डॉ राकेश पाठक।
अंततः मोदी सरकार ने सिंगल ब्रांड रिटेल में सौ फीसदी सीधे विदेशी निवेश (FDI ) के लिए दरवाज़े खोल कर लाल कालीन बिछा दिए हैं। अब तक इस तरह के निवेश की सीमा 49 फीसदी थी। इस फैसले के बाद "वालमार्ट" जैसी भीमकाय कंपनियां भारत में खुदरा व्यापार में सौ फीसदी निवेश कर धंधा कर सकेंगीं वो भी बेरोकटोक।
लेकिन यह फैसला करते वक्त सत्ताधारी पार्टी यह भूल गयी कि वो इसी एफडीआई के विरोध में कैसे धरती आसमान एक कर देती थी। सरकार के मुखिया नरेंद्र दामोदर दास मोदी, वित्त मंत्री अरुण जैटली भूल गए कि कांग्रेस की सरकार में ऐसे निवेश के विरोध में क्या कहते, बोलते थे..?
अब पलटी भी ऐसी कि बिना किसी लिहाज़ के खुदरा कारोबार में 100 फीसदी सीधे विदेश निवेश को मंजूरी दे दी है। अब होगा ये कि 'वालमार्ट' जैसे रिटेल के अन्तर्राष्ट्रीय दैत्य भारत आकर छोटे कारोबार को निगल जाएंगे और डकार भी न लेंगे।
आइये याद कर लीजिए कि 2014 से पहले जब बीजपी सत्ता में नहीं थी तब FDI को लेकर उसकी क्या राय थी। तब बीजपी FDI का फूल फॉर्म बताती थी- Fund For Devlopment of Indian national congress...( बीजपी के धरने पर लगा पोस्टर देखिये)
तब मोदी से लेकर तमाम बीजपी नेताओं के बयानों में कहा जाता था कि कांग्रेस पार्टी FDI के जरिये देश को बेच रही है। नरेंद्र मोदी ट्वीट करके तत्कालीन प्रधानमंत्री पर सीधे निशाना लगाते थे..। मोदी ने कहा था- "UPA सरकार विदेशियों की, विदेशियों द्वारा, विदेशियों के लिए है..पता नहीं पीएम क्या कर रहे हैं...छोटे कारोबारियों के शटर डाउन हो जाएंगे ।"
अरुण जेटली ने कसम खायी थी कि 'आखिरी सांस तक एफडीआई का विरोध करेंगे।' (ट्वीट्स के स्क्रीन शॉट देखिये)सुषमा स्वराज एफ डी आई विरोधी धरना प्रदर्शनों में भांगड़ा गिद्दा का छोंक डालतीं थीं।
वेंकैया नायडू और नितिन गडकरी जैसे सूरमा हाथों में तख्तियां लेकर लहराते थे जिन पर लिखा होता था--"भ्रष्टाचारियों, चोरों का हाथ- एफडीआई के साथ.."।
2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी जी और उनके पूरे कुनबे को दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ और वे एफडीआई के पक्ष में साष्टांग दंडवत होने लगे।
साल 2016 में मोदी सरकार ने रक्षा, विमानन, केबल,मोबाइल टीवी आदि आदि में 100 फीसदी विदेशी निवेश(FDI)को मंज़ूरी दे दी थी। देश को याद है कि जब यही सब पिछली सरकार करने वाली थी तब बीजेपी ने कितना हल्ला मचाया था। ससंद ठप्प पड़ जाती थी। पूरे देश में हाहाकार मचाया जाता था कि कांग्रेस/यूपीए की सरकार देश को बेच रही है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके स्वदेशी जागरण मंच जैसे अनुषांगिक संगठन तब छाती पीटते थे लेकिन अब आवाज़ भी गले से नहीं निकलती। जब सरकार ने सेना, विमानन जैसे क्षेत्रों में
सौ फीसदी निवेश को मंजूरी दी थी तब भी इनके मुंह से आवाज़ नहीं निकली थी।
लेखक कर्मवीर वेब पोर्टल के प्रधान संपादक हैं।
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