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सौ साल बाद चंपारण में गांधीवाद की बात करना भी गुनाह!

खरी-खरी, वीथिका            Oct 06, 2016


latant-prasoonप्रसून लतांत। बिहार में जिस चंपारण की धरती पर महात्मा गांधी ने किसानों को जुल्मी फिरंगियों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए सफल सत्याग्रह कर देश और दुनिया को राह दिखायी थी। आज उसी धरती पर उनके सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने पर गांधीवाद की बात करना गुनाह हो गया है। इसकी नजीर दबंगों ने नहीं, खुद सरकारी अमले ने पेश की है,जिसको लेकर गांधी, विनोबा और जयप्रकाश नारायण के अनुयायिओं में काफी उबाल आ गया है। बिहार सरकार इस मामले की नजाकत को समझ कर जल्दी से कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाएगी तो गांधीजी के नुयायि आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतरने से बाज नहीं आएंगे। चंपारण के बगहा जेल में वरिष्ठ समाजकर्मी पंकज सहित 18 दलित किसानों को राज्य सरकार के एक निम्मतम अधिकारी ने विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कराकर जेल में डलबा दिया है। पंकज पिछले दो महीने से बगहा जेल में बंद हैं। गांधी जी के बताए रास्ते पर अपनी सरकार चलानेवाले और चंपारण सत्याग्रह की सौवीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी में जुटे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की खामोशी से राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं में काफी रोष है। champaran-gandhi-2 मेधा पाटेकर, विजय प्रताप और स्वामी अग्निवेश जैसे वरिष्ठ आंदोलन कारियों ने मुख्यमंत्री से पंकज की जल्द रिहाई की अपील की है, लेकिन इन लोगों की अपील भी अनसुनी कर दी गयी है। पिछले दिनों 27 सितम्बर को मुख्यमंत्री 74 के जयप्रकाश आंदोलन पर केन्द्रित पांच खंडों में प्रकाशित ग्रंथों का लोकापर्ण कर रहे थे तब जेपी आंदोलन से जुड़े प्रमुख आंदोलनकारियों ने इस लोकापर्ण समारोह का बायकॉट कर अपने गुस्से को जताया था। इसी के साथ चंपारण में सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय के लिए नेतृत्व विकास कार्यक्रम में देशभर से जुटे करीब सौ से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पंकज की गिरफ्तारी को नाजायज बताते हुए राज्य सरकार की इस कार्रवाई की निंदा की और सामूहिक रूप से एक प्रस्ताव पारित कर यह चेतावनी भी दी है कि यदि पंकज सहित 18 दलित किसानों की रिहाई नहीं होती है तो वे सड़कों पर आंदोलन करने के लिए उतरेंगे। सरकार की ऐसी कार्रवाई पर हैरानी जताते हुए राजगोपाल पी.व्ही ने कहा कि पंकज सरकार के वायदे के मुताबिक उनकी जवाबदेही को मुकम्मल कराने का काम कर रहे थे। ऐसे में पंकज की गिरफ्तारी से सरकार की कथनी पर संदेह बढ़ता जा रहा है। जलपुरूष राजेन्द्र सिंह और सर्व सेवा संघ के ट्रस्टी तपेश्वर भाई और वरिष्ठ पत्रकार कुमार कृष्णन ने बाकायदा बगहा जेल जाकर पंकज से मुलाकात के बाद पंकज सहित 18 दलितों की रिहाई सुनिश्चत करने के लिए एक 'जन आयोग' गठित करने का ऐलान किया है। यह आयोग पंकज सहित 18 दलितों की गिरफ्तारी के मामले के हकीकत की जांच