नितिन मोहन शर्मा।
भूल जाईए अब आप तंदूर की रोटी। दिमाग से निकाल दीजिये अब तंदूरी नान। तंदूरी चिकन-कबाब, मुर्ग मसल्लम का तो भूलकर भी सोचना मत। न तंदूर में तपे कुल्हड़ वाली चाय को याद करना। न याद करना अब उस तंदूर को जो देश के एक हिस्से में सांझा चूल्हा कहलाता हैं। सुख दुख की सांझी विरासत का हिस्सा।
भारतीय रसोई का अहम किरदार। अब ये तंदूर दिमाग से निकाल दो। सरकार ने इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी हैं। कही भी जलता पाया गया तो जुर्माना इतना, जितने में शादी ब्याह हो जाये।
जी हां, 5 लाख जुर्माना मुकर्रर किया है सरकार के साहब बहादुरों ने। 20 लाख से ज्यादा धुंआ उगलते वाहनों वाले शहर के तंदूर जलाने पर 5 लाख का दंड कर दिया गया है। है न हैरत की बात..!!
जी हां, सरकार और उनके अफ़सरो को ये "दिव्य ज्ञान" प्राप्त हुआ है कि शहर और प्रदेश में बिगड़े पर्यावरण का जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ तंदूर ही है।*
प्रदूषण के मामले में आप सब अपना सामान्य ज्ञान दुरुस्त कर लो। पर्यावरण को हो रहे नुकसान का असली कारण आप सब जान लो। शहर की बिगड़ती आबोहवा के लिए कौन जिम्मेदार है, ये जान लो। हमसे नहीं। साहब बहादुरों से। अफसरों से।
उन्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ है कि प्रदेश के बिगड़ते पर्यावरण के लिए न तो डीजल से चलने वाले भारवाहक जिम्मेदार हैं और न हजारों की संख्या में लोडिंग रिक्शाये जिम्मेदार हैं। न नमकीन बनाते सेकड़ो डीजल भट्टी वाले कारखाने जिम्मेदार हैं और न धुंआ उगलती फेक्ट्रियो की चिमनिया इसका कारण हैं।
न हर चौराहे पर गुत्थमगुत्था होता ट्रेफ़िक इसके पीछे कारण है न शहर की सड़कों पर आये दिन लगने वाले जाम और उस दौरान धुंआ उगलते वाहनों के सायलेंसर इसके लिए जिम्मेदार हैं।
न 20 लाख से ज्यादा दो पहिया वाहन कारण है और न 20 हजार घासलेटी आटो रिक्शा को इसका दोष दिया जा सकता हैं। डीजल से चलने वाली 2 हजार से ज्यादा मैजिक और इतनी ही सिटी वेन गुनाहगार हैं। लकड़ी के गट्ठर चीरती आरा मशीनें जिम्मेदार नही है और न रोक के बावजूद रोज गली मोहल्लों में जलाए जाना वाला कचरा इसका कारण हैं। और न शहरभर चल रहे निर्माण कार्यो से रोज उठते धूल के बवंडर जिम्मेदार हैं।
लाखों की संख्या वाले 15 साल पुराने कंडम वाहनो का भी कोई दोष है और न ढाई हजार से ज्यादा स्कूल बसे।
ये सब निर्दोष हैं। इनमें से किसी से भी न तो शहर का पर्यावरण बिगड़ रहा है और न प्रदूषण अपने मानक स्तर से इनके कारण ऊपर जा रहा हैं। ये सब तो पर्यावरणीय परिस्थितियों के न केवल अनुकूल हैं, बल्कि शहर के पर्यावरण को दुरूस्त किये हुए हैं। इन सबके कारण शहर की आबोहवा एक दम स्वच्छ और राहतभरी हैं।
सारा दोष तंदूर का हैं। उस तंदूर का जो आप हम सबको गरमागरम तंदूरी रोटी खिलाता हैं। कुरकुरी और करारी। सारा गुनाह इसी तंदूर का है जो भारतीय पाक कला का अहम हिस्सा हैं। जो भारत की रसोई का सरदार है। जो भोजन तैयार करने का बेहतर बंदोबस्त है। भारतीय देशी व्यंजनकला का हिस्सा। बरसो बरस से। जिसके कारण घर गृहस्थी में दो वक्त की रोटी कुछ हटकर हो जाती हैं। शादी ब्याह या किसी अन्य पारिवारिक आयोजन की आन बान शान। जी हां, हम सबका प्रिय तंदूर।
ये सिर्फ तंदूरी रोटी से लेकर तंदूरी
