मजदूर बनते किसान की पीड़ा और परिश्रम कितना

खरी-खरी            Jun 04, 2017


राजेंद्र चतुर्वेदी।
इस देश की आबादी का 70 फीसदी हिस्सा खेती करता है यानी वह किसान है। लेकिन यह आबादी किन स्थितियों से दो-चार है, सब जानते हैं। अगर हम बड़े किसानों को छोड़ दें, जो बहुत कम बचे हैं, तो ज्यादातर किसानों को ऐसा मजदूर मानना ही बेहतर होगा, जो अपने छोटे से खेत में जाकर मजदूरी करते और शाम को धूल झाड़ते हुए घर वापस आ जाते हैं। उन्हें अपने परिश्रम का फल तीन-चार महीने बाद मिलता है। तब, जब उनकी फसल उपज में बदलकर उनके घर आती है। जिस तरह सेठ लोग हिसाब लगाने बैठते हैं, अगर वे भी उसी तरह हिसाब लगाएं, तो पाएंगे कि उन्हें कुछ नहीं मिला।

खाद-बीज, बिजली-पानी की लागत ने सब कुछ हजम कर लिया। उन्होंने जो परिश्रम किया था, उसके बदले में भी उन्हें कुछ नहीं मिला। मिले भी कैसे...। जब किसान के पास होता है, तो सौ-सवा सौ रुपए किलो बिकने वाला प्याज एक रुपए का चार किलो बिकने लगता है। बाजार किसानों की सभी उपजों के साथ ऐसा ही करता है।

दूसरी ओर, विजय माल्या हजारों करोड़ खाकर भाग जाते हैं, जिनका कुछ भी नहीं बिगड़ता। आजकल एनपीए शब्द खूब प्रचलित हो गया है। यह वह कर्ज होता है, जिसे बड़े आदमी चुकाते नहीं हैं। अभी हाल ही में पंजाब नेशनल बैंक के कर्मचारियों ने इलाहाबाद में एक विधायक-पिता के घर के सामने मौन प्रदर्शन किया था, लेकिन किसान उन विधायक-पिता जैसे सौभाग्यशाली नहीं होते। यदि उनका कर्ज चुकता नहीं होता है, तो बैंक वाले उनकी चमड़ी उधेड़ लेते हैं। कर्ज अगर साहूकार का हुआ, तो बहुत से किसान हिम्मत हार जाते हैं और स्वयं को खत्म कर लेते हैं। लाखों किसान आत्महत्या कर ही चुके हैं। हम मंत्रियों के मुंह यह प्रवचन भी सुन ही चुके हैं कि आत्महत्या करने वाले किसान कायर होते हैं।

यह किसानों की पीड़ा है और परिश्रम कितना?
बारिश हो रही है और किसान खेतों में काम कर रहे होते हैं। भीषण गर्मी में भी उनके पास काम होता है और खून को जमा देने वाली सर्दी में भी। हां, यह ऐसा काम होता है, जिसका पारिश्रमिक मिलने की कोई गारंटी नहीं। ऐसे में किसान आंदोलन के रास्ते पर चलते हैं तो उनका समर्थन करना जरूरी है। देश के सभी किसानों के कर्ज तो तत्काल माफ होने चाहिए। उन्हें उनकी पैदावार के वाजिब दाम दिलाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
हरिबोल...।

हालांकि, राजनीतिक दलों ने अपने-अपने किसान संघ बनाकर किसानों की एकजुटता में भांग डाल दी है, इसलिए उनकी आवाज संयुक्त नहीं हो पाती। पुनश्च हरिबोल...।

फेसबुक वॉल से।

 



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