करेगा। उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त जज की अध्यक्षता में बननेवाले इस 'जन आयोग' में तीन सदस्य होंगे। champaran-parchadhari-1 लोकनायक जयप्रकाश नारायण के 1974 आंदोलन के सेनानी रहे पंकज को सरकारी प्रताड़नाओं का शिकार होना पड़ रहा हैं। पंकज बिहार राज्य भूमि सुधार व राजस्व विभाग द्वारा गठित भूमि सुधार कोर कमिटी के सदस्य हैं। वह गरीबों-भूमिहीनों के पक्ष में बने भूमि सुधार कानूनों को लागू कराने हेतु विगत दो दशकों से लोकतांत्रिक और अहिंसक तरीके से आन्दोलनरत हैं। इन दिनों सरकार ने उन्हें जेल में बंद कर रखा है। उन पर एक मुकदमा पश्चिमी चम्पारण के बगहा - 1 के अंचलाधिकारी ने दायर किया है। यह मुकदमा विगत 03 नवम्बर, 2015 को चौतरवा थाना (प्राथमिकी संख्या- 282/15) में दर्ज किया गया है। इस मामले में पंकज व 18 भूमिहीन पर्चाधारी 20 जुलाई, 2016 से बगहा जेल में हैं।इसके पहले पंकज व साथियों के दबाव के बाद 26 साल पुराना केस फिर से 2015 में खुला और पर्चाधारियों के पक्ष में फैसला भी हुआ। भूस्वामी फिर अपील में राजस्व पार्षद, पटना (वाद संख्या- 17/2016 श्री एस.एम. राजू के तहत) चले गए हैं। champaran-gandhi-1 पश्चिमी चंपारण के तीन अंचलों में लगभग 500 एकड़ से अधिक भूमि पर भूमिहीनों का कब्ज़ा अहिंसक आंदोलन केे कारण संभव हो सका। शांतिपूर्वक कार्रवाई के दौरान बगहा 1 अंचल के सलहा बरियरवा गांव में सीलिंग से अधिशेष भूमि पर कब्ज़ा हेतु एक “भूमि सत्याग्रह” का आयोजन 27 जून 2015 में किया गया था। इस दिन पर्चाधारियों ने धान की फसल लगाई और इसी फसल को 03 नवम्बर में काटने के दौरान चौतरवा थाना में सीओ, बगहा 1 ने दर्ज करा दिया। इसके बाद चौतरवा थाना कांड संख्या 282, 03.11.2015 में पटना उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत की अर्जी ख़ारिज करने के बाद में 20 जुलाई, 16 को सामाजिक कार्यकर्ता पंकज जी के नेतृत्व बगहा कोर्ट में हाजिर होकर 19 नामजद में से 13 लोगों ने गिरफ़्तारी दी। वर्ष 2015-16 में बिहार सरकार के “ऑपरेशन दखल दहानी” के विशेष कैम्पों के बाद जारी आंकड़ों के अनुसार पश्चिमी चंपारण के लगभग दो लाख भूमिहीनों को गैर मजरुआ मालिक, गैरमजरुआ आम, भूदान और भू-हदबंदी कानून के अंतर्गत घोषित अधिशेष भूमि का पर्चा मिला है पर इनमें से लगभग आधे लोगों को पर्चे की भूमि पर कब्ज़ा हासिल नहीं हुआ है। भूमिहीन नागरिक वर्षों से प्रशासन से कब्जे की गुहार लगा रहे हैं। लेकिन अधिकारियों की उपेक्षा और उदासीनता के कारण क़ानूनी रूप से प्राप्त जमीन पर भूमिहीन अपनी हकदारी से वंचित हैं। हरिनगर चीनी मिल की 5200 एकड़ भूमि भू-हदबंदी कानून के अंतर्गत समाहर्ता, प. चम्पारण ने 2007 में अधिशेष घोषित कर दी लेकिन अभी तक यह मामला राजस्व मंत्री, बिहार सरकार के कोर्ट में लंबित है। 7 सालों में मंत्री जी का न्यायालय यह निर्णय भी नहीं कर सका है कि यह मामला सुनवाई के योग्य है या नहीं। लेखक दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार हैं और गांधीवादी संस्था से जुडे हुये हैं। यह लेख उन्होंने स्वतंत्र रूप से मल्हार मीडिया के लिये लिखा है।


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