चिकन, कबाब, पनीर टिक्का ही नही तैयार करता है बल्कि देश के एक हिस्से में ये " सांझा चूल्हा " भी कहलाता हैं। ऐसा सांझा चूल्हा जो प्रज्वलित तो होता है किसी एक के आंगन में लेकिन उस पर रोटियां अगल बगल के परिवार की महिलाएँ भी सेंक कर ले जाती हैं।
तंदूर यानी सांझी विरासत का हिस्सा। सुख़ दुःख की बातों का साझीदार। जो सामुदायिक भावना का प्रतिनिधित्व करता हैं। भरत-भू पर ये तंदूर बरसो बरस से इन्ही सब खूबियों के कारण रसोई का अहम हिस्सा हैं।
लेकिन अब ये तंदूर शहर, प्रदेश में बढ़ते प्रदूषण का एकमेव कारण हैं। इसी तंदूर के कारण आपके इन्दौर का पर्यावरण बिगड़ गया हैं। रोटियां सेंकने वाला तंदूर शहर प्रदेश की बिगड़ती आबोहवा का प्रमुख जिम्मेदार हैं।
इसी तंदूर के कारण शहर और प्रदेश का प्रदूषण मानक बिगड़ गया है और प्रदूषण खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा हैं। इसलिए सरकार के आंख के तारे साहब बहादुरों ने इन्दौर सहित प्रदेश के बड़े शहरों में इस पर रोक लगा दी हैं।
रोक भी सख्ती के साथ लगाई है। अगर गलती से तंदूर का इस्तेमाल कर लिया तो जुर्माना कितना है? पता है? नही न। तो सुन लो।
5 लाख का जुर्माना लगेगा इसके इस्तेमाल करने पर। कितना भयानक है न तंदूर कि अगर उपयोग किया तो 5 लाख का जुर्माना तय किया गया हैं। जितनी राशि मे आम आदमी का शादी ब्याह निपट जाए, उतनी राशि तो सरकार के साहब बहादुरों ने तंदूर इस्तेमाल करने पर जुर्माने की मुक़र्रर की हैं।
सुना आज तक कि इतनी भारी भरकम जुर्माने की राशि किसी प्रदूषण फैलाते किसी अन्य जिम्मेदार पर लगी हो?
किसी धुंआ उगलती फेक्ट्री पर या लाखो की संख्या में धुंआ उगलते कंडम वाहनों पर कभी इतना जुर्माना हुआ या सुना? नही न। तो कारण साफ है। प्रदूषण सिर्फ और सिर्फ तंदूर से फैलता है।
शाम होते ही शहर में कितने तंदूर जल जाते होंगे? कोई आंकड़ा है क्या आपके पास? अंदाजन हजार-दो चार हजार? या पांच-सात हजार। इससे ज्यादा तो क्या तंदूर शहर में जलते होंगे। एक दिन में कितनी शादियाँ होती होगी? दो चार हजार। वो भी इन्दौर जैसे शहर में। तो शेष छोटे शहरों कस्बों में तो और भी कम। फिर भी तंदूर के इस्तेमाल पर रोक..!! 5 लाख जुर्माना..!!
रोक से हजारों बेरोजगार। क्या फर्क पड़ता है। होते हो तो हों जाये। पर सरकार ने कमर कस ली है प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण खत्म करने की। जड़ से उखाड़ने की।
तो सोच लो, कितना बड़ा खलनायक है आपका हमारा सांझा चूल्हा यानी तंदूर। प्रदूषण का प्रमुख कारण साहब लोगो ने ये ही मुक़र्रर करा हैं। सरकार को बताया ही नही, जँचाया भी गया कि तंदूर प्रदूषण फैलाने की सबसे बड़ी ओर अहम इकाई हैं। इसे बन्द किये बगेर शहर-प्रदेश का पर्यावरण सुधरना नही हैं। भोली भाली सरकार को भी साहब बहादुरों का ये दिव्य ज्ञान झट से हजम भी हो गया। बस तो फिर क्या था। सरकार की आंख, कान और नाक के बाल साहब बहादुरों ने अपने दिव्य ज्ञान पर हाथों हाथ फरमान जारी कर दिया कि अगर आपके घर आँगन, शादी ब्याह, तीज त्यौहार पर जलता हुआ तंदूर दिखा तो 5 लाख जुर्माना कर दिया जाएगा।
है न अपना एमपी अजब।
है न अपना एमपी गजब।
पीएम मोदी ने हाल ही में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में इसमें एक शब्द और जोड़ा था कि एमपी अजब, गजब का साथ सजग भी है।
अजब गजब तो आपने देख लिया, अब सजग होने की बारी आपकी हैं, देखते है कब तक होते है आप लोग..सजग??
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