मल्हार मीडिया भोपाल।
मध्यप्रदेश के शासकीय अस्पतालों के 10 हजार से ज्यादा डॉक्टर आज से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं. इतना ही नहीं इन डॉक्टरों ने इमरजेंसी सेवा, पोस्टमार्टम भी नहीं करने की चेतावनी दी है.
इसका असर इलाज के लिए आने वाले मरीजों पर होने लगा है. अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो गई हैं. हालांकि प्रशासन मरीजों की सहूलियत के लिए वैकल्पिक इंतजाम करने में लगा हुआ है.
बता दें कि सीएम शिवराज सिंह की मंगलवार देर रात बैठक के दौरान दिए गए निर्देशों के बाद भोपाल संभागायुक्त माल सिंह और कलेक्टर आशीष सिंह स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर ढंग से सुचारू बनाए रखने के लिए बुधवार सुबह से ही मोर्चा संभाले हुए हैं.
दोनों अफसर आज सुबह हमीदिया अस्पताल, कमला नेहरू चिकित्सालय पहुंचे और ओपीडी सेवाओं, सोनोग्राफी सेवाओं की व्यवस्थाओं का जायजा लिया. मरीजों से मिलकर उनका हालचाल भी जाना. कलेक्टर ने कहा कि सभी सेवाएं सुचारू रूप से अस्पतालों में संचालित हो रही हैं.
गौरतलब है कि मरीजों के इलाज के लिए मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार हमीदिया अस्पताल में 150 निजी डॉक्टर की व्यवस्था कर ली गई है. इसके अतिरिक्त चिरायु, आरकेडीएफ, जेके अस्पताल आदि में अतिरिक्त 1500 बेड की व्यवस्था की गई है.
आपात स्थिति में मरीजों को आवश्यकता होने पर निजी अस्पतालों में शिफ्ट किया जा सकेगा और उनका इलाज मध्यप्रदेश शासन नि:शुल्क कराएगा.
चिकित्सक महासंघ के पदाधिकारियों की मंगलवार को गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी सहित अधिकारियों के साथ बैठक हुई, पर कोई हल नहीं निकला. आंदोलन को देखते हुए स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने वैकल्पिक व्यवस्था की है.
इस दौरान निजी मेडिकल कॉलेज और नर्सिंग होम्स की मदद ली जा रही है. बता दें कि मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों के गंभीर रोगियों को निजी मेडिकल कॉलेजों में भेजा जाएगा.
चिकित्सक महासंघ की सबसे प्रमुख मांग डायनेमिक एश्योर्ड करियर प्रोग्रेसिव स्कीम (डीएसीपी) है. इसके अंतर्गत डॉक्टरों को तय समय पर एक वेतनमान देने की मांग है. प्रदेश में पहली बार स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा विभाग के डॉक्टरों के अलावा जूनियर डॉक्टर भी हड़ताल में शामिल हो रहे हैं. इससे सबसे ज्यादा दिक्कत गंभीर रोगियों को होगी.
केंद्र, एवं अन्य राज्यों की तर्ज पर ही मध्य प्रदेश के चिकित्सकों हेतु डीएसीपी का प्रावधान हो इससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी नहीं आएगा.
स्वास्थ्य विभाग, चिकित्सा शिक्षा विभाग एवं बीमा अस्पताल (ईएसआई) की विसंगतियां दूर हों.
चिकित्सकीय विभागों में तकनीकी विषयों पर प्रशासनिक अधिकारियों का हस्तक्षेप खत्म किया जाए.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कार्यरत संविदा चिकित्सकों (एमबीबीएस) की मप्र लोक सेवा आयोग के माध्यम से की जाने चयन प्रक्रिया में प्राथमिकता दी जाए.
आयुक्त चिकित्सा शिक्षा जॉन किंग्सले ने बताया कि सरकारी सेवा में रहते हुए पीजी के लिए आने वाले जूनियर डॉक्टर, इंटर्न डॉक्टर काम करेंगे. निजी मेडिकल कालेज के डॉक्टरों को बुलाया जाएगा. आवश्यकता पड़ने पर रोगियों को निजी मेडिकल कालेजों में भी भेजेंगे. नर्सिंग होम्स की सेवाएं ली जाएंगी. बंधपत्र वाले चिकित्सकों ने आंदोलन किया तो उनकी बंधपत्र की अवधि अधूरी मानी जाएगी.
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