागपत्र नहीं देनेवाला.
लेकिन आप कैसे पलट गए?
यह सब चल ही रहा था कि मेरे पास मध्यप्रदेश के समाजवादी नेता जगदीश जोशी आए और बोले कि मधु तुमको लेकर बहुत परेशान हैं. मधु से तुम्हारी बात नहीं हुई क्या? उनसे मिल क्यों नहीं लेते. मैंने कहा कि मधु से मतभेद का सवाल ही नहीं है. अभी जाकर उनसे मिलता हूं. मैं पंडारा रोड पर स्थित मधु लिमए के निवास पर गया. उस समय वहां ऊपर के कमरे में मृणाल गोरे और कुछ अन्य लोग भी बैठे थे. मधु लिमए ने सबको वहां से बाहर हटाकर कमरा अंदर से बंद कर लिया और रुआंसे स्वर में कहा, ‘जार्ज, हमारे इतने पुराने रिश्ते क्या आज टूट गए.’ फिर उन्होंने बहुत सारी बातों का हवाला दिया. मैंने उनसे सिर्फ इतना भर कहा था, ‘मधु अगर बात इस हद तक पहुंच गई है तो लाइए कागज मैं अपना त्यागपत्र लिख देता हूं. और फिर मैंने वही किया.’
1973 की ऐतिहासिक रेल हड़ताल और फिर आपातकाल के दौरान अपने संघर्ष के जरिए भारतीय राजनीति में अपनी अलग पहिचान बनाने के बावजूद आप नेतृत्व की पहली कतार का नेता नहीं बन सके. आपकी भूमिका मोरारजी भाई, चरण सिंह, वीपी सिंह और अब अटल बिहारी वाजपेयी के पैरोकार भर की रह गई है. इसका कारण क्या इस देश की सामाजिक व्यवस्था है?
ऐसी बात नहीं है. हमारे राजनीतिक जीवन के पचास साल पूरे होने को आए. जुलाई 1949 में मैं सोशलिस्ट पार्टी का सदस्य बना. समाजवादी आंदोलन इस देश में किस तरह चला, कैसे वह लोहिया विचार और गैर लोहिया विचारवालों के बीच बंटता-जुटता और फिर बंटता रहा, यह आपको भी पता है. यह बंटवारा आज भी कायम है. हमने अथक प्रयास चलाए कि समाजवादी एक रहें और देश को सही दिशा दे सकें. लेकिन हमारे समाजवादी परिवार में ही इतना द्वंद्व था कि वह कभी मिटनेवाला नहीं. इसे कुछ लोगों ने बार बार सिद्ध किया.जिस आंदोलन को हम लोगों को बनाना, मजबूत करना और परवान चढ़ाना था, वह हम लोगों के कारण ही मिटता, बिखरता और सिकुड़ता गया.
इस देश का समाज या जाति व्यवस्था कभी मेरी राजनीति के रास्ते में रोड़ा नहीं बनी. सोशलिस्ट पार्टी का मैं अकेला महासचिव था. आज कल के विजिटिंग कार्ड छाप महासचिवों की तरह नहीं. उस समय संगठन और पार्टी का मुख्य काम महासचिव के जिम्मे ही होता था. फिर मैं पार्टी का अध्यक्ष बना रेल कर्मचारियों ने पहले अपनी यूनियन का और फिर यूनियनों के महासंघ का अध्यक्ष बनाया.
जहां तक सार्वजनिक जीवन और लोकशक्ति के क्षेत्र में पद का सवाल है, जनता से मान सम्मान के मामले में कभी किसी ने नहीं पूछा कि आपकी जाति क्या है. मुझे बार बार लोकसभा में भेजनेवालों ने भी नहीं! इस संदर्भ में मुझे देशवासियों से कोई शिकवा-शिकायत नहीं. इसके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह अपने ही लोग हैं.
आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन के अध्यक्ष पद से कुछ समाजवादियों ने ही कांग्रेस और सीपीएम से मिलकर मुझे हटवाया था. यह सवाल किसी धर्म और जाति से नहीं बल्कि समाजवादियों के भीतर की ईर्ष्या नफरत और टांग खिंचाई की मनोवृत्ति से जुड़ा है. समाजवादी आंदोलन में आए उतार चढ़ाव और कमजोरी की वजह से समाजवादी कभी एकजुट सामूहिक लक्ष्य बना ही नहीं सके.
आपकी हालत आज भाजपा के उस लियाजों अफसर की हो गई है जिसकी अपेक्षाओं का कभी खयाल भी नहीं रखा जा रहा. इस बेचारगी का सबब!
हमारी कोशिश रही है कांग्रेस को मिटाने की क्योंकि इसके बिना देश में कोई सार्थक बदलाव संभव नहीं. पिछले बीस साल से देश में कांग्रेस या कांग्रेसियों का ही राज रहा है. हमारा मानना है कि कांग्रेस के द्वारा की गई देश की बरबादी से देश को बचाने के लिए कांग्रेस का शक्तिहीन होना आवश्यक है. आज के दिन भाजपा ही यह काम कर सकती है. पिछले बीस साल की राजनीति में कांग्रेस विरोधी अलग अलग दल उभरकर आए.
इनमें कइयों का नेतृत्व निजी स्वार्थों और भ्रष्टाचार के मामले में अथवा राष्ट्रहित को नहीं समझने के मामले में कांग्रेस को भी मात करने लगा. ऐसे में जब बिहार में समता पार्टी और भाजपा के करीब आने की परिस्थिति बनी और हम मिलकर काम करने लगे तब जो रिश्ता बना, हमने उसे विकसित करना चाहा है. अगर इसके लिए कोई मुझे भाजपा का लियाजां अफसर या पीआरओ (जनसंपर्क अधिकारी) कहे तो मैं क्या कह सकता हूं.
