डॉ. रजनीश जैन।
कटप्पा को शस्त्र उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। सोकाल्ड बाहुबली ने आत्मघात कर लिया है। दर असल यह बाहूबली का वर्जन टू है, नये जमाने का। यह सोचता है कि वह भीमकाय शिवलिंग अपने कंधों पर लेकर विकास के पथ पर चला जा रहा है और बेहद लोकप्रिय हो चुका है। वह एक बार भी पीछे पलट कर नहीं देखता। यदि देखता तो उसे पता लगता कि पीछे उसकी प्रजा में से कोई नहीं है, सिर्फ कुछ रिश्तेदार और चंद मीडिया वाले चले आ रहे हैं। उसे पता ही नहीं कि क्षमतावान होने का अर्थ सिर्फ धनवान होना नहीं, जनवान होना है।
वह कटप्पा ही था जिसने माहिष्मति का दरवाजा दिखाया और अपने 'जन'को तुम्हारे 'ता' यानि ताकत के साथ कर दिया था। जब विजयमाल पहन कर मतगणना केंद्र से यह सोकाल्ड बाहुबली बाहर निकला तो उसने सबसे पहले अपने प्रधान सेनापति यानि चुनाव संचालक को ठेंगा दिखाया। एक बर्फी का टुकड़ा और रोरी का टीका नसीब नहीं हुआ उसे।
सिंहासन आरूढ़ होते ही सबसे पहला हुक्म बाहुबली ने अपने कमांडरों और सैनिकों को यह दिया कि चलो चलो, पैसा हजम खेल खतम, अब यहाँ फटकना भी मत।अब हमारा राजपरिवार ही सारे कामकाज देखेगा।'
बाहुबली युवा था, क्षमतावान था पर अहंकार और कृतघ्नता से भरा हुआ। उसे लगने लगा कि वह अब स्वयं एक अखंड और प्रभुता संपन्न राज्य का मालिक है। ढाई साल के भीतर उसने आसपड़ोस के राजाओं को आँख दिखाना शुरू कर सीमाविस्तार करने की हड़बड़ी मचा दी। असेंबली में खुद के आजाद होने का उद् घोष करना शुरू कर दिया।इसमें मिली शुरूआती सफलताओं से घमंड को बल मिला और कुछ चापलूसों और कूटनैतिज्ञों ने बाहुबली को और हवा दे दी यह कह कर कि तुम्हारी लोकप्रियता और शक्ति का ग्राफ इतना फैल चुका है कि अब तुम अपनी राजमाता यानि पार्टी को भी चुनौती दे सकते हो। पार्टी लिप्पुस है वह दबाब की भाषा सुनती समझती है।
यह मिथ्या सलाह अपरिपक्व बाहुबली को जच गयी और उसने भरी सभा में राजमाता से झगड़ा कर लिया। यह कहते हुए कि आप मुझसे चंदा मांगती हैं। आपकी बड़ी बड़ी बैठकों में आने वाले प्रतिनिधियों कोे हमने अपने 'स्वर्गलोक' में ठहराया उसके बिल को चंदा समझिए। सभा में ही राजमाता को चेलैंज कर दिया इम्मैच्योर बाहुबली ने कि जाइऐ मुंगफली में दाना नइंयाँ, हम तुम्हारे नाना नइंयाँ।
बाहुबली को उकसाने वाले राजमाता के असंतुष्ट भी सभा में अपने मोबाइल को रिकार्डिंग मोड पर रखकर बैठे थे। उन्होंने तुरंत यह घटनाक्रम मीडिया में लीक कर दिया। और बाहुबली को भी सलाह दी कि अब तुम बाहुबली से महाबली की कैटेगरी में प्रवेश कर गये हो, इसका ऐलान प्रेसकांफरेंस में कर दो। बिना यह आकलन किए कि राजमाता यानि पार्टी की छवि पर एक दीर्घकालीन बट्टा लगेगा, इम्मेच्यौर बाहुबली ने यह भी कर डाला। खबर प्रसारण के सारे विध्वंस देखने समझने के बाद अब जाकर उसे अपने फैलाए रायते के कांसीक्वेंसेज़ समझ आना शुरू हुए हैं कि बापू सेहत के लिए यह तो हानिकारक है।
बापू से ख़याल आया कि वर्ज़न टू वाले इस बाहुबली के बापू असली बाहुबली थे। वे सच में क्षमतावान थे न्यायप्रिय थे और लोकप्रिय भी। इसके अलावा वे दानी भी थे। वे दो पाँच लाख रू के बिलों को सिगरेट में फूंक देते लेकिन राजमाता की अस्मिता पर आँच नहीं आने देते। वे यदि फैसलाकुन हैसियत में होते तो समझ जाते कि सुप्रीमकोर्ट के आदेश की पालना के लिए यदि 'स्वर्गलोक' पर कार्रवाई हुई है तो चीेजों को करने का ढंग थोड़ा बदल कर काम निकालना चाहिए। इसके अलावे भी तो पचास चीजों को अनदेखा कर चलने ही दिया जा रहा है। लेकिन पुराना बाहुबली अस्वस्थ है, उसके फैसले अब नई पीढ़ी ले रही है, जिनके कायदे विशुद्ध वाणिज्यिक हैं। नई पीढ़ी दिल नहीं देखती बिल देखती है। बिल के चक्कर में भले ही अपने ही पैर पर सिल पटक ली जाये।
टीपः इस गद्य का दैनिक भास्कर, सागर 20 मई, 2017 के पेज दो पर छपी कहानी से संबंध न जोड़ें।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
Comments