लेकिन आपने तो यह भी कहा है कि आप भाजपा की कार्यसूची से सहमत नहीं हैं?
खामखा का विवाद चलाया जा रहा है जिसका कोई मतलब नहीं है. भाजपा से हमारा जिन मुद्दों पर मतभेद है, इसे हमने नहीं छेड़ा है. हमारे और उनके बीच के मतभेद, हमारे नीति वक्तव्य, हमारे कार्यक्रमों और हमारे चुनाव घोषणापत्र में स्पष्ट हैं. उनके नीति कार्यक्रमों को भी हम वर्षों से जानते हैं. लेकिन हमने राजग के न्यूनतम साझा कार्यक्रम से भाजपा के विवादित मुद्दों को बाहर रखवाया।
भाजपा ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश में दलबदल कराया, जिस तरह से माफिया और अपराधी तत्वों को मंत्री बनाया, तमिलनाडु में भ्रष्टाचार की प्रतीक जयललिता से गठबंधन किया, उससे नहीं लगता कि भाजपा सत्ता के लिए भाजपा पागल सी हो गई है!
उत्तर प्रदेश का मामला अनोखा था. वहां एक ऐसा गवर्नर-रोमेश भंडारी-है जिसने जनतांत्रिक ढांचे को तहस नहस करने का काम शुरू कर दिया है. ऐसे में जबकि राज्य का संवैधानिक प्रमुख ही संविधान की अनदेखी करने के कदम उठाता है, तब कुछ ऐसे भी कदम उठाने की जरूरत पड़ सकती है जैसा भाजपा ने किया. अपराधियों के राजनीति में प्रवेश और उन्हें पद दिए जाने के मैं सख्त खिलाफ हूं. हमने इस बारे में भाजपा के नेतृत्व से बातें की हैं. और अगर केंद्र में हमारी सरकार बन जाती है तो कुछ ऐसे उपाय करने की बात की जाएगी कि राजनीति के अपराधीकरण को पूरी तरह से मिटाया जा सके. जहां तक जयललतिा की बात है, हमने उनका और उनके साथ भाजपा के तालमेल का विरोध किया है. स्वदेशी के मामले में भाजपा और समता पार्टी की सोच में भारी अंतर है. स्वदेशी हमारे लिए सिर्फ पार्टी के कार्यक्रम मात्र का हिस्सा नहीं बल्कि विचारधारा का अंग है जबकि भाजपा के लिए वह एक राजनीतिक कार्यक्रम भर है. जब जब भाजपा और हमारे बीच मतभेदों पर चर्चा हुई, हमने स्वदेशी के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया.
बिहार के दबे कुचले लोग मुझे अपना प्रवक्ता समझते हैं-जार्ज फर्नांडिस
समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस के साथ हमारा यह दूसरा साक्षात्कार उस समय का है जब वह बढ़ती उम्र में गिरते स्वास्थ्य के बावजूद
अपने ही लोगों के साथ अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे. 17 सितंबर 2006 के हिन्दुस्तान अखबार में प्रकाशित इस साक्षात्कार के कुछ अंशः
बिहार में नीतीश सरकार बनने के बाद उनके खिलाफ आप इतना आक्रामक क्यों हैं?
बिहार के दबे कुचले और पीड़ित लोग मुझे अपना प्रवक्ता समझते हैं. उन्हें लगता है कि हम उनकी बात को आवाज जरूर देंगे. हाल के दिनों में नीतीश कुमार और उनकी सरकार के बारे में मैंने जो कुछ कहा है, वह मुझसे मिलने आनेवाले लोगों की आपबीती और अनुभवों पर आधारित है. इसे मेरी आक्रामकता के बजाय सरकार के बारे में बन रही जन छवि को सुधारने के लिए दिए जा रहे सुझावों के रूप में देखा जाना ज्यादा ठीक होगा.
पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव हारने की खुन्नस तो नहीं?
मेरे बारे में एक सुनियोजित अभियान चलाया गया कि मैं बीमार हूं. और पार्टी का काम करने के काबिल नहीं हूं. इस सबके बीच ही पार्टी के चुनाव हुए जिसमें अनेक किस्म की धांधली हुई. फर्जी लोगों से वोट डलवाए गए. यहां तक कि जम्मू-कश्मीर से ऐसे लोगों को लाकर वोट डलवाए गए जो वहां सेक्स रैकेट चलाते थे और जो अभी जेल में बंद हैं.
पहले आप पर नीतीश कुमार की कठपुतली के रूप में पार्टी चलाने के आरोप लगते रहे!
पहले अगर हम अंदरूनी लड़ाई-झगड़ों में ही लगे रहते तो बिहार को लालू-राबड़ी राज से मुक्ति की लड़ाई बाधित हो जाती. कई बार अपमान के घूंट पीकर भी रह जाना पड़ा क्योंकि सामने बड़ा लक्ष्य था.
आप पर भाजपा और आर एस एस के प्रवक्ता के रूप में भी काम करने के आरोप लग रहे हैं.
अब तो यह साफ दिख रहा है कि कौन भाजपा के पास जाकर मेरा मुंह बंद करवाने के लिए हाथ जोड़कर मिन्नतें कर रहा है.
आपको राजग के संयोजक के पद से हटाने की बात भी हो रही है!
हमने भी सुना है. राजग कोई विचारधारा पर आधारित दल नहीं बल्कि कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए विभिन्न दलों को मिलकार बना एक प्लेटफार्म है. इसमें पार्टियां आती जाती रहती हैं. मुझे इस तरह के अभियानों से कोई परेशानी नहीं होती.
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